हट्टी जनजाति
पाठ्यक्रम: GS1/जनजाति
संदर्भ
- हिमाचल प्रदेश में एक महिला ने हट्टी जनजाति के दो भाइयों से विवाह किया है।
परिचय
- बहुपति विवाह (Polyandry) उस प्रथा को कहते हैं जिसमें एक महिला एक समय में एक से अधिक पुरुषों से विवाह करती है।
- हिमाचल प्रदेश में इसे “जोड़िदारा” कहा जाता है, और यह प्रथा हट्टी समुदाय सहित निचले हिमालयी क्षेत्रों की कुछ अन्य जनजातियों द्वारा अपनाई जाती है।
- हट्टी समुदाय, जो हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर उपस्थित है, सदियों से बहुपति प्रथा का पालन करता आ रहा है। तीन वर्ष पूर्व इसे अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था।
- भारतीय कानून बहुपति विवाह की अनुमति नहीं देता है, लेकिन यह विभिन्न जनजातियों की परंपराओं और रीति-रिवाजों की रक्षा की अनुमति देता है।
Source: IE
ICMR द्वारा मलेरिया वैक्सीन के व्यावसायीकरण के लिए भागीदारों को आमंत्रण
पाठ्यक्रम: GS2/ स्वास्थ्य
संदर्भ
- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने एक नए स्वदेशी मलेरिया वैक्सीन एडफाल्सीवैक्स(AdFalciVax) के व्यावसायीकरण के लिए वैक्सीन निर्माता कंपनियों को साझेदारी के लिए आमंत्रित किया है।
वैक्सीन के बारे में
- यह वैक्सीन ICMR के क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र, भुवनेश्वर द्वारा विकसित की गई है।
- एडफाल्सीवैक्स(AdFalciVax) एक पुनः संयोजित (recombinant) मलेरिया वैक्सीन है, जिसे जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करके बनाया गया है।
- इसमें मलेरिया परजीवी के डीएनए का उपयोग प्रयोगशाला की कोशिकाओं में विशिष्ट प्रोटीन उत्पन्न करने हेतु किया जाता है, जिन्हें बाद में वैक्सीन में शामिल किया जाता है ताकि रोग के बिना प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न की जा सके।
वैक्सीन की प्रमुख विशेषताएँ
- पूर्ण CSP प्रोटीन लक्ष्य:
- यह मलेरिया परजीवी की सतह पर पाए जाने वाले सर्कमस्पोरोज़ोइट प्रोटीन(CSP) के पूर्ण डीएनए का उपयोग करता है।
- यह मौजूदा वैक्सीन की तुलना में अधिक प्रभावशाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करने की अपेक्षा रखता है, जो केवल CSP के टुकड़ों का उपयोग करते हैं।
- संक्रमण-निरोधी तत्व:
- यह पी. फाल्सीपेरम(P. falciparum) के जीवनचक्र में मच्छर की आंत में सक्रिय प्रोटीन को लक्षित करता है। इससे दोहरा प्रभाव प्राप्त होता है:
- व्यक्तिगत सुरक्षा: यह टीका लगाए गए व्यक्ति को मलेरिया से बचाता है।
- सामुदायिक सुरक्षा: यह उन मच्छरों के भीतर परजीवी के विकास को रोकता है जो इस रोगजनक को ग्रहण कर चुके हैं, जिससे मलेरिया के प्रसार को रोका जा सकता है।
- यह पी. फाल्सीपेरम(P. falciparum) के जीवनचक्र में मच्छर की आंत में सक्रिय प्रोटीन को लक्षित करता है। इससे दोहरा प्रभाव प्राप्त होता है:
मलेरिया क्या है?
