रैट-होल खनन: प्रकार, प्रेरित करने वाले कारक और उत्पन्न चिंताएँ

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रैट-होल खनन
रैट-होल खनन

रैट-होल माइनिंग, भारत में कोयला निष्कर्षण की एक अवैध और खतरनाक विधि, समय-समय पर खबरों में छाई रहती है। हाल ही में, इसका उपयोग उत्तराखंड सुरंग बचाव अभियान के दौरान किया गया था। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य रैट-होल खनन की जटिलताओं और इससे उत्पन्न होने वाली बहुआयामी चुनौतियों को समझाना है।

रैट-होल खनन क्या है?

रैट-होल माइनिंग/खनन का एक प्राचीन और खतरनाक विधि है, जिसमें कोयला निष्कर्षण के लिए छोटी एवं संकीर्ण सुरंगें बनाई जाती हैं, जो केवल इतनी बड़ी होती हैं कि कोई व्यक्ति रेंगकर उसमें से निकल सके।

रैट-होल से तात्पर्य जमीन में खोदे गए ऐसे संकीर्ण गड्ढों से है, जो सिर्फ एक व्यक्ति के नीचे उतरने और कोयला निकालने के लिए पर्याप्त बड़े होते हैं।

एक बार गड्ढे खोदने के पश्चात्, खनिक रस्सियों या बांस की सीढ़ियों के सहारे कोयले की परतों तक पहुँचते हैं। फिर वे फावड़े, कुल्हाड़ी जैसे आदिम उपकरणों का उपयोग करके मैन्युअल रूप से कोयले का निष्कर्षण करते हैं।

रैट-होल खनन के प्रकार

सामान्यत: रैट-होल खनन दो प्रकार का होता है:

साइड कटिंग (Side Cutting)इस प्रकार के रैट-होल खनन में पहाड़ी ढलानों पर संकरी सुरंगें खोदी जाती हैं। श्रमिक कोयले की परत मिलने तक अंदर जाने के लिए इस सुरंग का उपयोग करते हैं।
बॉक्स कटिंग (Box Cutting)इस प्रकार के रैट-होल खनन में पहले 10 से 100 वर्ग मीटर के आकार का एक आयताकार उद्घार बनाया जाता है। फिर उस उद्घार का उपयोग कोयले की परत मिलने तक गहराई तक एक ऊर्ध्वाधर गड्ढा खोदने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में, फिर चूहे के छेद के आकार की सुरंगों को क्षैतिज रूप से खोदा जाता है जिसके माध्यम से श्रमिक कोयले का निष्कर्षण करते है।

रैट-होल खनन के प्रचलित क्षेत्र

कोयला खनन की इस तकनीक का उपयोग आमतौर पर पूर्वोत्तर राज्यों, विशेषकर मेघालय में प्रचलित है।

कोयले खनन की इस विधि को विनियमित करने या प्रतिबंधित करने के लिए राज्य सरकारों के कई प्रयासों के बावजूद, वे इन क्षेत्रों में प्रचलित हैं। इस तकनीक के प्रचलन के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

  • भौगोलिक कारण: ये क्षेत्र मुख्य रूप पहाड़ी इलाके हैं जहाँ कोयले की परतें बहुत पतली होती हैं। इससे खुला कोयला खनन या बड़े गड्ढे को खोदना बहुत कठिन और आर्थिक रूप से गैर-लाभकारी हो जाता है। परिणामस्वरूप, खनिक रैट-होल खनन को प्राथमिकता देते हैं।
    • झारखंड और छत्तीसगढ़ में ऐसे मामले नहीं देखे जाते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में कोयले की परतें मोटी होती हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक कारण: इन क्षेत्रों के पिछड़ेपन का तात्पर्य है कि यहाँ शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी है। इस प्रकार, स्थानीय लोग रैट-होल खदानों को आजीविका कमाने के एक अवसर के रूप में देखते हैं।
  • आर्थिक कारण: कम निवेश और अच्छे रिटर्न/ प्रतिफल के कारण, निवेशक इस प्रकार के खनन को पसंद करते हैं।

रैट-होल खनन से उत्पन्न चिंताएँ

पर्यावरणीय मुद्दे

  • वनों की कटाई: रैट-होल खदानों को बनाने के लिए अक्सर पेड़ों को काट दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर वनों की कटाई होती है। इससे प्राकृतिक आवासों का विनाश होता है और जैव विविधता को खतरा होता है।
  • जल प्रदूषण: रैट-होल खदानों से निकलने वाला जल हानिकारक रसायनों और प्रदूषकों के साथ आस-पास के जल स्रोतों को दूषित करता है। यह सतही और भूजल की गुणवत्ता को खराब करता है और साथ ही जलीय पारिस्थितिक तंत्र के लिए भी खतरा उत्पन्न होता है।
  • अम्लीकरण: ये खदानें अम्लीय अपवाह का कारण बनती हैं, जिसे एसिड माइन ड्रेनेज (AMD)कहा जाता है। इससे जैव विविधता कम होने के साथ-साथ प्रभावित जल निकायों में जल की गुणवत्ता भी कम हो जाती है।
  • भूमि क्षरण: रैट-होल खनन के परिणामस्वरूप मिट्टी की ऊपरी परत का क्षरण होता है। इससे बड़ी मात्रा में जमीन अनुत्पादक और बंजर हो जाती है।
  • वायु प्रदूषण: रैट-होल खदानों में आमतौर पर उचित वेंटिलेशन की कमी होती है। और साथ ही, कोयले की उपस्थिति होने से, यह कोयले के प्रज्वलन को बढ़ावा देती है। ये सभी वायु प्रदूषण की समस्या को बढ़ाते हैं।

