प्रभावी श्रम सुधारों के लिए केंद्र-राज्य सहयोग

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • हाल ही में घोषित चार श्रम संहिताओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सुदृढ़ केंद्र-राज्य सहयोग आवश्यक है, जो सरकार के सभी स्तरों पर एकीकृत नीति क्रियान्वयन पर निर्भर करता है।
चार श्रम संहिताओं का अवलोकन 
– श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार, श्रम सुधारों ने 29 केंद्रीय कानूनों को चार संहिताओं में समेकित किया है:
वेतन संहिता, 2019: न्यूनतम वेतन का सार्वभौमीकरण और समय पर भुगतान सुनिश्चित करता है।
औद्योगिक संबंध संहिता, 2020: विवाद समाधान को सरल बनाता है और नियुक्ति में लचीलापन बढ़ाता है।
सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: गिग वर्कर्स, प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स और असंगठित क्षेत्र तक सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करता है।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियाँ संहिता, 2020: कार्यस्थल की सुरक्षा और कल्याण मानकों को बढ़ाता है।
– नया ढाँचा अनुपालन को सरल बनाने, श्रमिक संरक्षण को सुदृढ़ करने और नियोक्ताओं को अधिक परिचालन लचीलापन प्रदान करने का वादा करता है।

नई श्रम संहिताएँ: दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान

  • एकीकृत कानूनी संरचना: संहिताएँ परस्पर विरोधी और असंगत क़ानूनों को एकीकृत संरचना से प्रतिस्थापित करती हैं।
    • यह एकल पंजीकरण, समेकित रिटर्न और सरल निरीक्षण की व्यवस्था लाता है, जिससे प्रशासनिक देरी एवं अनुपालन भार में कमी आती है।
  • न्यायसंगत और पूर्वानुमेय वेतन: राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन राज्यों के लिए मार्गदर्शक मानक के रूप में कार्य करता है, जिससे अंतर-राज्यीय असमानताएँ कम होती हैं और निम्न-आय श्रमिकों के लिए आय स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
    • यह न्यायसंगत पारिश्रमिक और पूरे भारत में आय का एक समान आधार सुनिश्चित करता है।
  • औपचारिककरण और पारदर्शिता: संहिताएँ नियुक्ति पत्र अनिवार्य करती हैं, वेतन की परिभाषा स्पष्ट करती हैं और भुगतान समयसीमा निर्दिष्ट करती हैं — ऐसे उपाय जो विवादों को कम करते हैं, जवाबदेही को प्रोत्साहित करते हैं तथा नियोक्ता–कर्मचारी विश्वास को सुदृढ़ करते हैं।
  • कार्यस्थल सुरक्षा और समावेशन: सुरक्षा समितियाँ, समय-समय पर स्वास्थ्य जाँच और महिलाओं के लिए सहमति-आधारित रात्रि पाली श्रमिक कल्याण एवं लैंगिक समावेशन के प्रति सक्रिय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।
    • ये प्रावधान सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करते हैं और कार्यस्थल स्वास्थ्य निगरानी को संस्थागत बनाते हैं।
  • गिग वर्कर्स तक सामाजिक सुरक्षा का विस्तार: संहिताएँ भारत के बदलते रोजगार मॉडलों को मान्यता देती हैं, गिग एवं प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में शामिल करती हैं, जिससे असंगठित और डिजिटल अर्थव्यवस्था को औपचारिक कल्याण प्रणाली के संरक्षण जाल में लाया जाता है।
  • नियत-अवधि रोजगार की मान्यता: नियत-अवधि अनुबंधों को पूर्ण वैधानिक लाभों के साथ औपचारिक मान्यता — जैसे एक वर्ष बाद ग्रेच्युटी पात्रता — नियोक्ता लचीलेपन और कर्मचारी समानता के बीच संतुलन स्थापित करती है।