- मलेरिया एक जीवनघातक रोग है जो कुछ प्रकार के मच्छरों द्वारा मनुष्यों में फैलता है। यह मुख्यतः उष्णकटिबंधीय देशों में पाया जाता है।
- प्रसार:
- यह रोग प्लाज्मोडियम नामक प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होता है।
- संक्रमित मादा एनोफिलीज़ मच्छर के काटने से यह परजीवी फैलता है।
- रक्त संक्रमण और दूषित सुइयों के माध्यम से भी मलेरिया फैल सकता है।
- परजीवियों के प्रकार:
- पाँच प्रकार के प्लाज्मोडियम परजीवी हैं जो मनुष्यों में मलेरिया फैलाते हैं, जिनमें से दो – पी. फाल्सीपेरम(P. falciparum) और पी. विवैक्स(P. vivax) सबसे अधिक खतरनाक हैं।
- अन्य प्रकार हैं: पी. मलेरिया, पी. ओवले, और पी. नोलेसी।
- पी. फाल्सीपेरम अफ्रीका महाद्वीप में सबसे प्रचलित और सबसे घातक परजीवी है।
- पी. विवैक्स उप-सहारा अफ्रीका के बाहर अधिकांश देशों में प्रमुख है।
- लक्षण: बुखार और फ्लू जैसे लक्षण, जिनमें कंपकंपी, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकावट शामिल हैं।
Source: IE
राजस्थान की शान खेजड़ी की सांगरी को GI टैग का इंतजार
पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण
समाचारों में
- सांगरी को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि खेजड़ी वृक्ष की विरासत की रक्षा की जा सके और उन किसानों को समर्थन मिल सके जो इस पर निर्भर हैं।
खेजड़ी वृक्ष
- यह प्रोसोपिस सिनेरिया(Prosopis cineraria), शमी, जांड और घाफ जैसे कई नामों से जाना जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि इसका उद्गम राजस्थान के थार रेगिस्तान में हुआ था।
- यह अत्यधिक गर्मी और न्यूनतम जल में जीवित रह सकता है।
- यह सहनशीलता, आजीविका और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
- इसके खाद्य फल, सांगरी, सूखे के समय रेगिस्तानी समुदायों की जीवनरेखा बनते हैं।
| क्या आप जानते हैं? – खेजड़ी वृक्ष भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से समाहित है। – वेदों में इसे यज्ञों में उपयोग की सिफारिश की गई है, और इसकी लकड़ी को पीपल के साथ मिलाकर पवित्र अग्नि जलाने के लिए उपयोग किया जाता रहा है। – महाभारत में, कहा जाता है कि अर्जुन ने अपने वनवास के दौरान अपना धनुष खेजड़ी वृक्ष में छिपाया था। रामायण में, लक्ष्मण ने इसी वृक्ष की शाखाओं से अपना वनगृह बनाया था। – 1730 में हुए खेजड़ली नरसंहार में, 363 विश्नोई लोगों ने खेजड़ी वृक्षों की कटाई रोकने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। – गुरु जंभोजी की शिक्षाओं के अनुसार, विश्नोई समुदाय मानता है कि वृक्षों की रक्षा समस्त जीवन के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। |
Source: DTE
अंतर्राष्ट्रीय मून डे
पाठ्यक्रम: GS3/अन्तरिक्ष
समाचार में
- 20 जुलाई को मानव जाति की प्रथम चंद्रमा पर लैंडिंग (Apollo 11 मिशन, 1969) की स्मृति में अंतर्राष्ट्रीय मून डे मनाया गया।
अंतर्राष्ट्रीय मून डे
- इस दिन, नील आर्मस्ट्रांग और एडविन ‘बज़’ एल्ड्रिन ने चंद्रमा की सतह पर कदम रखा, जबकि माइकल कॉलिन्स चंद्रमा की कक्षा में कोलंबिया कमांड मॉड्यूल में उनकी वापसी की प्रतीक्षा कर रहे थे।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2021 में इस दिवस को औपचारिक रूप से मान्यता दी, जो बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोगों पर समिति (COPUOS) की सिफारिश पर आधारित थी।
- 2025 की थीम ‘वन मून, वन विजन, वन फ्यूचर’ वैश्विक एकता और साझा महत्वाकांक्षा की भावना को उजागर करती है, जो चंद्रमा के निरंतर अन्वेषण में प्रेरणा का स्रोत है।
- यह चंद्र अन्वेषण में वैश्विक उपलब्धियों का उत्सव मनाता है और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, सतत अंतरिक्ष प्रथाओं तथा चंद्र संसाधनों के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देता है।
| भारत में स्थिति – भारत ने चंद्र अन्वेषण में उल्लेखनीय प्रगति की है। 2009 में चंद्रयान-1 द्वारा चंद्रमा पर जल अणुओं की खोज से लेकर 2023 में चंद्रयान-3 की दक्षिणी ध्रुव के पास सफल लैंडिंग तक—भारत ने लागत-कुशल और नवाचार-सम्पन्न अंतरिक्ष अभियानों में अपनी क्षमता का प्रमाण दिया है। |
Source: PIB