सामाजिक और मानवाधिकार के मुद्दे

  • असुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ: यह तकनीक प्राचीन होने के कारण, इसमें पेशेवर सुरंग बनाना या सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करना शामिल नहीं है। वर्षा के मौसम में ये खदानें और भी खतरनाक हो जाती हैं जब खनन क्षेत्रों में जल भर जाता है। इन सभी कारणों से दुर्घटनाएँ होती हैं, जिनमें कई श्रमिकों की मृत्यु भी शामिल है।
  • श्रम अधिकारों से समझौता: इस प्रकार के खनन में खतरनाक काम करने की परिस्थितियाँ शामिल होती है, इस प्रकार श्रम अधिकारों से समझौता होता है।
    • बाल श्रम: मुख्य रूप से इस प्रकार के खनन में बच्चों को काम पर रखा जाता है क्योंकि उनके पतले और छोटे शरीर से गहराई तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। इस प्रकार, रैट-होल खनन बाल श्रम को बढ़ावा देता है।
  • सामुदायिक विस्थापन: अनियमित रैट-होल खनन से स्थानीय समुदायों का विस्थापन होता है। इससे आजीविका की हानि जैसे कई सामाजिक-आर्थिक मुद्दे पैदा होते है।

रैट-होल खनन पर NGT का प्रतिबंध

रैट-होल खनन के द्वारा पैदा होने वाली असंख्य चिंताओं के कारण, राष्ट्रीय हरित अधिकार न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने 2014 में मेघालय में इस खनन विधि पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालाँकि, राज्य सरकार ने तब उच्चतम न्यायालय में आदेश के खिलाफ अपील की और यह प्रथा राज्य में आज भी प्रचलित है।

2022 में मेघालय उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक पैनल ने पाया कि मेघालय में रैट-होल खनन बिना किसी विनियमन के अब भी जारी है।

रैट-होल खनन पर NGT का प्रतिबंध

रैट-होल खनन के द्वारा पैदा होने वाली असंख्य चिंताओं के कारण, राष्ट्रीय हरित अधिकार न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने 2014 में मेघालय में इस खनन विधि पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालाँकि, राज्य सरकार ने तब उच्चतम न्यायालय में आदेश के खिलाफ अपील की और यह प्रथा राज्य में आज भी प्रचलित है।

2022 में मेघालय उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक पैनल ने पाया कि मेघालय में रैट-होल खनन बिना किसी विनियमन के अब भी जारी है।

समाधान और उपाय

रैट-होल खनन के खतरों से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यहाँ कुछ संभावित समाधान और उपाय दिए गए हैं:

  • नियामक उपायों को मजबूत बनाना और लागू करना: प्रभावी कानून बनाने और लागू करने की जरूरत है जो रैट-होल खनन को पूरी तरह से प्रतिबंधित करे और उल्लंघन के लिए कठोर दंड निर्धारित करे।
    • सरकार को बेहतर निगरानी प्रणाली स्थापित करनी चाहिए ताकि वे अवैध गतिविधियों का पता लगा सकें और उन पर अंकुश लगा सकें।
  • आधुनिक खनन तकनीकों को बढ़ावा देना: सरकार को कोयला खनन के आधुनिक और सुरक्षित तरीकों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे न केवल पर्यावरणीय नुकसान कम होगा बल्कि श्रमिकों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।
    • स्थानीय समुदाय को इन आधुनिक तकनीकों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए और उन्हें अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • स्थानीय समुदाय को सशक्त बनाना: यह महत्त्वपूर्ण है कि स्थानीय समुदायों को वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान किए जाएं। इससे उन्हें खतरनाक और गैर-कानूनी रैट-होल खनन पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
    • सरकार को समुदाय-आधारित विकास कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए जो शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देते हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करना: कोयले पर निर्भरता कम करना महत्त्वपूर्ण है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर, पवन और जलविद्युत में निवेश करके, भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को अधिक टिकाऊ तरीके से पूरा कर सकता है।
    • इससे न केवल रैट-होल खनन जैसी हानिकारक गतिविधियों को कम करने में मदद मिलेगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को भी बढावा मिलेगा।

रैट-होल खनन से पर्यावरण और मानव जीवन दोनों के लिए गंभीर ख़तरा उत्पन्न होता है। जैसे कि ऊपर सुझाव दिये गए है, इस प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।

संबंधित तथ्य

उत्तराखंड सुरंग बचाव अभियान: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिल्कयारा बेंड बारकोट सुरंग ढहने से लगभग 40 मजदूर फंस गए थे। बचाव अभियान में बरमा मशीनों के असफल होने के बाद चूहा-छेद खनिकों को बुलाया गया था। खनिकों ने सुरंग के मलबे को हटाने और फंसे हुए मजदूरों तक पहुंचने के लिए अपने पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल किया। 17 दिनों के कठिन परिश्रम के बाद सभी मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।

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