“जो कोई कहता है कि उन्हें राजनीति में कोई रुचि नहीं है, वह डूबते हुए उस व्यक्ति की तरह है जो कहता है कि उसे जल में कोई रुचि नहीं है।”
विश्वभर के राजनीतिक नेता भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सम्मानित नेता महात्मा गाँधी जी को राजनीति के प्रतीक के रूप में पहचान रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम में अपने नेतृत्व के समय गाँधी जी ने अपने आध्यात्मिक दर्शन से प्रेरित कुछ राजनीतिक रणनीतियों का उदाहरण दिया जो आज के राजनीतिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रासंगिकता रखते हैं। उन्हें एक कुशल रणनीतिकार और एक असाधारण नेता माना जाता है जिनके विचार और रणनीतियाँ राजनीतिक क्षेत्र के लिए विशेषकर भारत में बहुत महत्त्व रखती हैं।
महात्मा गाँधी जी एक आदर्श राजनीतिक गुरु थे। अहिंसा और सत्य उनके सिद्धांत के दो प्रमुख घटक थे। महात्मा गाँधी जी ने जन सामान्य को अपने सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रेरित किया और स्वतंत्र भारत की लड़ाई जीतने के लिए जनता का नेतृत्व किया। रचनात्मकता और नवाचार उनकी “आंतरिक आवाज” (विवेक) के नैतिक अधिकार पर शुरू किया गया, उन सभी अभियान की आधारशिला थी जिस पर उन्होंने शुरुआत की थी। इसके अतिरिक्त उनका मानना था कि प्रेम की शक्ति हिंसा की शक्ति से हजार गुना अधिक शक्तिशाली होती है।
गाँधी जी का अहिंसा का सिद्धांत और उनके उच्च नैतिक मानदंडों को आज के नेताओं को राजनीतिक क्षेत्र में संगठनों को लाभ प्राप्त करने के लिए अनुकरण करना चाहिए। उनकी पारदर्शिता की अवधारणा की तुलना एक ऐसी सार्वजनिक नीति से की जा सकती है, जहाँ कतार में सबसे पीछे खड़े व्यक्ति को भी नीतियों के लाभ होता है।
एक राजनीतिक गुरु के रूप में गाँधी जी: उनके विचार और राय
गाँधी जी ने कहा था, “जिस दुनिया का निर्माण हमें करना चाहिए वह वास्तविक सामाजिक समानता की अवधारणा पर आधारित होनी चाहिए उसमें राजकुमार और किसान, धनी और गरीब, नियोक्ता और कर्मचारी सभी समान स्तर पर हों। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रगति का अर्थ यह नहीं हो सकता कि कुछ व्यक्ति आगे बढ़ें और ज्यादातर व्यक्ति पीछे छूट जाएँ ।”
गाँधी जी केवल एक नेता नहीं थे, बल्कि एक आध्यात्मिक नेता भी थे। उन्होंने आध्यात्मिकता को राजनीति के साथ रखकर प्रयोग किया और स्वतंत्र भारत की ओर अग्रसर हुए। यहाँ गाँधी जी के कुछ गुण हैं जिनका प्रयोग राजनीतिक क्षेत्र में किया जा सकता है:
सत्याग्रह
सत्याग्रह सत्य, प्रेम और अहिंसा से उत्पन्न होने वाली एक शक्तिशाली क्षमता है। सत्य में प्रेम और दृढ़ संकल्प दोनों शामिल हैं जो इसे बल के समानार्थी बनाते हैं। शारीरिक बल के प्रयोग की तुलना में दयालुता प्राय:व्यक्तियों से बेहतर प्रतिक्रिया प्राप्त करती है। सत्याग्रह के सिद्धांतों को अपनाकर आधुनिक राजनीतिक नेता ब्रिटिश काल में देखे जाने वाले दबावपूर्ण माध्यमों का सहारा लिए बिना परिवर्तन ला सकते हैं और व्यक्तियों को सशक्त बना सकते हैं। गाँधी जी ने एक ऐसे भविष्य की कल्पना की जिसमें अध्यात्म, नैतिकता और व्यावहारिकता का एकीकरण हो। अपनी दृष्टि के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से उन्होंने सफलतापूर्वक दूसरों का नेतृत्व किया।
साझा दृष्टिकोण और बुनियादी मूल्य
- एक कुशल रणनीतिकार के रूप में स्वयं की भूमिका में महात्मा गाँधी जी के पास एक ऐसे विजन को प्रभावी ढंग से विकसित करने की क्षमता थी जिसे बड़ी संख्या में लोग अपनाएंगे। गाँधी की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक लोगों से व्यक्तिगत स्तर पर जुड़ने की उनकी क्षमता थी।
