भारतीय न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)

पाठ्यक्रम: GS2/न्यायपालिका; GS3/आईटी की भूमिका

संदर्भ

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान, जिसमें न्यायालयों में एआई के दुरुपयोग की रोकथाम हेतु दिशा-निर्देश मांगे गए थे, यह टिप्पणी की कि न्यायाधीश एआई के उपयोग के जोखिमों को लेकर ‘अत्यधिक सचेत’ हैं।

न्यायालयों में एआई का वादा

प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NLP), मशीन लर्निंग (ML), ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन (OCR), और प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स जैसी एआई तकनीकों को भारतीय न्यायिक प्रणाली में लागू किया जा रहा है।

भारतीय न्यायपालिका में एआई के प्रमुख लाभ

  • मुकदमों का भार कम करना: एआई उपकरणों का उपयोग केस प्रबंधन को सुव्यवस्थित करने, सुनवाई को प्राथमिकता देने और कानूनी शोध में सहायता करने के लिए किया जा रहा है।
    • वर्तमान में भारतीय न्यायालयों में 4.8 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
  • अनुवाद और कार्यवाही का लिप्यंतरण: एआई-संचालित उपकरण न्यायालय के दस्तावेजों को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने और न्यायालय की कार्यवाही को वास्तविक समय में ट्रांसक्राइब करने में सहायता कर रहे हैं, जिससे पहुँच एवं रिकॉर्ड-रखरखाव में सुधार हो रहा है।
  • कानूनी शोध और प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स में एआई: एआई उपकरण अब प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स का समर्थन करते हैं, जिससे वकील ऐतिहासिक डेटा के आधार पर मामलों के परिणाम का आकलन कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए, दशकों के निर्णय पर प्रशिक्षित एआई मॉडल विशेष कानूनी तर्कों की सफलता की संभावना का अनुमान लगा सकते हैं।
  • न्यायालय की दक्षता बढ़ाना: एआई न केवल निर्णय विश्लेषण में बल्कि प्रशासनिक दक्षता में भी सहायता करता है।
    • डिजिटल कोर्ट्स विज़न 2047 के अंतर्गत विकसित उपकरण केस आवंटन को न्यायाधीश की विशेषज्ञता के आधार पर सुव्यवस्थित करते हैं, दोहराए जाने वाले मुकदमों की पहचान करते हैं और प्रक्रियात्मक अनुपालन में देरी का पता लगाते हैं।
    • ये पहलें, NeGD और MeitY द्वारा समर्थित, लंबित मामलों को कम करने एवं केस सूचीकरण में पारदर्शिता बढ़ाने का लक्ष्य रखती हैं।

प्रमुख एआई उपकरण, पहलें और एआई अपनाना

  • नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG): इसे डिजिटल इंडिया के अंतर्गत लॉन्च किया गया था, जो विश्लेषण का उपयोग करके न्यायालयों में लंबित मामलों और निपटान दरों को ट्रैक करता है।
  • सुप्रीम कोर्ट पोर्टल फॉर असिस्टेंस इन कोर्ट एफिशिएंसी (SUPACE): यह तथ्यों को संसाधित करता है और बड़े पैमाने पर केस डेटा का प्रबंधन करता है ताकि न्यायाधीशों की ‘सहायता’ की जा सके, निर्णय लिए बिना एक बल गुणक के रूप में कार्य करता है।
  • सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद सॉफ़्टवेयर (SUVAS): यह न्यायिक दस्तावेजों का अंग्रेज़ी से स्थानीय भाषाओं (और इसके विपरीत) में अनुवाद करता है ताकि गैर-अंग्रेज़ी भाषी लोगों के लिए न्याय तक पहुँच में सुधार हो सके।
  • लीगल रिसर्च एनालिसिस असिस्टेंट (LegRAA): एक नया उपकरण, जो पायलट चरण में है, विशेष रूप से न्यायाधीशों को कानूनी शोध और दस्तावेज़ विश्लेषण में सहायता करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • डिजिटल कोर्ट्स 2.1: यूनिफाइड ज्यूडिशियल प्लेटफ़ॉर्म: यह न्यायाधीशों के लिए एक सिंगल-विंडो प्लेटफ़ॉर्म है जो निम्नलिखित को एकीकृत करता है:
    • ASR-SHRUTI: आदेशों को डिक्टेट करने के लिए एआई वॉयस-टू-टेक्स्ट।
    • PANINI: आदेशों का मसौदा तैयार करने में सहायता के लिए अनुवाद सुविधा।
  • डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ जस्टिस रिपोर्ट: यह पुलिस, फॉरेंसिक, जेल और न्यायालयों में एआई को एकीकृत करने के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करती है ताकि एकीकृत न्याय वितरण पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जा सके।

न्यायिक सावधानी और उभरती चुनौतियाँ

  • हैलुसिनेशन’ और नकली मामले: यह मान्यता प्राप्त जोखिम है कि जनरेटिव एआई काल्पनिक केस लॉ (हैलुसिनेशन) बना सकता है।
    • CJI ने चेतावनी दी है कि एआई-जनित शोध की पुष्टि करना वकीलों और न्यायाधीशों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है।
  • एल्गोरिदमिक पक्षपात: पश्चिमी डेटा पर प्रशिक्षित एआई मॉडल भारतीय संदर्भ में पक्षपाती या गलत हो सकते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय की एआई समिति इन उपकरणों में प्रणालीगत पक्षपात या अनपेक्षित सामग्री की सक्रिय निगरानी कर रही है।
  • एआई के लिए कोई औपचारिक नीति नहीं: विधि और न्याय मंत्रालय ने पुष्टि की है कि अब तक निर्णय लेने में एआई के लिए कोई औपचारिक नीति नहीं है।
    • सभी एआई समाधान वर्तमान में केवल ई-कोर्ट्स फेज़ III की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) में अनुमोदित क्षेत्रों में उपयोग किए जाते हैं।

आगे की राह: नैतिक और कानूनी ढाँचे

  • सुदृढ़ नियामक ढाँचे: एआई निर्णय लेने में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए।
  • अंतरराष्ट्रीय उदाहरण: एस्टोनिया और सिंगापुर जैसे देशों ने छोटे मामलों के लिए एआई-संचालित न्यायिक प्रक्रियाओं का परीक्षण किया है।
  • नैतिक दिशा-निर्देश: दुरुपयोग को रोकने और मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए।
  • क्षमता निर्माण: न्यायाधीशों, वकीलों एवं न्यायालय कर्मचारियों को एआई साक्षरता और डिजिटल उपकरणों में प्रशिक्षित करना।
  • सर्वोच्च न्यायालय  ने बल दिया है कि एआई केवल एक ‘सहायक तकनीक’ हो सकता है, निर्णय लेने का अधिकार नहीं, और मानव न्यायाधीशों की प्रधानता को पुनः स्थापित किया है।
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति ने 2024 में न्याय वितरण के लिए एक राष्ट्रीय एआई नीति का प्रस्ताव रखा है, जो एआई उपयोग में पारदर्शिता, व्याख्येयता और जवाबदेही पर केंद्रित है।

Source: TH

 

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