पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा हाल ही में किए गए एक दशक के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय राज्य अपने वित्तीय प्रबंधन को कैसे संतुलित कर रहे हैं — विकास, कल्याण और स्थिरता के बीच।
भारतीय राज्यों की समष्टि वित्तीय स्थिति के बारे में
- यह राज्य स्तर पर सार्वजनिक वित्त की समग्र स्थिरता, दक्षता और दीर्घकालिक टिकाऊपन को दर्शाता है।
- यह एक समग्र मापदंड है जो यह मूल्यांकन करता है कि भारत के राज्य अपने राजस्व, व्यय, घाटे और ऋण का प्रबंधन कैसे करते हैं, तथा स्वास्थ्य, शिक्षा व अवसंरचना जैसे विकास क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश सुनिश्चित करते हैं।
समष्टि वित्तीय स्थिति के प्रमुख आयाम
- राजस्व संग्रहण:
- स्वयं का राजस्व: राज्य करों (जैसे वैट, उत्पाद शुल्क) और गैर-कर स्रोतों (जैसे रॉयल्टी, लॉटरी) से आय।
- केंद्र से हस्तांतरण: केंद्रीय करों का वितरण और अनुदान।
- व्यय की गुणवत्ता:
- राजस्व व्यय: दैनिक व्यय जैसे वेतन, सब्सिडी और ब्याज भुगतान।
- पूंजीगत व्यय: अवसंरचना और विकास में दीर्घकालिक निवेश।
- घाटा और ऋण प्रबंधन:
- राजकोषीय घाटा: कुल व्यय और राजस्व (उधारी को छोड़कर) के बीच का अंतर।
- राजस्व घाटा: जब राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है।
- ऋण-से-GSDP अनुपात: किसी राज्य की ऋण चुकाने की क्षमता को दर्शाता है।
- विकासात्मक व्यय:
- इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास और कल्याण के लिए आवंटन शामिल होता है।
- सुदृढ़ वित्तीय स्थिति वाले राज्य अपने GSDP के अनुपात में उच्च विकासात्मक व्यय बनाए रखते हैं।
सरकारी मूल्यांकन उपकरण
- वित्तीय स्वास्थ्य सूचकांक (FHI) 2025 — नीति आयोग: यह भारत के GDP में योगदान, जनसांख्यिकी, कुल सार्वजनिक व्यय, राजस्व और समग्र वित्तीय स्थिरता के आधार पर 18 प्रमुख राज्यों का मूल्यांकन करता है।
- शीर्ष प्रदर्शनकर्ता: ओडिशा, छत्तीसगढ़, गोवा, झारखंड।
- संघर्षरत राज्य: पंजाब, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल।
- CAG का दशकवार विश्लेषण: यह उधारी, राजस्व स्रोतों और व्यय पैटर्न में प्रवृत्तियों को ट्रैक करता है।
- यह दर्शाता है कि राज्य घाटे को कैसे वित्तपोषित करते हैं — प्रायः ऐसे ऋण और बॉन्ड के माध्यम से जिन्हें ब्याज सहित चुकाना होता है।
CAG के दशकवार रिपोर्ट का विश्लेषण — भारतीय राज्यों की समष्टि वित्तीय स्थिति
- राजस्व अधिशेष बनाम वित्तीय वास्तविकता: उत्तर प्रदेश ने ₹37,000 करोड़ का आश्चर्यजनक राजस्व अधिशेष दर्ज किया, जो गुजरात से दोगुना था।
- हालांकि, यह अधिशेष मुख्य रूप से केंद्रीय हस्तांतरणों से प्रेरित था, न कि आंतरिक राजस्व संग्रह से।
- उत्तर प्रदेश की कुल राजस्व का केवल 42% ही स्वयं के स्रोतों से आया, जिससे वित्तीय स्वायत्तता को लेकर चिंताएं उठीं।
- ऊर्ध्वाधर वित्तीय असंतुलन: महाराष्ट्र जैसे राज्य लगभग 70% राजस्व स्वयं उत्पन्न करते हैं, जबकि गरीब राज्य केंद्र पर अत्यधिक निर्भर रहते हैं।
- यह राज्यों की स्वतंत्र रूप से योजना बनाने और कल्याण व अवसंरचना में निवेश करने की क्षमता को प्रभावित करता है।
- उधारी की प्रवृत्तियाँ: 2000 के दशक की शुरुआत में कई राज्य अत्यधिक घाटे में थे, और उन्होंने अपनी आय से कहीं अधिक व्यय किया।
- दशक के दौरान उधारी के पैटर्न में बदलाव आया, और राज्य घाटे को वित्तपोषित करने के लिए बाजार ऋण एवं बॉन्ड पर अधिक निर्भर हो गए।
- व्यय प्राथमिकताएँ: सामान्य व्यय (जैसे वेतन, सब्सिडी) की तुलना में पूंजीगत व्यय (जैसे सड़कें, अस्पताल, स्कूल) को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
- रिपोर्ट ने यह रेखांकित किया कि वित्तीय निर्णय सीधे सार्वजनिक सेवाओं को प्रभावित करते हैं — जैसे किसी स्कूल को पर्याप्त शिक्षक मिलते हैं या किसी अस्पताल को नया उपकरण प्राप्त होता है।
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