- उन्होंने देश भर में व्यापक यात्राएँ कीं, जिसका उद्देश्य देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों के मध्य स्वतंत्रता की एक सामूहिक दृष्टि स्थापित करना था। अपनी “वाक द टॉक” दृष्टिकोण के माध्यम से रैलियों, धरनों, पदयात्राओं और अहिंसक प्रदर्शनों के माध्यम से जनता के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर गाँधी जी ने जन समान्य के साथ गहरा संबंध स्थापित करने के लिए ईमानदारी से प्रयास किए।
- आज के राजनीतिक नेतृत्व के लिए गाँधी जी की सीख यह है कि जब वे समाज के लिए एक राजनीतिक दृष्टि का निर्माण करते हैं तो उन्हें भविष्य के विषय में सोचने और उन मूल्यों को परिभाषित करने की आवश्यकता है जो इसे प्राप्त करने में सहायता करेंगे।
आत्मनिर्भरता
गाँधी जी का मुख्य उद्देश्य भारत के गाँवों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना था। उनका मानना था कि भारतीय स्वतंत्रता का मार्ग जमीनी स्तर से शुरू होना चाहिए, जहां प्रत्येक गाँव पूर्ण अधिकार के साथ एक स्वतंत्र गणराज्य के रूप में कार्य करेगा। ये गाँव उन वस्तुओं के लिए अन्य गाँवों के साथ सूचनाओं और संसाधनों का आदान-प्रदान करेंगे जो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं। इसी तरह, आधुनिक राजनीतिक दलों को प्रौद्योगिकी और उत्पादकता बढ़ाने के लिए अन्य हितधारकों के साथ सहयोग और सूचना साझा करके आत्मनिर्भरता या आत्मनिर्भर प्राप्त करने पर ध्यान देना चाहिए। गाँधी जी ने व्यक्ति और समाज के बीच परस्पर निर्भरता को स्वीकार किया।
पारदर्शिता
सत्य और पारदर्शिता गाँधीवादी दर्शन की पहचान है। यह सरकार के लिए भी बेहद उपयुक्त है। एक सरकार के प्रभावी और स्थायी होने के लिए उसे एक खुली पुस्तक की तरह होना चाहिए जो स्वयं को सार्वजनिक जाँच के अधीन रखें। नीति और ईमानदारी, जिसके द्वारा गाँधी जी ने सफलता प्राप्त की, एक सफल सरकार के महत्त्वपूर्ण तत्वों में से हैं। “आज हर क्षेत्र में नैतिकता को कमज़ोर किया जा रहा है। सरकार जवाबदेही और पारदर्शिता के विषय में है।”
जनसंपर्क नेटवर्क
- गाँधी जी के पास जनसंपर्क का एक प्रभावशाली नेटवर्क था और उन्होंने प्रेस के साथ अनुकूल संबंध बनाए रखा। उदाहरण के लिए दांडी मार्च में देखा जा सकता है। यदि गाँधी जी चुपचाप वहाँ जाते तो इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। गाँधी जी ने एक ऐसी घटना का आयोजन किया जिसने उस समय की लोकप्रिय कल्पना को पकड़ लिया। उन्हें मानव मनोविज्ञान की पूरी समझ थी और उन्होंने इसका प्रयोग अपने जनसंपर्क कौशल के साथ किया। अपने सहयोगियों के विरोध का सामना करने के बावजूद भी गाँधी जी ने दांडी तक मार्च करने और नमक बनाने का निर्णय लिया। ब्रिटिश सरकार ने उनके कार्यों की अवहेलना की यह मानते हुए कि वह विफल होंगे और अपने लोगों के बीच हंसी का पात्र बनेंगे।
- हालांकि, दांडी मार्च ने नमक बनाने के प्रतीकात्मक कार्य के साथ पूरे देश को एकजुट कर दिया और ब्रिटिश प्रशासन को बहुत परेशान कर दिया। नमक सत्याग्रह के प्रभाव पूरे भारत में गूँजते रहे जिससे भारतीय समाज के सभी वर्गों के अनुयायियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और विश्व भर से ध्यान आकर्षित हुआ।
यद्यपि गाँधी जी कई वर्षों पहले जीवित थे लेकिन आज भी उनके नेतृत्व के सिद्धांतों को राजनीतिक संगठनों और सरकार द्वारा जनता के लाभ के लिए विचार किया जाता है। उनके उच्च नैतिक मानक वही हैं जो नेताओं को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अहिंसा में उनका विश्वास एक ऐसा सिद्धांत है जिसे सभी राजनीतिक दलों को समझना चाहिए ताकि वे एक विविध देश का नेतृत्व कर सकें।
सरकार को ऐसे समान और निष्पक्ष अवसरों पर जोर देना चाहिए जहाँ प्रत्येक व्यक्ति देश के विजन में योगदान दे सकें। राजनीतिक दलों में एक समान मूल्य प्रणाली मौजूद होनी चाहिए और ईमानदारी और विश्वास की स्पष्ट भावना पूरे देश में व्याप्त होनी चाहिए।