बेरोज़गारी: प्रकार, कारण और परिणाम

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बेरोज़गारी

बेरोज़गारी उस स्थिति को संदर्भित करता है जहां सक्रिय रूप से रोजगार की इच्छा रखने वाला व्यक्ति नौकरी प्राप्त करने में असमर्थ रहता है।

इसका प्रयोग प्राय: समग्र आर्थिक कल्याण के संकेतक के रूप में किया जाता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) विशिष्ट गतिविधियों के आधार पर रोजगार और बेरोज़गारी को परिभाषित करता है:

  • नियोजित (Employed): ऐसे व्यक्ति जो वर्तमान में आर्थिक गतिविधियों में लगे हुए हैं।
  • बेरोज़गार (Unemployed): ऐसे व्यक्ति जो कार्य की तलाश/खोज कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान में उनके पास रोजगार नहीं है।
  • कार्य की तलाश न करना या उपलब्ध न होना: ऐसे व्यक्ति जो न तो सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे हैं और न ही रोजगार के लिए उपलब्ध हैं।

नियोजित और बेरोज़गार व्यक्तियों का संयोजन (combination) को श्रम बल (Work Force) कहा जाता है, और बेरोज़गारी दर की गणना ऐसे श्रम बल के प्रतिशत के रूप में की जाती है, जिसके पास कार्य नहीं हैं। गणना का सूत्र इस प्रकार है:

बेरोज़गारी दर = (बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या/कुल श्रम बल) × 100

  • प्रच्छन्न (Disguised): यह स्थिति तब उत्पन्न होती हैं, जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक लोग कार्यरत होते हैं, जो लगभग भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
  • संरचनात्मक (Structural): यह बाजार में उपलब्ध रोजगार के अवसरों और उपलब्ध कार्यबल के कौशल के बीच असंतुलन से उत्पन्न होता है। आवश्यक कौशल की कमी और अपर्याप्त शिक्षा प्राय: भारत में कई व्यक्तियों के लिए रोजगार की संभावनाओं में बाधा उत्पन्न करती है।
  • चक्रीय (Cyclical): इस प्रकार की बेरोज़गारी की स्थिति तब उत्पन्न होती हैं जब व्यवसाय-चक्र (Business cycle) में उतार-चढ़ाव होता है। मंदी के दौरान रोजगार घटते है और आर्थिक विकास के दौरान रोजगार बढ़ते है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में चक्रीय बेरोज़गारी अधिक प्रचलित है।
  • तकनीकी (Technological): यह तब होता है जब तकनीकी प्रगति के कारण रोजगारों में कमी आ जाती हैं। भारत में, विश्व बैंक ने 2016 में भविष्यवाणी की थी कि स्वचालन से 69% नौकरियों पर खतरा हो सकता है।

भारत में बेरोज़गारी के लिए संरचनात्मक और चक्रीय दोनों तरह के कारकों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसके कुछ अन्य प्रमुख कारण भी हैं:

  1. जनसंख्या वृद्धि: श्रम की आपूर्ति, उपलब्ध रोजगार के अवसरों से अधिक है, जिससे बेरोज़गारी दर में वृद्धि होती है
  2. कौशल विकास का अभाव:प्राय: कार्यबल के पास मौजूद कौशल और उद्योगों द्वारा मांगे जाने वाले कौशल के बीच एक असंतुलन होता है, जिसके परिणामस्वरूप विशेष रूप से युवाओं में उच्च बेरोज़गारी दर होती है।
  3. धीमा औद्योगिक विकास: उद्योगों में सीमित निवेश से नौकरी के अवसर कम हो सकते हैं, जिससे वर्तमान स्थिति और खराब हो सकती है।
  4. कृषि पर निर्भरता: कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, अन्य क्षेत्रों में सीमित विविधीकरण भी उच्च बेरोज़गारी दर में योगदान करती है।
  5. तकनीकी प्रगति: जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी ने शारीरिक श्रम का स्थान ले लिया है, तो कुछ नौकरियाँ अप्रचलित हो गई हैं, जिससे श्रमिक बेरोज़गार हो गए हैं।
  6. आर्थिक असमानताएँ: कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त बुनियादी ढाँचे, उद्योगों और रोजगार के अवसरों का अभाव है, जिसके कारण उन क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर अधिक है।
  7. अपर्याप्त शिक्षा प्रणाली: भारत में शिक्षा प्रणाली प्राय: व्यावहारिक कौशल और नौकरी-उन्मुख प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए संघर्ष करती है, जिससे शिक्षा और रोजगार के बीच अंतर उत्पन्न होता है।
  8. असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत में रोजगार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा असंगठित क्षेत्र में है, जिसमें रोजगार सुरक्षा, सामाजिक-सुरक्षा लाभ और स्थिर आय का अभाव है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को अनिश्चित रोजगार संभावनाओं का सामना करना पड़ता है, जो समग्र बेरोज़गारी को बढावा देती है।

यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि बेरोज़गारी के कारण बहुआयामी हैं, और इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता है जिससे शिक्षा और कौशल विकास को बढावा मिले, औद्योगिक विकास और निवेश को प्रोत्साहन मिले और इसके साथ ही रोजगार सृजन के लिए एक सक्षम वातावरण विकसित हो।

भारत में बेरोज़गार होने से व्यक्तियों और समग्र रूप से समाज पर कई परिणाम हो सकते हैं। यहाँ कुछ सामान्य परिणाम हैं:

  1. वित्तीय कठिनाइयाँ (Financial Difficulties): इससे नियमित आय की कमी हो सकती है, जिससे व्यक्तियों के लिए अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करना और एक सभ्य जीवन स्तर बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।
  2. क्रय शक्ति में कमी (Reduced Purchasing Power): इससे व्यक्तिगत क्रय शक्ति में कमी आ सकती है, क्योंकि व्यक्तियों के पास वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करने के लिए सीमित या कोई आय नहीं होती है।
  3. सामाजिक कलंक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Social Stigma and Psychological Impact): इसके परिणामस्वरूप सामाजिक कलंक और सामाजिक बहिष्कार की भावना उत्पन्न हो सकती है। कार्य न मिलने के कारण व्यक्तियों को आलोचना, आत्मसम्मान में कमी और मनोवैज्ञानिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है।
  4. बढ़ती असमानता (Increased Inequality): रोजगार के अवसरों की कमी और आय की असमानताएँ अमीर और निर्धन के मध्य की खाई को और बढ़ा देते हैं, जिससे सामाजिक अशांति और असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  5. प्रतिभा पलायन (Brain Drain): योग्य पेशेवर विदेश में रोजगार के अवसर खोजते हैं, जिससे कुशल कार्यबल की हानि और देश के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  6. सामाजिक अशांति (Social Unrest): रोजगार की कमी से नवयुवकों में निराशा, बेहतर रोजगार के अवसरों और सरकारी हस्तक्षेप की माँग को लेकर विरोध प्रदर्शनों, हड़तालों से सामाजिक अशांति की स्थिति बन सकती है।
  7. आर्थिक बोझ (Economic Burden): सामाजिक कल्याण कार्यक्रम, बेरोज़गारी-लाभ और रोजगार सृजन पहल आदि कार्यक्रमों से सरकार का आर्थिक बोझ बढ सकता है। इसके अतिरिक्त, उत्पादक-मानव पूंजी की हानि आर्थिक वृद्धि और विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है।

बेरोज़गारी को कम करने के लिए सरकारी नीतियाँ दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित की जा सकती हैं:

  1. आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
  2. बेरोज़गारों के कौशल और रोजगार योग्यता में सुधार करना

1. आर्थिक विकास को बढ़ावा देना: आर्थिक विकास के माध्यम से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। सरकारें आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित नीतियां अपना सकती हैं:

  • सरकारी खर्च में वृद्धि
  • निजी निवेश को बढ़ावा देना
  • व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना
  • प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना

2. बेरोज़गारों के कौशल और रोजगार योग्यता में सुधार करना: बेरोज़गारों के कौशल और रोजगार योग्यता में सुधार करने से उन्हें रोजगार प्राप्त करने सहायता मिल सकती है। सरकारें बेरोज़गारों के कौशल और रोजगार योग्यता में सुधार के लिए निम्नलिखित नीतियां अपना सकती हैं:

