मुद्रा बाजार: अर्थ, संरचना, उपकरण, भूमिकाएँ और संबंधित तथ्य

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मुद्रा बाजार
मुद्रा बाजार

मुद्रा बाजार (Money Market), वित्तीय बाजार के एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में बैंकों, सरकारों एवं निगमों के लिए अल्पकालिक दायित्वों के वित्तपोषण तथा तरलता के प्रबंधन के लिए अभिन्न अंग है। NEXT IAS के इस लेख का उद्देश्य मुद्रा बाजार का विस्तार से अध्ययन करना है, जिसके अंतर्गत इसके अर्थ, संरचना, प्रमुख उपकरण, भूमिकाएँ और अन्य संबंधित अवधारणाएँ शामिल है।

मुद्रा बाजार
  • मुद्रा बाजार किसी अर्थव्यवस्था का एक अल्पकालिक वित्तीय बाजार होता है जिसमें 1 वर्ष तक की परिपक्वता वाली अत्यधिक तरल (High Liquidity) और अल्पकालिक वित्तीय परिसंपत्तियों (hort maturity period) का क्रय-विक्रय किया जाता है।
  • इस प्रकार, मुद्रा बाजार के द्वारा कार्यशील पूँजी (Working capital) के अल्पकालिक उधार आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है।
  • कम परिपक्वता अवधि के कारण, यह प्रतिभूतियों (Securities) को उच्च तरलता (High Liquidity) प्रदान करता है, इसलिए मुद्रा बाजार निवेश को नकद निवेश (Cash Investments) भी कहा जाता है।
वित्तीय बाजार (Financial Market) एक व्यापक शब्द है, जो एक ऐसी व्यवस्था को संदर्भित करता है जहाँ क्रेता और विक्रेता वित्तीय साधनों जैसे इक्विटी, बॉन्ड, मुद्राओं और डेरिवेटिव के व्यापार में भाग लेते हैं।
– वित्तीय बाजार को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
1. मुद्रा बाजार (Money Market): 1 वर्ष तक की परिपक्वता के साथ अल्पकालिक वित्तीय परिसंपत्तियों (Short-Term Financial Assets) के लेन-देन के लिए बाज़ार;
2.पूँजी बाजार (Capital Market): 1 वर्ष से अधिक मध्यम और दीर्घकालिक वित्तीय परिसंपत्तियों के कारोबार के लिए बाज़ार।

सामान्यत: भारत में मुद्रा बाजार में दो क्षेत्र शामिल हैं:-

भारत में मुद्रा बाजार के इस क्षेत्र को संचालन के लिए बाजार नियामकों से पंजीकरण, अनुमोदन और लाइसेंस प्राप्त करना होता है।
इस क्षेत्र को संगठित इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसे RBI और अन्य बाजार नियामकों द्वारा व्यवस्थित रूप से नियंत्रित एवं समन्वित किया जाता है।
भारत में संगठित मुद्रा बाजार में प्रमुख भागीदारों में शामिल हैं – RBI, बैंक, NBFC, म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियाँ आदि।

  • भारत में मुद्रा बाजार का वह क्षेत्र, जो न तो पंजीकृत और न ही विनियमित किया जाता है।
  • इसे असंगठित क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि यह आरबीआई या किसी अन्य बाजार नियामक द्वारा व्यवस्थित रूप से समन्वित नहीं है।
  • भारत में असंगठित मुद्रा बाजार में प्रमुख भागीदारों में शामिल हैं – स्थानीय साहूकार, चिट फंड आदि।

भारत में विभिन्न प्रकार के मुद्रा बाजार उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। भारत में मुद्रा बाजार के कुछ प्रमुख उपकरणों पर निम्नलिखित अनुभागों में विस्तार से चर्चा की गई है।

  • कॉल मनी (Call Money) का तात्पर्य अंतर-बैंक उधार लेने और अल्पावधि के लिए ऋण देने से है, जो आमतौर पर एक रात से लेकर 14 दिनों तक होता है।
  • कॉल मनी (Call Money) बैंकों और वित्तीय संस्थानों को उनकी अल्पकालिक तरलता आवश्यकताओं को प्रबंधित करने में सक्षम बनाता है।
  • इन बाजारों में जिस दर पर धन को उधार लिया जाता है उसे कॉल मनी रेट (Call Money Rate) कहा जाता है।
  • माँग और आपूर्ति के आधार पर कॉल मनी दर हर घंटे परिवर्तित होती रहती है।
  • कॉल मनी (Call Money) बाजार के 2 भाग है:-