उद्योग और श्रमिकों पर प्रभाव

  • नियोक्ताओं के लिए: सरल अनुपालन लेन-देन लागत को कम करता है और व्यापार करने में आसानी को बढ़ाता है, जिससे अधिक चुस्त विस्तार निर्णय संभव होते हैं।
    • शिफ्ट डिज़ाइन और नियत-अवधि रोजगार में लचीलापन कंपनियों को मांग चक्रों के अनुसार स्टाफिंग को संरेखित करने में सक्षम बनाता है, बिना श्रम अधिकारों को कमजोर किए। 
    • हालाँकि, व्यवसायों को संक्रमण लागत का सामना करना पड़ सकता है — जैसे HR प्रणालियों को अद्यतन करना, ग्रेच्युटी अनुपालन सुनिश्चित करना एवं अवकाश नकदीकरण दायित्वों का प्रबंधन करना।
  • श्रमिकों के लिए: कर्मचारियों को अधिक आय सुरक्षा, स्पष्ट अधिकार और सुरक्षित कार्यस्थल मिलते हैं।
    • समय के साथ, इन सुधारों से उत्पादकता बढ़ने, प्रतिधारण में सुधार और औपचारिक रोजगार प्रणालियों में श्रमिक विश्वास सुदृढ़ होने की संभावना है।

केंद्र-राज्य सहयोग क्यों महत्वपूर्ण है?

  • संवैधानिक जनादेश: श्रम भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों को इस पर कानून बनाने का अधिकार है।
    • वास्तविक क्रियान्वयन राज्यों द्वारा संबंधित नियमों को तैयार करने तथा अधिसूचित करने पर निर्भर करता है।
  • क्रियान्वयन बाधाएँ: नियम बनाने में एकरूपता की कमी ने श्रम संहिताओं के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन में देरी की है।
    • यह व्यवसायों और श्रमिकों के लिए अनिश्चितता उत्पन्न करता है, श्रम कानूनों को सरल एवं सामंजस्यपूर्ण बनाने के उद्देश्य को विफल करता है।
  • क्षमता सीमाएँ: कुछ राज्यों में जटिल श्रम विनियमों को तैयार और लागू करने की प्रशासनिक क्षमता या तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव है।

केंद्र-राज्य समन्वय के लिए प्रयास

  • केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने नियम निर्माण को तीव्र करने और चिंताओं को दूर करने के लिए राज्य श्रम विभागों के साथ समीक्षा बैठकें आयोजित की हैं।
  • एक संसदीय समिति ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से संहिताओं को शीघ्र लागू करने का आग्रह किया है, विशेषकर व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थितियाँ संहिता, 2020
  • भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने श्रम और भूमि दोनों क्षेत्रों में सुधारों की पूरी क्षमता को खोलने के लिए केंद्र-राज्य समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया है।

आगे की राह

  • राज्यों में सामंजस्य: कार्य घंटे, ओवरटाइम और बोनस सीमा को नियंत्रित करने वाले नियमों में एकरूपता आवश्यक है ताकि जटिलता फिर से न आए।
    • केंद्र–राज्य सामंजस्य तंत्र मॉडल नियमों और मानकीकृत टेम्पलेट्स के साथ स्थिरता सुनिश्चित करेगा।
  • सिंगल-विंडो अनुपालन: एकीकृत डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, जैसे उन्नत श्र्म सुविधा पोर्टल, पंजीकरण और दाखिलों के लिए एक-स्टॉप समाधान के रूप में कार्य कर सकता है — जिससे दोहराव कम होगा तथा पारदर्शी, जोखिम-आधारित निरीक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
  • भावी और समन्वित क्रियान्वयन सुनिश्चित करना: जैसा कि GST और कंपनी अधिनियम सुधारों में देखा गया है, भावी क्रियान्वयन — समन्वित नियम अधिसूचनाओं, डिजिटल अवसंरचना और निरीक्षक-सह-प्रवर्तकों के लिए संयुक्त प्रशिक्षण द्वारा समर्थित — प्रभावी संक्रमण के लिए महत्वपूर्ण होगा।

निष्कर्ष 

  • भारत की श्रम संहिताएँ राष्ट्र के श्रम बाज़ार को ऐसा बनाने का एक अद्वितीय अवसर प्रस्तुत करती हैं जो व्यवसायों के लिए सरल, श्रमिकों के लिए सुरक्षित और न्यायसंगत तथा आर्थिक विकास के लिए बेहतर हो। 
  • यह सभी हितधारकों से समन्वय, स्पष्टता और प्रतिबद्धता की माँग करता है। सफलता अंततः इस बात से मापी जाएगी कि ये सुधार कितनी प्रभावी ढंग से एक समावेशी, उत्पादक और भविष्य-तैयार कार्यबल में परिवर्तित होते हैं।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में श्रम सुधारों को सफलतापूर्वक लागू करने में केंद्र-राज्य सहयोग की भूमिका का मूल्यांकन करें।

Source: BS

 

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