विदेशी वनस्पति प्रजातियाँ स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर नियंत्रण कर रही हैं: अध्ययन
पाठ्यक्रम :GS3/पर्यावरण
समाचारों में
- विदेशी पौधों की प्रजातियाँ अब अभूतपूर्व गति से फैल रही हैं, जो वैश्विक स्तर पर उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्रों को परिवर्तित हो रही हैं।
विदेशी पौधों की प्रजातियाँ
- इन्हें मनुष्यों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विश्व के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में लाया गया था, और अब ये अभूतपूर्व गति से फैल रहे हैं।
- ये तेज़ी से समृद्ध, विविध और स्थिर पारिस्थितिक तंत्रों का स्थान ले रहे हैं।
- ये अपरिवर्तनीय परिवर्तन ला रहे हैं, स्थानीय पारिस्थितिक तंत्रों की मूलभूत विशेषताओं को बदल रहे हैं।
फैलाव
- 1950 के पश्चात् से इसका प्रसार तीव्रता से हुआ है, और अब 13,000 से अधिक प्रजातियाँ अपनी मूल सीमा से बाहर उपस्थित हैं।
- 2050 तक, विदेशी प्रजातियों की शुरूआत में लगभग 21% (669 प्रजातियाँ) की वृद्धि दक्षिण अमेरिका में, 12% (503 प्रजातियाँ) अफ्रीका में और 10% (227 प्रजातियाँ) एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होने की संभावना है।
- जलवायु परिवर्तन, भूमि उपयोग में परिवर्तन , और मानवीय गतिविधियाँ इस प्रसार को अधिक तीव्र कर रही हैं—विशेष रूप से दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका एवं एशिया जैसे क्षेत्रों में।
- द्वीप विशेष रूप से संवेदनशील हैं, जहाँ कुछ स्थानों पर अब देशी की तुलना में अधिक विदेशी पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- भारत में, कृषि विस्तार और वनाग्नि के कारण 66% प्राकृतिक क्षेत्रों में इनका फैलाव देखा गया है।
प्रभाव
- विदेशी प्रजातियाँ आग के स्वरूप को बदल देती हैं, देशी जैव विविधता को घटाती हैं, और जीव-जंतुओं को भी खतरे में डालती हैं—जैसे काले हिरण, जो अनजाने में आक्रामक बीज फैला सकते हैं।
- अमेज़न क्षेत्र में भी ऐसी ही चुनौतियाँ हैं, जहाँ पौधों का आक्रमण और वनों का क्षरण इसे एक “कार्बन सिंक” से “कार्बन स्रोत” में परिवर्तित कर सकता है।
सुझाव
- विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में दीर्घकालिक, बहुविषयक शोध, जन-जागरूकता बढ़ाने और पारिस्थितिक तंत्र की पुनर्स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।
Source: DTE
बायोस्टीमुलेंट्स (Biostimulants)
पाठ्यक्रम: GS3/कृषि
संदर्भ
- केंद्रीय कृषि मंत्री ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर पारंपरिक उर्वरकों के साथ नैनो-उर्वरकों या बायोस्टीमुलेंट्स की “अनिवार्य टैगिंग” को तुरंत बंद करने की अपील की है।
बायोस्टीमुलेंट्स क्या हैं?
- उर्वरक (अकार्बनिक, जैविक या मिश्रित) नियंत्रण आदेश, 1985 के अंतर्गत बायोस्टीमुलेंट्स के निर्माण और बिक्री को नियंत्रित किया जाता है।
- इसमें बायोस्टीमुलेंट को एक पदार्थ या सूक्ष्मजीव (या दोनों का संयोजन) के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका मुख्य कार्य पौधों, बीजों या राइजोस्फीयर (जड़ों के आसपास की मृदा) पर उपयोग के समय उनके शारीरिक प्रक्रियाओं को उत्तेजित करना होता है।
- यह पौधों की पोषक तत्व ग्रहण करने की क्षमता, वृद्धि, उत्पादकता, पोषण दक्षता, फसल गुणवत्ता और तनाव सहनशीलता को बढ़ाता है।
- यह कीटनाशकों या पौध वृद्धि नियामकों में शामिल नहीं होता, जिनका नियमन कीटनाशक अधिनियम, 1968 के अंतर्गत होता है।
चिंताएँ
- कई बायोस्टीमुलेंट्स में जटिल यौगिकों या सूक्ष्मजीवों का मिश्रण होता है, और उनके क्रियाविधि स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं हैं।
- फील्ड स्थितियों में प्रदर्शन असंगत होता है—जैसे जलवायु, मृदा, फसल की किस्म आदि में बदलाव के कारण।
- कुछ कंपनियाँ उर्वरकों या कीटनाशकों को बायोस्टीमुलेंट के रूप में बाज़ार में लाकर नियामकीय नियमों से बचने या “हरित” उत्पादों के रूप में दिखाने की कोशिश करती हैं (“ग्रीनवॉशिंग”)।
- इससे विश्वसनीयता प्रभावित होती है और किसान व नीति निर्धारकों को भ्रमित किया जा सकता है।
Source: IE
88वीं कोडेक्स कार्यकारी समिति की बैठक
पाठ्यक्रम: GS3/ कृषि
सन्दर्भ