कॉल मार्केट या ओवरनाइट मार्केट

यह 1 दिन के लिए बैंकों के बीच धन के आदान-प्रदान को संदर्भित करता है।

अल्प सूचना बाजार (Short Notice Market)

यह बैंकों के बीच 14 दिनों तक की अवधि के लिए वित्तीय लेन- देन को संदर्भित करता है।

  • ट्रेजरी बिल या टी-बिल केंद्रीय सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी अल्पकालिक प्रतिभूतियाँ (Securities) है।
  • ये सरकार के लिए अल्पकालिक धन संग्रहण करने के उपकरण के रूप में कार्य करते हैं।
  • ट्रेजरी बिल (T-Bills) सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) के दो प्रकारों में से एक है।
    • एक अन्य प्रकार की सरकारी प्रतिभूति (G-Secs) में सरकारी बांड है, जिनकी परिपक्वता अवधि 1 वर्ष से अधिक होती है और इसलिए ये पूंजी बाजार (Capital Market) उपकरण होते हैं।

ट्रेजरी बिल (T-Bills) की विशेषताएँ

  • ट्रेजरी बिल अंकित मूल्य (Original Value) पर छूट पर जारी किए जाते हैं और क्रेता को परिपक्वता पर मूल मूल्य प्राप्त होता है।
    • उदाहरण के लिए, ₹100 का ट्रेजरी बिल ₹95 में खरीदा जा सकता है, लेकिन परिपक्वता तिथि पर खरीदार को ₹100 का भुगतान किया जाता है। इसे सममूल्य या अंकित मूल्य पर मोचन (Redemption) कहा जाता है।
    • इस प्रकार, वे गैर-ब्याजकारी होते हैं अर्थात 0 कूपन या 0 ब्याज, और इसलिए उन्हें 0 कूपन बॉन्ड भी कहा जाता है।
  • सरकार द्वारा समर्थित होने के कारण इन बिलों को जोखिम-मुक्त माना जाता है और ये अत्यधिक तरल होते हैं।
  • ये बिल केवल केंद्र सरकार (RBI के माध्यम से) द्वारा जारी किए जाते हैं।
    • राज्य सरकारें टी-बिल जारी नहीं करती है।
  • प्रत्यक्ष रूप से बिक्री के स्थान पर टी-बिल की बाजार में नीलामी (Auctioned) की जाती है, जिसमें प्रत्येक क्रेता अपनी बोली जमा करता है और बिल उस क्रेता को बेच दिया जाता है जो सबसे अधिक कीमत चुकाने को तैयार होता है।
    • बोली (bids) लगाने का विकल्प सरकार के लिए अधिकतम राजस्व सुनिश्चित करता है और जारी करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाता है।
  • टी-बिल न्यूनतम ₹25,000 या ₹25,000 के गुणकों में उपलब्ध हैं।
  • अब तक, RBI द्वारा जारी किए जाने वाले 3 प्रकार के T-Bills हैं:
    • 91-दिवसीय T-Bills – जिनकी परिपक्वता अवधि 91 दिन होती है।
    • 182-दिवसीय T-Bills – जिनकी परिपक्वता अवधि 182 दिन होती है।
    • 364-दिवसीय T-Bills – जिनकी परिपक्वता अवधि 364 दिन होती है।
  • टी-बिल का उपयोग बैंकों द्वारा निम्नलिखित के लिए किया जा सकता है:
    • अपनी SLR आवश्यकताओं के हिस्से के रूप में बनाए रखना।
    • रेपो के तहत ऋण प्राप्त करने के लिए RBIs को संपार्श्विक (Collateral) के रूप में प्रदान करना।
  • टी-बिलों के समान, CMBs भी अल्पकालिक प्रतिभूतियां हैं जो आरबीआई द्वारा केंद्र सरकार की ओर से विक्रय की जाती हैं, लेकिन इनकी परिपक्वता अवधि 91 दिनों से कम होती है।
  • इनका उद्देश्य भारत सरकार के अल्पकालिक नकदी प्रवाह (Cash Flow) के असंतुलन को पूरा करना भी है।
  • टी-बिलों के समान, CMBs भी RBIs द्वारा नीलामियों (Auctions) के माध्यम से अंकित मूल्य (Face Value) पर छूट पर जारी किए जाते हैं।
  • बैंकों को अपनी SLR आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए CMBs रखने की अनुमति है।
  • अर्थोपाय अग्रिम (WMAs) आरबीआई द्वारा सरकारों को दिए गए अस्थायी ऋण या ओवरड्राफ्ट सुविधाएँ हैं।
  • यह सुविधा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों दोनों के लिए उपलब्ध है।
  • अर्थोपाय अग्रिम ((WMAs) को RBIs अधिनियम की धारा 17(5) के तहत आरबीआई और भारत सरकार के बीच एक समझौते के अनुसार प्रस्तुत किया गया था।
  • इन्होंने तदर्थ टी-बिलों (Ad-hoc T-Bills) का स्थान ले लिया, जिनका उपयोग सरकार द्वारा किसी विशेष उद्देश्य के लिए अल्पकालिक व्यय को पूरा करने के लिए किया जाता था।
  • अर्थोपाय अग्रिम (WMAs) को सरकार के लिए वित्त के स्रोत के रूप में नहीं माना जाता है। बल्कि, उनका लक्ष्य सरकार के व्यय और अपेक्षित प्राप्तियों के बीच असंतुलन के अंतर की भरपाई करना है।
