बाल विवाह पर भारत की स्थिति 

पाठ्यक्रम: GS1/ सामाजिक मुद्दे

समाचारों में

  • सुदृढ़ कानूनी ढाँचे और कई योजनाओं के बावजूद भारत में बाल विवाह की समस्या बनी हुई है। भारत 2030 के सतत विकास लक्ष्य (SDG) की समयसीमा तक बाल विवाह को पूरी तरह समाप्त करने की दिशा में अभी भी पीछे है।

अवधारणा, प्रवृत्ति और कानूनी ढाँचा

  • परिभाषा: बाल विवाह किसी भी ऐसे विवाह को कहा जाता है जिसमें कम से कम एक पक्ष की आयु 18 वर्ष से कम हो; वैश्विक स्तर पर, संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC) के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु का प्रत्येक मानव “बालक” कहलाता है।
  • NFHS डेटा: 20–24 वर्ष आयु की महिलाओं में 18 वर्ष से पूर्व विवाह का अनुपात लगभग 47.4% (2005–06, NFHS-3) से घटकर 26.8% (2015–16, NFHS-4) और आगे घटकर 23.3% (2019–21, NFHS-5) हो गया।
  • राज्यीय भिन्नता: आठ राज्य राष्ट्रीय औसत से ऊपर हैं; पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा में 20–24 वर्ष आयु की 40% से अधिक महिलाएँ 18 वर्ष से पहले विवाह कर चुकी हैं, जिससे ये सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शामिल हैं।
  • भारतीय कानून: बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 के अनुसार “बालक” वह है जो पुरुष होने पर 21 वर्ष से कम और महिला होने पर 18 वर्ष से कम आयु का हो। “बाल विवाह” वह है जिसमें किसी भी पक्ष की आयु बालक की परिभाषा में आती हो।
  • बाल विवाह निषेध अधिकारी: धारा 16 के अंतर्गत राज्यों द्वारा ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है, जिनका कार्य बाल विवाह को रोकना, अभियोजन हेतु साक्ष्य एकत्र करना, जागरूकता फैलाना और आँकड़े संकलित करना है।

प्रमुख कारण

  • गरीबी और आर्थिक असुरक्षा: गरीब परिवार प्रायः जल्दी विवाह को आर्थिक भार कम करने और लड़की का भविष्य “सुरक्षित” करने का साधन मानते हैं।
  • पितृसत्ता और लैंगिक मानदंड: लड़कियों की शिक्षा और स्वायत्तता को महत्व नहीं दिया जाता; उन्हें बिना वेतन वाले घरेलू श्रम एवं जल्दी विवाह की ओर धकेला जाता है ताकि परिवार की “इज्ज़त” बनी रहे।
  • सामाजिक‑सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाएँ: कुछ समुदायों में लड़कियों का विवाह किशोरावस्था से पहले या तुरंत बाद करना शुभ माना जाता है।

पहल

  • 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित किया गया, जिसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर बाल विवाह की दर आधी हो गई।
  • 2012 का लैंगिक अपराधों से बाल संरक्षण अधिनियम (POCSO) ने भी बाल विवाह रोकने में मदद की।
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP): बाल लिंगानुपात सुधारने और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है।
  • जिला‑स्तरीय मॉडल: (जैसे पंचायतें स्वयं को “बाल विवाह‑मुक्त” घोषित करती हैं) सामुदायिक निगरानी, विद्यालय आधारित सतर्कता और स्थानीय अभियान के माध्यम से ऐसे विवाहों को रोकते हैं।
  • राज्यीय नकद हस्तांतरण और छात्रवृत्ति योजनाएँ: लड़कियों की पढ़ाई को प्रोत्साहित करने के लिए।
  • भारत संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि का पक्षकार है तथा 2030 एजेंडा को समर्थन देता है, जिसमें SDG लक्ष्य 5.3 शामिल है—बाल, प्रारंभिक और जबरन विवाह को समाप्त करना।

Source: TH

 

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