दिल्ली में स्मॉग टॉवर: कार्य, प्रभाव, चिंताएँ और आगे की राह

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स्मॉग टॉवर

दिल्ली सरकार ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) को कनॉट प्लेस में स्थित स्मॉग टॉवर को पूरी क्षमता के साथ पुनः प्रारंभ करने के लिए निर्देश दिये हैं। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में निर्देश जारी करने के पश्चात् लिया गया है।

स्मॉग टावर क्या है?

स्मॉग टॉवर, जैसा कि नाम से पता चलता है, प्रदूषण कम करने या वायु को शुद्ध करने वाली संरचनाएँ हैं। बड़े पंखे प्रदूषित वायु को टॉवर के अंदर ले जाते हैं, इसे एक श्रृंखला के फिल्टरों से गुजारने के पश्चात् स्वच्छ वायु को बाहर मुक्त करते हैं।

स्मॉग टॉवर की कार्यप्रणाली क्या है?

स्मॉग टॉवर दो तरीकों से कार्य करते है,जोकि निम्नलिखित है:

‘अपड्राफ्ट वायु सफाई प्रणाली’

इस प्रकार की प्रणाली में, प्रदूषित वायु को जमीनी स्तर से खींचा जाता है तथा संवहन और ताप द्वारा ऊपर की ओर धकेला जाता है। टॉवर के शीर्ष पर, फ़िल्टर की गयी वायु को मुक्त किया जाता है।

‘डाउनड्राफ्ट वायु सफाई प्रणाली’

स्मॉग टॉवर के शीर्ष से प्रदूषित वायु को अंदर खींचा जाता है, इस वायु को फ़िल्टर में भेजा जाता है, और टॉवर के निचले हिस्से से साफ वायु को मुक्त किया जाता है।

दिल्ली स्मॉग टॉवर के बारे में

  • दिल्ली में स्मॉग टॉवर देश का पहला ‘स्मॉग टॉवर’ है। इसे दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद स्थापित किया गया था, ताकि प्रदूषित वायु में सांस लेने वाले लोगों को राहत मिल सके।
  • दिल्ली में 24 मीटर ऊंचा स्मॉग टॉवर एक किलोमीटर की परिधि से  प्रत्येक सेकंड 1,000 घन मीटर वायु को फ़िल्टर कर सकता है। टॉवर में 40 पंखे और 5000 फ़िल्टर लगे हैं जो दूषित हवा को अंदर खींचते हैं और स्वच्छ वायु को मुक्त करते हैं।
  • दिल्ली के एक अन्य प्रदूषण हॉटस्पॉट, आनंद विहार में एक और स्मॉग टॉवर है।

दिल्ली में स्मॉग टावर का क्या प्रभाव है?

दिल्ली में स्थित स्मॉग टॉवर प्रति सेकंड 1,000 घन मीटर की दर से एक किलोमीटर की परिधि में वायु को शुद्ध कर सकता है। हालांकि, अलग-अलग रीडिंग प्रौद्योगिकी की प्रभावशीलता पर संदेह उत्पन्न करती है:

  • दिल्ली सरकार द्वारा दिये गए आंकड़े: दिल्ली सरकार के अनुसार, यह विशाल वायु शोधक 50 मीटर की परिधि में वायु प्रदूषण को 70 से 80 प्रतिशत और 300 मीटर से आगे 15 से 20 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
  • डीपीसीसी अध्ययन: दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अनुसार, संरचना से 100 मीटर की दूरी पर पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) में कमी 12 से 13 प्रतिशत के मध्य थी।

स्मॉग टॉवर के क्या लाभ हैं?

  • प्रदूषण में कमी: स्मॉग टॉवर का प्राथमिक लाभ वायु में उपस्थित पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) में कमी करना है। दूषित और प्रदूषित वायु को टॉवर में प्रवेश कराया जाता है, फिल्टर की एक श्रृंखला से गुजारा जाता है, और  स्वच्छ वायु को वापस वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है।
  • त्वरित समाधान: इन्हें एक छोटी सी जगह में स्थापित किया जा सकता है और वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में एक त्वरित समाधान के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • स्वास्थ्य लाभ: स्मॉग टॉवर की स्थापना से उस क्षेत्र में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों जैसे श्वसन संक्रमण, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर आदि में कमी आती है।

स्मॉग टॉवर से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

विशेषज्ञों ने स्मॉग टॉवरों से संबंधित निम्नलिखित चिंताएँ व्यक्त की हैं:

  • महंगी स्थापना और रखरखाव: ये महंगे, अस्थायी समाधान हैं जिनके लिए दीर्घकालिक लाभों के लिए बहुत कम वैज्ञानिक समर्थन प्राप्त है।
    • 24 मीटर ऊंचा दिल्ली स्मॉग टॉवर 20 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था और इसका उद्देश्य संरचना के चारों ओर एक किलोमीटर की परिधि में वायु को शुद्ध करना था।
  • प्रणाली की प्रभावकारिता: दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और आईआईटी बॉम्बे के अनुसार, स्मॉग टॉवर दिल्ली में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं हैं। छोटे क्षेत्रों में स्मॉग टॉवर से बाहर जाने वाली वायु की शुद्धता में कमी देखी जा सकती है, लेकिन विशेषज्ञों द्वारा बड़े क्षेत्रों में ऐसा अंतर नहीं देखा गया।
  • डीपीसीसी के एक अध्ययन में पाया गया कि संरचना से 100 मीटर की परिधि में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) में कमी केवल 12 से 13 प्रतिशत के मध्य थी।
  • प्रणाली की उपयोगिता को प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाणों का अभाव: यह अवधारणा तकनीकी रूप से फिल्टर का प्रयोग कर वायु प्रदूषण को कम करने के लिए प्रतीत होती है, लेकिन इसके कार्य को निष्पादित करने के लिए कोई वैज्ञानिक समर्थन नहीं है।

आगे की राह

समग्र अध्ययन: स्मॉग टावरों की प्रभावशीलता के विषय में वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ, इन टॉवरों के विस्तार से पहले विभिन्न तकनीकों के माध्यम से एक समग्र अध्ययन करना आवश्यक है।

  • स्रोत पर प्रदूषण में कमी: केवल उपचारात्मक उपायों पर कार्य करने के बजाय स्रोत पर वायु प्रदूषण को कम करने की आवश्यकता है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने पर फोकस करना।
  • पड़ोसी राज्यों में पराली दहन पर प्रतिबंध लगाने के लिए सख्त उपाय करना।
  • एकीकृत दृष्टिकोण: गंगा-यमुना के मैदान में केवल दिल्ली के प्रदूषण पर फोकस करना नहीं है, बल्कि पंजाब से बिहार तक प्रदूषण के मुद्दे को हल करने के लिये कार्रवायी की जानी चाहिए।

अन्य उपाय

  • निर्माण अपशिष्ट को नियंत्रित करना।
  • तापीय विद्युत संयंत्रों पर नियमों को लागू करना और कोयला आधारित तापीय विद्युत संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान देना।
  • स्रोत बिंदु से औद्योगिक उत्सर्जन को कम करना।
वायु प्रदूषण
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वायु प्रदूषण का अर्थ है किसी भी रासायनिक, भौतिक या जैविक एजेंट द्वारा इनडोर या आउटडोर वातावरण का दूषित होना, जो वायुमंडल की प्राकृतिक विशेषताओं को परिवर्तित कर देता है।

वायु प्रदूषण आँकड़े
WHO के अनुसार, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारतीय शहर सम्मिलित हैं।

वायु प्रदूषण के परिणाम
स्वास्थ्य पर प्रभाव: श्वसन और फुफ्फुसीय संक्रमण, हृदय रोग, फेफड़ों का कैंसर आदि।
– कृषि पर प्रभाव: ब्लैक कार्बन और जमीनी स्तर के ओजोन के जमा होने से फसल की पैदावार में लगभग 50% की कमी आती है।
– आर्थिक प्रभाव: विश्व बैंक के अनुसार, वायु प्रदूषण से उत्पादकता में कमी और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट के कारण विश्व अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष 5 ट्रिलियन डॉलर का नुक्सान होता है।
– अम्लीय वर्षा

पहल
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम का उद्देश्य पूरे भारत में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए संस्थागत क्षमता का निर्माण और सुदृढ़ीकरण करना है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसके तहत पूरे देश में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन स्थापित किए जा रहे हैं।

उत्सर्जन कम करने के प्रयास:
– जैवमास दहन से होने वाले घरेलू उत्सर्जन में कटौती के लिये उज्ज्वला योजना
– वाहनों के उत्सर्जन में कटौती के लिए बीएस-VI मानदंडों को अपनाना।
नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
– राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष की स्थापना।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का शुभारंभ।

हरित आवरण बढ़ाने के प्रयास:
– राष्ट्रीय हरित भारत मिशन।
– शहरी वानिकी योजनाएँ।

आगे की राह
– सार्वजनिक परिवहन में सुधार करना, ताकि निजी वाहनों की संख्या कम हो।
– गैर-मोटर चालित परिवहन जैसे पैदल चलना, साइकिल चलाना आदि को प्रोत्साहित करना।
– कई राज्यों को प्रभावित करने वाले मुद्दों से निपटने के लिये संघ सरकार को राज्यों के साथ समन्वय करना चाहिए। जैसे पराली जलाना।
– राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) का कुशल और त्वरित कार्यान्वयन।
– हरित ऊर्जा के लिए निरंतर प्रयास।

निष्कर्ष

भारत को अपने विकास एजेंडे के हिस्से के रूप में “हरित दृष्टिकोण” अपनाना चाहिए। समय आ गया है कि मूलभूत आवश्यकताओं की सूची में “स्वच्छ पानी” और “स्वच्छ वायु ” – “रोटी-कपड़ा-मकान” भी जोड़ दिया जाना चाहिए।

स्त्रोत: Hindustan Times

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