  • यदि सरकार सामान्य अर्थोपाय अग्रिम (WMAs) के तहत RBIs से तत्काल नकदी प्राप्त करती है, तो उसे 90 दिनों के भीतर राशि वापस करनी होगी। यदि अर्थोपाय अग्रिम (WMAs) का पुनर्भुगतान 90 दिनों से अधिक हो जाता है, तो इसे ओवरड्राफ्ट माना जाता है।
  • सामान्य अर्थोपाय अग्रिम (WMAs) के लिए RBIs द्वारा लिया जाने वाला ब्याज दर रेपो दर के बराबर होता है, जबकि ओवरड्राफ्ट के लिए ब्याज दर (रेपो दर + 2%) होती है।
  • जमा प्रमाणपत्र (CD), अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) और कुछ अन्य वित्तीय संस्थानों (FIs) द्वारा जारी एक उपाय साधन है जिसके अंतर्गत आरबीआई द्वारा अल्पकालिक धन जुटाने की अनुमति प्रदान की जाती है।
    • नोट: सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs को जमा प्रमाणपत्र (CDs) जारी करने की अनुमति नहीं है।
  • जमा प्रमाणपत्र (CD) ₹1 लाख के गुणकों में जारी किए जाने चाहिए, और न्यूनतम राशि ₹1 लाख होनी चाहिए।
  • इन्हें अंकित मूल्य पर छूट पर जारी किया जाता है और सममूल्य या अंकित मूल्य पर वापिस लिया जाता है।
  • इनकी परिपक्वता अवधि आमतौर पर 7 दिनों से अधिक और 1 वर्ष से कम होती है।
  • परिपक्वता तिथि से पहले CDs वापस लेने पर जुर्माना लगाया जाता है।
  • बैंकों को CDs के एवज में ऋण प्रदान करने की अनुमति नहीं है।
  • वाणिज्यिक पत्र (CP) बड़े निगमों, प्राथमिक डीलरों और वित्तीय संस्थानों (FIs) द्वारा जारी एक प्रकार का असुरक्षित, अल्पकालिक ऋण उपकरण है।
  • योग्य संस्थान अपनी अल्पकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वाणिज्यिक पत्र (CP) जारी कर सकते हैं, जैसे इन्वेंट्री प्रबंधन, वेतन व्यय का भुगतान करना, नई परियोजनाओं के लिए धन प्राप्त करना आदि।
  • वाणिज्यिक पत्र (CP) को एक असुरक्षित वचन पत्र (Unsecured Promissory Note) के रूप में जारी किया जाता है और इसे निजी रूप से रखा जाता है।
  • इन्हें ₹5 लाख के गुणकों में जारी किया जाता है, जिसकी न्यूनतम राशि ₹5 लाख होनी चाहिए।
  • इनकी परिपक्वता अवधि न्यूनतम 7 दिन और अधिकतम 1 वर्ष तक की होती है।
  • वाणिज्यिक विनिमय पत्र (CB) या व्यापार विनिमय पत्र (TB) वस्तुओं/सेवाओं के विक्रेता या क्रेता द्वारा प्रदत्त एक वचन पत्र (Negotiable Instrument) है, जो वितरित वस्तुओं/सेवाओं के मूल्य के लिए होती है।
  • विनिमय पत्र (CB) विक्रेता (प्रतिदेयकर्ता) के लिए खरीदी गई वस्तुओं या सेवाओं के लिए क्रेता (आहरणकर्ता) को ऋण देने के एक तरीके के रूप में कार्य करते हैं।
  • जब किसी वाणिज्यिक बैंक द्वारा विनिमय पत्र (CB) को स्वीकार कर लिया जाता है, तो उसे व्यापार विनिमय पत्र (TB) कहा जाता है।
    • नोट: विनिमय पत्र (CB) या व्यापार विनिमय पत्र (टीबी) को पहले वाणिज्यिक बैंक द्वारा ही छूट दी जाती है। फिर बैंक द्वारा इसे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से पुनः डिस्काउंट करवाया जाता है।
  • यह तरलता प्रबंधन के लिए एक प्रणाली प्रदान करता है। बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान अल्पकालिक अधिशेष और घाटे को संतुलित करने के लिए मुद्रा बाजार के विभिन्न उपकरणों का उपयोग करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि नकदी की उपलब्धता उनकी परिचालन आवश्यकताओं (Operational Needs) के अनुरूप है।
  • यह व्यवसायों और उद्योगों को दीर्घकालिक वित्तपोषण संसाधनों, जो अधिक महंगे और कम लचीले हो सकते हैं, में फसें बिना उनकी अल्पकालिक पूंजी आवश्यकताओं और खर्चों को पूरा करने के अवसर प्रदान कर उनके विकास को बढ़ावा प्रदान करता है।
  • यह आंतरिक और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दोनों के वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
  • यह अल्पकालिक ब्याज दरों को दर्शाता है, जो व्यापक अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • मुद्रा बाजार में ब्याज दरें अर्थव्यवस्था के लिए बेंचमार्क दरों के रूप में कार्य करती हैं। इस बाजार में विभिन्न उपकरणों की दरें व्यापक वित्तीय बाजारों में ऋण, बंधक और अन्य प्रकार के ऋणों के मूल्य निर्धारण का आधार बनती हैं।

