भारत के कच्चे तेल के भंडार

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस पर लोकसभा की स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत का कच्चा तेल भंडार वर्तमान में लगभग 3.61 मिलियन टन है, जो उनकी निर्धारित क्षमता का 67% है।

समिति द्वारा मुख्य विशेषताएँ:

  • इष्टतम भंडार बनाए रखना: समिति ने पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय को भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार का इष्टतम स्तर बनाए रखने की सिफारिश की।
  • बजट: सरकार ने कच्चे तेल के भंडार को भरने के लिए बजट अनुमान 2023-24 में 5,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे।
    •  समिति ने चालू वित्त वर्ष में मंत्रालय और तेल सार्वजनिक उपक्रमों के पूँजीगत व्यय को अपर्याप्त पाया। 
    • इसने अगले संभावित अवसर पर पूँजीगत व्यय के लिए आवंटन में वृद्धि की सिफारिश की।
  • भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार की स्थापना तेल संकट की स्थिति में देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी।
    • बजट अनुमान 2024-25 के अंतर्गत, वित्त मंत्रालय ने भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार के चरण-II में भूमिगत गुफाओं के निर्माण के लिए 408 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की है।
  • चिंता: समिति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विश्व भर में, मुख्य रूप से कच्चे तेल के प्रमुख आपूर्तिकर्त्ताओं के लिए, अत्यधिक अनिश्चित भू-राजनीतिक परिदृश्य के कारण कच्चे तेल के पर्याप्त बफर स्टॉक के रखरखाव के लिए सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

भारत द्वारा कच्चे तेल का आयात

  • वित्त वर्ष 2025 के पहले छह महीनों के दौरान आयातित कच्चे तेल पर भारत की निर्भरता बढ़कर 88.2% हो गई, जो वित्त वर्ष 2024 की इसी अवधि में 87.6% थी। 
  • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक है। 
  • भारत के कच्चे तेल के आयात के मुख्य स्रोत इराक, सऊदी अरब, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं संयुक्त अरब अमीरात हैं।
भारत द्वारा कच्चे तेल का आयात
  • 2024 में शीर्ष पाँच तेल उत्पादक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब, रूस, कनाडा और चीन थे। 
  • विश्व में शीर्ष तेल खपत करने वाले देश संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत, रूस एवं सऊदी अरब हैं।

कच्चे तेल के आयात में भारत के सामने चुनौतियाँ:

  • मूल्य अस्थिरता: वैश्विक तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव भारत की आयात लागत को अत्यंत सीमा तक प्रभावित करता है, जिससे इसकी अर्थव्यवस्था और मुद्रास्फीति प्रभावित होती है। 
  • भू-राजनीतिक जोखिम: प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्रों (जैसे मध्य पूर्व, रूस एवं वेनेजुएला) में राजनीतिक अस्थिरता या संघर्ष आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित करते हैं और कीमतों में उछाल का कारण बनते हैं। 
  • आयात पर निर्भरता: भारत अपने कच्चे तेल के लगभग 85% के लिए आयात पर निर्भर करता है, जिससे यह आपूर्ति में व्यवधान और बाहरी कारकों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
  •  विनिमय दर में उतार-चढ़ाव: चूँकि भारत कच्चे तेल के लिए अमेरिकी डॉलर में भुगतान करता है, इसलिए विनिमय दर में बदलाव से लागत बढ़ जाती है, विशेषकर जब रुपया कमजोर होता है। 
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: कच्चे तेल का निष्कर्षण और खपत पर्यावरणीय मुद्दों में योगदान करते हैं, जिससे भारत को ऊर्जा आवश्यकताओं को स्थिरता के साथ संतुलित करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 
  • स्रोतों का विविधीकरण: विभिन्न आपूर्तिकर्त्ताओं से प्रतिस्पर्धा और अलग-अलग शर्तों के कारण भारत का तेल के अपने स्रोतों में विविधता लाने का प्रयास चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

भारत द्वारा अपने कच्चे तेल के आयात को प्रबंधित करने के लिए उठाए गए कदम:

  • आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण: भारत किसी एक क्षेत्र पर निर्भरता कम करने के लिए इराक, सऊदी अरब, UAE, अमेरिका और यहाँ तक ​​कि रूस सहित कई देशों से कच्चे तेल की सोर्सिंग करके अपने तेल आयात आधार का विस्तार कर रहा है।
  • रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (SPR): भारत ने आपात स्थितियों या भू-राजनीतिक व्यवधानों के दौरान आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक तेल भंडार विकसित किए हैं।
  • घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: भारत आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (HELP) जैसी पहलों के माध्यम से तेल के घरेलू अन्वेषण एवं उत्पादन को प्रोत्साहित कर रहा है।
  • ऊर्जा दक्षता और विकल्प: भारत कच्चे तेल पर समग्र निर्भरता को कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा में निवेश कर रहा है और ऊर्जा दक्षता में सुधार कर रहा है।
  • द्विपक्षीय समझौते: भारत ने स्थिर और विश्वसनीय तेल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सऊदी अरब, इराक एवं रूस जैसे देशों के साथ दीर्घकालिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।

आगे की राह

  • भारत का लक्ष्य आयात निर्भरता को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा में सुधार के लिए घरेलू अन्वेषण एवं उत्पादन को बढ़ावा देना है।
  • अक्षय ऊर्जा क्षमता (सौर, पवन, जैव ईंधन) का विस्तार करने से भारत के ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने में सहायता मिलेगी।
  • संकट के समय में पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व (SPR) का विस्तार करना।
  • मूल्य अस्थिरता का प्रबंधन करने के लिए, भारत स्थिर कीमतों के लिए आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ अधिक हेजिंग रणनीतियों और दीर्घकालिक समझौतों का पता लगा सकता है।

Source: FE

 

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