23वां भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

भारत और रूस ने अपनी 23वीं वार्षिक द्विपक्षीय शिखर बैठक आयोजित की, जो एक महत्वपूर्ण माइलस्टोन है — 2000 की रणनीतिक साझेदारी घोषणा के 25 वर्ष।

यात्रा के प्रमुख परिणाम

  • आर्थिक कार्यक्रम 2030: नेताओं ने भारत-रूस आर्थिक सहयोग के रणनीतिक क्षेत्रों के विकास हेतु 2030 तक के कार्यक्रम (Programme 2030) को अपनाने का स्वागत किया।
  • व्यापार लक्ष्य: दोनों पक्षों ने शुल्क और गैर-शुल्क व्यापार बाधाओं को दूर करने पर बल दिया ताकि 2030 तक संशोधित द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य 100 अरब अमेरिकी डॉलर समय पर प्राप्त किया जा सके।
  • रणनीतिक समझौते हस्ताक्षरित: भारत और रूस ने रक्षा, व्यापार, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति एवं मीडिया से संबंधित सोलह समझौतों का आदान-प्रदान किया।
  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA) प्रयास: दोनों पक्ष यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते के शीघ्र निष्कर्ष की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
  • प्रवासन सहयोग: भारत जल्द ही रूसी नागरिकों के लिए 30-दिन का निःशुल्क ई-टूरिस्ट वीज़ा और 30-दिन का समूह पर्यटक वीज़ा शुरू करेगा।
  • वैश्विक और बहुपक्षीय मंचों में सहयोग: रूसी पक्ष ने अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस में शामिल होने के लिए फ्रेमवर्क समझौते को अपनाने का निर्णय लिया।
    • दोनों ने BRICS, SCO, G20 आदि में सहयोग दोहराया।

यात्रा का महत्व

  • भारत की रणनीतिक स्वायत्तता: यह यात्रा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति निर्णय लेने की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।
    • पश्चिमी दबाव के बावजूद रूसी राष्ट्रपति की मेजबानी करके भारत ने अपने भू-राजनीतिक रुख को स्वतंत्र रूप से प्रदर्शित किया।
  • रक्षा सहयोग: रूस अभी भी भारत की 60–70% रक्षा सामग्री प्रदान करता है, जिससे साझेदारी भारत की सैन्य तत्परता के लिए महत्वपूर्ण है।
    • दोनों पक्षों ने संयुक्त अनुसंधान एवं विकास, सह-विकास और “मेक इन इंडिया” के तहत अगली पीढ़ी की प्रणालियों के निर्माण को आगे बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।
  • आर्थिक और व्यापारिक परिवर्तन: रूस से रक्षा और ऊर्जा आयात के कारण भारत को भारी व्यापार घाटे का सामना करना पड़ा है, जिसने दोनों सरकारों को सहयोग विविधीकरण के लिए प्रेरित किया।
    • 2030 आर्थिक सहयोग योजना को प्रौद्योगिकी, विनिर्माण, कृषि, फार्मास्यूटिकल्स और निवेश में सहयोग बढ़ाने हेतु अपनाया गया।
  • ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक आपूर्ति श्रृंखला: रूस भारत का प्रमुख कच्चे तेल का आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, जो पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारी छूट प्रदान करता है।
    • यात्रा के दौरान राष्ट्रपति पुतिन ने भारत को निरंतर ईंधन आपूर्ति का आश्वासन दिया, हालांकि भारत ने सावधानी बरती और कहा कि ऊर्जा खरीद निर्णय बदलते बाजार गतिशीलता पर आधारित होंगे।
  • दीर्घकालिक लचीलापन और अनुकूलनशीलता: 2000 की रणनीतिक साझेदारी घोषणा के 25 वर्ष पूरे होने पर यह यात्रा वैश्विक परिवर्तनों के बीच निरंतरता को दर्शाती है — शीत युद्ध के बाद के युग से लेकर रूस के वर्तमान अलगाव तक।
    • यह लचीलापन इंगित करता है कि संबंध लेन-देन आधारित नहीं बल्कि मूल रूप से पारस्परिक रणनीतिक हितों पर आधारित हैं।

भारत–रूस साझेदारी कैसे भारत को अमेरिकी शुल्क चुनौतियों से निपटने में सहायता कर सकती है?

  • ऊर्जा सुरक्षा और लागत लाभ: रियायती दरों पर रूसी कच्चे तेल का आयात भारत को अमेरिकी दंडों के बावजूद अपनी ऊर्जा टोकरी स्थिर रखने में सहायता करता है।
  • बाज़ार विविधीकरण: रूस (और व्यापक यूरेशियन क्षेत्र) भारतीय निर्यात के लिए वैकल्पिक बाज़ार प्रदान करता है, जिससे अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता कम होती है।
    • प्रस्तावित भारत–यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) FTA रूस, बेलारूस, आर्मेनिया, कज़ाखस्तान और किर्गिस्तान में बड़े बाज़ार तक वरीयता प्राप्त पहुँच प्रदान कर सकता है।
  • कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स लाभ: अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), चेन्नई–व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारा तथा उत्तरी समुद्री मार्ग जैसे प्रोजेक्ट यूरोप एवं मध्य एशिया तक निर्यात के लिए परिवहन समय और लागत को कम कर सकते हैं।
    •  यह अमेरिकी शुल्कों के कारण प्रतिस्पर्धात्मकता की हानि की पूर्ति करता है।
  • राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार और भुगतान तंत्र: रुपये–रूबल निपटान प्रणाली को सुदृढ़ करना भारत को अमेरिकी डॉलर-प्रधान व्यापार प्रतिबंधों से बचाता है।
  • रक्षा और रणनीतिक तकनीकी सहयोग: रूस रक्षा तकनीक और परमाणु ऊर्जा सहयोग का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, जिन क्षेत्रों में अमेरिका प्रतिबंध लगा सकता है।
    • रूस के साथ सुदृढ़ संबंध सुनिश्चित करते हैं कि भारत रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखे और महत्वपूर्ण तकनीकों के लिए अमेरिका पर निर्भर न हो।
  • भू-राजनीति में रणनीतिक संतुलन: रूस के साथ विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को गहरा करना अमेरिका को संकेत देता है कि भारत के पास व्यवहार्य विकल्प हैं।
    • इससे भारत की अमेरिकी शुल्क राहत पाने की वार्ता स्थिति सुदृढ़ हो सकती है।

निष्कर्ष

  • भारत–रूस साझेदारी भारत को ऊर्जा सुरक्षा, बाज़ार विविधीकरण और रणनीतिक स्वायत्तता प्रदान करती है, विशेषकर उस समय जब अमेरिका से शुल्क और भू-राजनीतिक दबाव है। 
  • रूसी संबंधों का लाभ उठाकर भारत अमेरिकी व्यापार प्रतिबंधों के प्रति अपनी संवेदनशीलता को कम कर सकता है, जबकि 2030 तक रूस के साथ 100 अरब अमेरिकी डॉलर के दीर्घकालिक व्यापार लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकता है।

Source: TH

 

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