निष्कर्ष रूप में, मुद्रा बाजार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारों के लिए तरलता और अल्पकालिक वित्त पोषण आवश्यकताओं के कुशल प्रबंधन के लिए एक प्रणाली के रूप में कार्य करता है। वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका का अर्थ है कि यह वित्तीय प्रणाली के सुचारू कामकाज के लिए महत्त्वपूर्ण है।

वचन पत्र (Promissory Note) एक कानूनी दस्तावेज है जो जारीकर्ता द्वारा किसी अन्य पक्ष (भुगतानकर्ता) को विशिष्ट नियमों और शर्तों के तहत एक निश्चित राशि का पुनर्भुगतान करने के लिखित वादे के रूप में कार्य करता है।

  • सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा जारी एक व्यापार योग्य उपकरण (Tradable Instrument) को संदर्भित करता है।
  • सरकार द्वारा समर्थित होने के कारण इन प्रतिभूतियों को जोखिम-मुक्त माना जाता है।
  • सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) मुख्य रूप से 2 प्रकार के होती है:

ट्रेजरी बिल (Treasury Bills)

  • ये अल्पकालिक सरकारी प्रतिभूतियाँ (G-Secs) हैं, जिनकी परिपक्वता अवधि 1 वर्ष से कम होती है।
    • इस प्रकार, ये एक मुद्रा बाजार उपकरण हैं, न कि पूँजी बाजार उपकरण।
  • भारत में, केवल केंद्र सरकार ही ट्रेजरी बिल (T-Bills) जारी कर सकती है।
    • राज्य सरकारों को ट्रेजरी बिल (T-Bills) जारी करने का अधिकार नहीं है।

सरकारी बांड या दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियाँ या गिल्ट-एज्ड प्रतिभूतियाँ (Government Bonds or Dated Government Securities or Gilt-Edged Securities)

  • ये दीर्घकालिक सरकारी प्रतिभूतियाँ (G-Secs) हैं, जिनकी परिपक्वता अवधि 1 वर्ष से अधिक होती है।
    • इस प्रकार, ये मुद्रा बाजार उपकरण नहीं बल्कि पूंजी बाजार उपकरण हैं।
  • भारत में, केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ही सरकारी बॉन्ड जारी कर सकती है।

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