सर्वोच्च न्यायालय ने CBI को ‘डिजिटल अरेस्ट’ से निपटने का कार्य सौंपा

पाठ्यक्रम: GS3/साइबर सुरक्षा

समाचारों में

  • सर्वोच्च न्यायालय ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ घोटालों की जांच के लिए सीबीआई को पूरे भारत में जांच का नेतृत्व करने का निर्देश दिया।

डिजिटल अरेस्ट क्या हैं?

  • डिजिटल अरेस्ट एक साइबर घोटाला है जिसमें ठग कानून प्रवर्तन अधिकारियों का रूप धारण कर भय और घबराहट उत्पन्न करके धन उगाही करते हैं। 
  • यह सामान्यतः एक साधारण फोन कॉल से शुरू होता है — जैसे पार्सल डिलीवरी का दावा या KYC सत्यापन — जो जल्दी ही गिरफ्तारी की धमकी, बैंक खाते फ्रीज़ करने या पासपोर्ट रद्द करने तक पहुँच जाता है।

बढ़ोतरी के पीछे कारण

  • कानून प्रवर्तन पर जनता के विश्वास का दुरुपयोग: भय और धमकी के माध्यम से।
  • डिजिटल असुरक्षा: सिम कार्ड, म्यूल बैंक खाते और नकली आईडी तक आसान पहुँच।
  • लक्षित समूह: बुजुर्ग नागरिक, महिलाएँ और वे पेशेवर जो साइबर अपराध सुरक्षा से अपरिचित हैं।
  • सीमा-पार सिंडिकेट्स: “जम्तारा-शैली” घोटालों की तरह कार्य करने वाले संगठित नेटवर्क, जिनके अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्देश

  • न्यायालय ने सीबीआई को म्यूल खातों में शामिल बैंकरों की जांच करने और राज्यों, इंटरपोल तथा ऑनलाइन मध्यस्थों के साथ समन्वय करने का पूर्ण अधिकार दिया।
  • इसने निवेश और पार्ट-टाइम नौकरी घोटालों सहित साइबर धोखाधड़ी के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई पर बल दिया।
  • राज्यों को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत सीबीआई को सहमति देने का आदेश दिया गया और क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्रों को भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र से जोड़ने का निर्देश दिया गया।
  • न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों को लापरवाह सिम जारी करने के लिए आलोचना की और दूरसंचार विभाग को सिम दुरुपयोग रोकने के लिए प्रस्ताव तैयार करने का कार्य सौंपा, पीड़ितों की सुरक्षा हेतु व्यापक एवं समन्वित प्रतिक्रिया की आवश्यकता पर बल दिया।

सरकार के कदम

  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): गृह मंत्रालय द्वारा स्थापित, यह केंद्र साइबर अपराध से निपटने और रोकथाम संसाधन प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय प्रयासों का समन्वय करता है।
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: एक समर्पित पोर्टल जनता को साइबर अपराधों की रिपोर्ट करने की सुविधा देता है, विशेषकर महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों में, जिससे कानून प्रवर्तन द्वारा त्वरित कार्रवाई संभव होती है।
  • वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग प्रणाली: 2021 में शुरू की गई, इस प्लेटफ़ॉर्म ने 9.94 लाख शिकायतों में ₹3431 करोड़ से अधिक बचाने में सफलता पाई है, क्योंकि यह वित्तीय धोखाधड़ी की तुरंत रिपोर्टिंग की अनुमति देता है।
  • साइबर फॉरेंसिक प्रयोगशालाएँ: दिल्ली में राष्ट्रीय साइबर फॉरेंसिक प्रयोगशाला और हैदराबाद में एविडेंस लैब ने पुलिस की डिजिटल साक्ष्य प्रबंधन एवं विश्लेषण क्षमता को काफी बढ़ाया है।

आगे की राह

  • डिजिटल अरेस्ट, जो साइबर धोखाधड़ी को मनोवैज्ञानिक दबाव के साथ जोड़ते हैं, भारत में गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं। 
  • इनसे निपटने के लिए अधिकारी जन-जागरूकता अभियानों, सुरक्षित सिम जारी करने और एआई-आधारित धोखाधड़ी पहचान जैसी सुदृढ़ तकनीकी सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। 
  • छलावरण और डिजिटल धमकी से निपटने के लिए कानूनी सुधारों की आवश्यकता है, साथ ही सीमा-पार साइबर अपराध से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी आवश्यक है। 
  • सामुदायिक सतर्कता भी आवश्यक है ताकि नागरिक संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट करें और साक्ष्य सुरक्षित रखें।

Source :TH

 

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