भारत का भूजल प्रदूषण संकट

पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण

संदर्भ

  • केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) ने भारत के जलभृतों (Aquifers) में विषैले प्रदूषकों की चिंताजनक वृद्धि को उजागर किया है।

परिचय

  • भारत में विश्व की 18% जनसंख्या निवास करती है, लेकिन इसके पास केवल 4% स्वच्छ जल के संसाधन हैं, जिससे उपलब्ध जल प्रणालियों पर भारी दबाव पड़ता है।
  • भारत अपनी ग्रामीण पेयजल आवश्यकताओं का लगभग 85% और सिंचाई जल का लगभग 60% भूजल पर निर्भर करता है।

भूजल प्रदूषण का संकट

  • भारत के जलभृतों में एक साथ आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट, यूरेनियम, लवणता और भारी धातुओं का प्रदूषण पाया जा रहा है।
  • देशभर में लगभग 20% नमूनों में यूरेनियम, फ्लोराइड, नाइट्रेट और आर्सेनिक जैसे प्रदूषकों की मात्रा अनुमेय सीमा से अधिक है।
  • उत्तर भारत के राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में मानसून से पूर्व एवं पश्चात के नमूनों में यूरेनियम का स्तर चिंताजनक है।
  • मध्य भारत में कृषि तीव्रता से जुड़ी फ्लोराइड और नाइट्रेट की सांद्रता बढ़ रही है, जबकि पूर्वी राज्यों में आर्सेनिक की समस्या बनी हुई है।

संकट के पीछे कारण

  • कृषि प्रदूषण: नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से नाइट्रेट का रिसाव होता है।
  • धान-गेहूँ एकल फसल प्रणाली: उत्तर भारत में यह भूजल के क्षय को तीव्र करती है और गहरे स्तर से भारी धातुओं के अवशोषण को बढ़ाती है।
  • भू-जनित प्रदूषण: फ्लोराइड और आर्सेनिक का प्रदूषण आंशिक रूप से प्राकृतिक भूवैज्ञानिक संरचनाओं से उत्पन्न होता है, लेकिन गहरे बोरवेल खोदने से इसका जोखिम बढ़ जाता है।
  • मानवजनित कारक: औद्योगिक अपशिष्ट, अनुपचारित सीवेज, लैंडफिल का रिसाव और शहरी-ग्रामीण सीमा क्षेत्रों में अपशिष्ट फेंकने से भारी धातुएँ एवं विषैले तत्व जुड़ते हैं।
  • कमजोर भूजल शासन: भारत अभी भी उस सिद्धांत का पालन करता है कि भूमि स्वामित्व भूजल स्वामित्व प्रदान करता है, जिससे असीमित दोहन संभव होता है।
    • संस्थागत भूमिकाओं का विखंडन और सीमित निगरानी दीर्घकालिक जलभृत प्रबंधन में बाधा डालते हैं।

प्रदूषित भूजल का प्रभाव

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य लागत: आर्सेनिक और फ्लोराइड का संपर्क दीर्घकालिक अस्थि, तंत्रिका एवं संज्ञानात्मक हानि का कारण बनता है, जो बच्चों को असमान रूप से प्रभावित करता है।
    • गुजरात के मेहसाणा जिले में फ्लोरोसिस ने कमाई की क्षमता घटा दी है और परिवारों को वेतन हानि, ऋण एवं चिकित्सा व्ययों के चक्र में फँसा दिया है।
  • उत्पादकता पर प्रभाव: भारी धातुएँ और रासायनिक अवशेष फसल उत्पादन को कम करते हैं, मृदा के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं तथा खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं।
    • शोध से पता चलता है कि प्रदूषित जल निकायों के पास स्थित खेतों में कम उत्पादकता और आय होती है।
  • भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा: अंतरराष्ट्रीय बाजार स्वच्छ, ट्रेस करने योग्य और अनुपालन कृषि उत्पादों की माँग बढ़ा रहे हैं।
    • निर्यात अस्वीकृति के उदाहरण उभरते जोखिमों का संकेत देते हैं; यदि प्रदूषण प्रमुख फसलों तक फैलता है तो भारत का कृषि निर्यात क्षेत्र गंभीर आघातों का सामना कर सकता है।

सरकारी पहलें

  • जल शक्ति अभियान (2019): जल संरक्षण और जल-संकटग्रस्त जिलों में भूजल पुनर्भरण पर केंद्रित।
  • अमृत सरोवर मिशन: प्रति जिले 75 जल निकायों के विकास और पुनर्जीवन का लक्ष्य।
  • राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम (NAQUIM): सतत प्रबंधन हेतु जलभृतों की पहचान और समझ में सहायता करता है।
  • अटल भूजल योजना: प्राथमिक क्षेत्रों में, जहाँ स्थिति गंभीर और अति-शोषित है, भूजल प्रबंधन में सुधार के लिए शुरू की गई।

आगे की राह

  • व्यापक नीतिगत सुधार: अति-शोषित क्षेत्रों में सख्त दोहन सीमा स्थापित करें और जल-कुशल कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करें।
  • एकीकृत निगरानी प्रणाली: वास्तविक समय डेटा विश्लेषण का उपयोग करके प्रदूषण प्रवृत्तियों को ट्रैक करें और भविष्य के जोखिमों का पूर्वानुमान लगाएँ।
  • जन जागरूकता अभियान: समुदायों को प्रदूषण जोखिमों के बारे में शिक्षित करें और कम लागत वाली उपचार तकनीकों को अपनाने को बढ़ावा दें।
  • लक्षित उपचार: क्षेत्र-विशिष्ट समाधान लागू करें जैसे लवणता-प्रवण क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन और फ्लोराइड व नाइट्रेट प्रदूषण को रोकने के लिए फॉस्फेट कमी रणनीतियाँ।

Source: BS

 

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