  • शैक्षिक और प्रशिक्षण कार्यक्रम
  • रोजगार सहायता कार्यक्रम
  • कौशल विकास कोष

भारत में बेरोज़गारी को कम करने के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित नीतियां अपनाई जा रही हैं:

  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
  • युवा स्वयं सहायता समूह
  • प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम
  • दीन दयाल अंत्योदय योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा लागू की गई एक योजना है। इसका उद्देश्य गरीबों को उद्योगों द्वारा मान्यता प्राप्त कौशल प्रदान करके सहायता करना है।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना। इस योजना के अंतर्गत बेरोज़गार व्यक्तियों को एक वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसे 200 जिलों में लागू किया गया है और 600 जिलों तक इसका विस्तार किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत कार्य करने वाले लोगों को 150 रुपये के अतिरिक्त राज्यस्तर पर अलग-अलग दैनिक वेतन मिलता है।

इन नीतियों के तहत, सरकार बेरोज़गारों को कौशल विकास, रोजगार सहायता, और स्वरोजगार के अवसर प्रदान कर रही है।

बेरोज़गारी को कम करने के लिए सरकार के अलावा, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। निजी क्षेत्र रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है, जबकि नागरिक समाज बेरोज़गारों को कौशल विकास और रोजगार सहायता प्रदान कर सकता है।

भारत में बेरोज़गारी दर फरवरी 2023 में बढ़कर 7.45% हो गई, जिससे देश में बेरोजगारों की कुल संख्या 33 मिलियन हो गई। बेरोज़गार लोगों की संख्या कम करने के लिए भारत  सरकार को समर्पित प्रयास करने की आवश्यकता है।

लोगों को कौशल प्रदान करना, बेहतर शिक्षा, श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना आदि सहित एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर भारत बेरोज़गारी दर को काफी हद तक कम करने में सक्षम हो सकता हैं।

भारत में बेरोज़गारी के क्या कारण हैं?

भारत में बेरोज़गारी के कारणों में बढ़ती जनसंख्या, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास की कमी, अपर्याप्त नौकरी के अवसर, धीमी आर्थिक वृद्धि और कुछ क्षेत्रों में अपर्याप्त निवेश शामिल हैं।

पिछले 10 वर्षों में बेरोज़गारी दर क्या है?

पिछले 10 वर्षों में भारत की बेरोज़गारी दर में उतार-चढ़ाव आया है। यह विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है, जैसे आर्थिक स्थिति, सरकारी नीतियाँ और जनसांख्यिकीय परिवर्तन।

भारत में कितने लोग बेरोज़गार है?

भारत में बेरोजगारों की संख्या में भी समय के साथ उतार-चढ़ाव होता रहता है। सटीक आँकडे प्राप्त करने के लिए सटीक और अद्यतन डेटा की आवश्यकता होगी। हालाँकि, भारत को अपनी बड़ी आबादी और उपरोक्त कारणों से इस मुद्दे को संबोधित करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

बेरोज़गारी का हमारे समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?

समाज पर पड़ने वाले प्रभावों में सार्वजनिक वित्त पर दबाव, उपभोक्ता खर्च में कमी, सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर बढ़ती निर्भरता, सामाजिक एकजुटता में कमी और सामाजिक अशांति और अपराध में संभावित वृद्धि आदि शामिल है। इससे मानव पूँजी और संभावित आर्थिक विकास की हानि भी हो सकती है।

बेरोज़गारी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है?

बेरोज़गारी से उत्पादकता में कमी, आर्थिक विकास में बाधा तथा सरकार पर राजकोषीय बोझ बढ़ता हैं। इससे निवेश और उपभोग सीमित हो जाते हैं जिससे गरीबी और आय की असमानता बढती हैं,परिणामस्वरूप इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह कौशल विकास को बाधित करता है,साथ में नवाचार और उद्यमशीलता को भी कम करता है जिससे संसाधनों का उचित उपयोग नहीं हो पाता है।

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