- भारत की वैश्विक खाद्य मानक विकास में भूमिका की सराहना रोम में आयोजित कोडेक्स एलीमेंटेरियस आयोग की कार्यकारी समिति के 88वें सत्र (CCEXEC 88) में की गई।
CCEXEC88 की मुख्य विशेषताएँ और भारत की भूमिका
- भारत ने सम्पूर्ण बाजरा अनाज के लिए समूह मानकों के विकास का नेतृत्व किया, जिसमें माली, नाइजीरिया और सेनेगल सह-अध्यक्ष के रूप में शामिल थे।
- समिति ने भारत के नेतृत्व की सराहना की, और यह बाजरा मानक अंतिम स्वीकृति के लिए CAC48 में प्रस्तुत किया जाएगा।
- रणनीतिक योजना और प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (KPIs) 2026–2031: भारत ने कोडेक्स रणनीतिक योजना 2026–2031 की चर्चा में सक्रिय योगदान दिया और SMART (विशिष्ट, मापन योग्य, प्राप्त करने योग्य, प्रासंगिक, समयबद्ध) आधारित परिणाम संकेतकों का समर्थन किया।
- ये KPIs अब CAC48 में अनुमोदन के लिए अंतिम रूप से तैयार हैं।
- भारत ने पड़ोसी देशों जैसे भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और तिमोर-लेस्ते के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की जानकारी दी, जिन्हें FAO द्वारा मान्यता प्राप्त है।
- भारत ने कम सक्रिय सदस्य देशों को कोडेक्स ट्रस्ट फंड (CTF) का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि उन्हें मार्गदर्शन और साझेदारी कार्यक्रमों में सहायता मिल सके।
| कोडेक्स एलीमेंटेरियस आयोग (CAC) – यह एक अंतर-सरकारी खाद्य मानक निकाय है, जिसकी स्थापना 1963 में की गई थी। – इसे संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित किया गया। – उद्देश्य: उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा करना और खाद्य व्यापार में निष्पक्ष प्रथाओं को सुनिश्चित करना। – सदस्य: वर्तमान में इसके 189 सदस्य हैं (188 UN सदस्य देश और यूरोपीय संघ)। – भारत 1964 में इसका सदस्य बना। – मुख्यालय: रोम |
Source: PIB
नई लाइकेन प्रजाति पश्चिमी घाट में प्राचीन सहजीवन का प्रकटीकरण करती है
पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण, समाचार में प्रजातियाँ
संदर्भ
- भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा पश्चिमी घाट में लाइकेन की एक नई प्रजाति एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका की खोज की गई है, जो प्राचीन सहजीविता और विकासीय स्वरूपों को समझने में सहायता करती है।
लाइकेन के बारे में
- परिभाषा: लाइकेन मिश्रित जीव हैं जो एक कवक (माइकोबायोन्ट) और एक प्रकाश संश्लेषक साथी (फोटोबायोन्ट, सामान्यतः एक हरा शैवाल या सायनोबैक्टीरियम) के बीच सहजीवी संबंध से बनते हैं।
- पारिस्थितिक भूमिका:
- मृदा निर्माण में योगदान
- पोषक तत्वों की पुनर्चक्रण प्रक्रिया
- कीड़ों के लिए भोजन के रूप में कार्य
- पर्यावरणीय गुणवत्ता (विशेषकर वायु प्रदूषण) के जैव संकेतक के रूप में
एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका के बारे में
- प्रकार: क्रस्टोज़ लाइकेन (ऐसी लाइकेन जो सब्सट्रेट से दृढ़ता से चिपकी हुई परत के रूप में उगती है)
- विशेषताएँ:
- इसमें इफ्यूज़ सोरेडिया पाए जाते हैं (पाउडर जैसे वनस्पति प्रजनन संरचनाएँ)
- यह नॉरस्टिक्टिक एसिड नामक एक दुर्लभ रासायनिक यौगिक को सम्मिलित करता है, जो संबंधित प्रजातियों में दुर्लभ है
- यह ग्राफिस ग्लौसेसेंस से रूपात्मक रूप से मिलती-जुलती है, हालांकि आनुवंशिक रूप से भिन्न है।
| पश्चिमी घाट – पश्चिमी घाट भारत के पश्चिमी तट पर स्थित 1,600 किमी लंबी पर्वत श्रृंखला है, जो उत्तर में तापी नदी से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैली हुई है। – यह छह राज्यों — गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल — में फैली है, जिनमें से लगभग 60% भाग कर्नाटक में स्थित है। महत्त्व: – यह क्षेत्र उच्च पर्वतीय वनों का घर है, जो क्षेत्रीय उष्णकटिबंधीय जलवायु को संतुलित करता है। – यहाँ 325 विश्व स्तर पर संकटग्रस्त पौधों, जानवरों, पक्षियों, उभयचर जीवों, सरीसृपों और मछलियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। – वर्ष 2012 में पश्चिमी घाट को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्रदान किया गया। |
Source: PIB
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