पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तीव्रता से बढ़ती क्रिएटर इकॉनमी 2030 तक वार्षिक उपभोक्ता व्यय को एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक प्रभावित करने की संभावना है।
मुख्य बिंदु
- भारत में वर्तमान में लगभग 20 से 25 लाख मुद्रीकृत डिजिटल क्रिएटर्स हैं, जो उपभोक्ता खरीद निर्णयों के 30% से अधिक को प्रभावित करते हैं।
- वर्तमान में, क्रिएटर-नेतृत्व वाला प्रभाव पहले से ही अनुमानित 350 से 400 बिलियन डॉलर के वार्षिक उपभोक्ता व्यय को आकार दे रहा है, और यह आंकड़ा आगामी पाँच वर्षों में तीव्रता से बढ़ने की संभावना है।
- क्रिएटर-प्रभावित व्यय 2030 तक $1 ट्रिलियन+ तक पहुँचने की संभावना है, जिससे $100 बिलियन+ का इकोसिस्टम राजस्व खुलेगा।
- क्रिएटर-नेतृत्व वाला वाणिज्य भारतीय उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों की खोज, मूल्यांकन और खरीद का केंद्रीय साधन बन गया है।
- यह बदलाव फैशन और ब्यूटी से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स एवं दैनिक उपयोग की आवश्यकताओं तक की श्रेणियों में फैला हुआ है।
- यह प्रवृत्ति पारंपरिक ऊपर-से-नीचे विज्ञापन से हटकर विश्वास-आधारित, समुदाय-चालित उत्पाद खोज की ओर संकेत करती है।
- रिपोर्ट के अनुसार, वे कंपनियाँ जो क्रिएटर्स और डिजिटल वाणिज्य प्लेटफ़ॉर्म को अपनी मुख्य मार्केटिंग, बिक्री एवं मूल्य निर्धारण रणनीतियों में शामिल करेंगी, वे भारत की डिजिटल-नेतृत्व वाली वृद्धि के आगामी चरण का लाभ उठाने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में होंगी।
क्रिएटर इकॉनमी
- क्रिएटर इकॉनमी उस इकोसिस्टम को संदर्भित करती है जहाँ व्यक्ति (कंटेंट क्रिएटर्स) डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करके सामग्री, कौशल या प्रभाव का निर्माण, वितरण और मुद्रीकरण सीधे दर्शकों तक करते हैं, अक्सर पारंपरिक मध्यस्थों के बिना।
- क्रिएटर इकॉनमी के प्रमुख घटक :
- क्रिएटर्स: यूट्यूबर्स, पॉडकास्टर्स, ब्लॉगर्स, इन्फ्लुएंसर्स, शिक्षक, गेमर्स, कलाकार।
- प्लेटफ़ॉर्म्स: यूट्यूब, इंस्टाग्राम, X आदि।
- मुद्रीकरण उपकरण: विज्ञापन, ब्रांड प्रायोजन, सदस्यता, टिप्स, NFT, मर्चेंडाइज़।
- दर्शक/समुदाय: अनुयायी, सब्सक्राइबर, विशेष समुदाय।
- सक्षमकर्ता: पेमेंट गेटवे, एनालिटिक्स टूल्स, एआई टूल्स, क्रिएटर मैनेजमेंट एजेंसियाँ।
क्रिएटर इकॉनमी का महत्व
- रोज़गार सृजन और स्वरोज़गार: बड़े पैमाने पर स्वरोज़गार के अवसर सृजित करता है, विशेषकर युवाओं, महिलाओं एवं गिग वर्कर्स के लिए, जिससे पारंपरिक रोजगारों पर निर्भरता कम होती है।
- उद्यमिता का लोकतंत्रीकरण: कम प्रवेश बाधाएँ उन व्यक्तियों को सक्षम बनाती हैं जिनके पास कौशल या रचनात्मकता है—पूँजी नहीं—वे सूक्ष्म उद्यमी बन सकते हैं और सीधे दर्शकों से कमा सकते हैं।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: फिनटेक, डिजिटल भुगतान, क्लाउड सेवाएँ, एआई टूल्स, मार्केटिंग और ई-कॉमर्स जैसे संबद्ध क्षेत्रों में वृद्धि को प्रेरित करता है।
- सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व और सॉफ्ट पावर: क्षेत्रीय भाषाओं, स्थानीय कला रूपों और स्वदेशी ज्ञान को बढ़ावा देता है, जिससे भारत की सांस्कृतिक कूटनीति वैश्विक स्तर पर बेहतर होती है।
- समावेशी विकास: टियर-2, टियर-3 शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों से भागीदारी को सक्षम करता है, जिससे क्षेत्रीय एवं लैंगिक आय अंतराल को कम करने में सहायता मिलती है।
Source: LM
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