भारत में भूजल प्रदूषण

पाठ्यक्रम:GS3/पर्यावरण 

समाचारों में

  • भारत पीने योग्य जल और सिंचाई के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भर है, लेकिन तीव्र और अनियंत्रित दोहन के कारण व्यापक प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है।

भारत का भूजल संकट

  • भारत अपनी ग्रामीण पेयजल आवश्यकताओं का लगभग 85% और सिंचाई जल का लगभग 60% भूजल से प्राप्त करता है।
  • विगत दशकों में वर्षा में वृद्धि के बावजूद, अत्यधिक दोहन और प्राकृतिक पुनर्भरण क्षेत्रों पर अतिक्रमण के कारण भूजल पुनर्भरण अपर्याप्त है।
  • देश के विभिन्न भागों में भूजल स्तर गंभीर रूप से गिर गया है, विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी राज्यों (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में जल स्तर 40 मीटर से अधिक नीचे चला गया है, जिससे जल निकासी महंगी और अस्थिर हो गई है।
  • हालिया आंकड़ों के अनुसार, भारत के लगभग 60% जिलों में गंभीर भूजल ह्रास या प्रदूषण या दोनों की समस्या है, जिससे करोड़ों लोगों की आजीविका खतरे में है।
  • इसके अतिरिक्त, भूजल एक छिपे हुए प्रदूषण संकट का सामना कर रहा है।
    • प्रदूषक रासायनिक उर्वरकों, औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज रिसाव एवं प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न होते हैं, जिन्हें मानवीय गतिविधियाँ और भी अधिक खराब करती हैं।

प्रमुख संरचनात्मक समस्याएँ

  • संस्थागत विखंडन: भारत का भूजल संकट एक खंडित नियामक प्रणाली और कमजोर समन्वय से उत्पन्न होता है।
    •  CGWB, CPCB, SPCBs और जल शक्ति मंत्रालय जैसी एजेंसियाँ अलग-अलग काम करती हैं, जिससे प्रयासों की पुनरावृत्ति होती है तथा विज्ञान-आधारित समन्वित हस्तक्षेप की कमी रहती है।
  • कानूनी प्रवर्तन की कमजोरी: जल अधिनियम मौजूद है, लेकिन विशेष रूप से भूजल निर्वहन पर इसका प्रवर्तन अपर्याप्त है।
    • नियामक खामियाँ और ढीली अनुपालन प्रणाली प्रदूषकों को प्रोत्साहित करती हैं।
  • रीयल-टाइम डेटा की कमी: निगरानी अनियमित और सार्वजनिक रूप से सुलभ नहीं है।
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली या सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी से जुड़ाव के अभाव में प्रदूषण का पता गंभीर स्वास्थ्य परिणामों के बाद ही चलता है।
  • अत्यधिक दोहन: अत्यधिक पंपिंग से जल स्तर गिरता है और प्रदूषकों की सांद्रता बढ़ती है, जिससे एक्विफर्स भू-जनित विषाक्त पदार्थों एवं लवणता के अतिक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

प्रभाव

  • 2024 की केंद्रीय भूजल बोर्ड रिपोर्ट में कई राज्यों में नाइट्रेट, फ्लोराइड, आर्सेनिक, यूरेनियम, आयरन और भारी धातुओं से प्रदूषण की बात कही गई है, जिससे फ्लोरोसिस, कैंसर, किडनी फेलियर एवं विकास संबंधी विकार जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
  • उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में भूजल विषाक्तता की घटनाएँ संस्थागत उपेक्षा को उजागर करती हैं।
  • यह बढ़ता हुआ भूजल संकट एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा बन गया है, जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में करोड़ों लोगों को प्रभावित करता है।
भूजल मूल्यांकन और प्रबंधन पहल
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS): जल संरक्षण और जल संचयन संरचनाओं को शामिल करती है, जिससे ग्रामीण जल सुरक्षा बढ़ती है।
15वां वित्त आयोग अनुदान: वर्षा जल संचयन और अन्य जल संरक्षण गतिविधियों के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
जल शक्ति अभियान (JSA): 2019 में शुरू हुआ, अब अपने 5वें चरण (“कैच द रेन” 2024) में है, जो ग्रामीण और शहरी जिलों में विभिन्न योजनाओं के समन्वय से वर्षा जल संचयन एवं जल संरक्षण पर केंद्रित है।
AMRUT 2.0: तूफानी जल निकासी के माध्यम से वर्षा जल संचयन को समर्थन देता है और ‘जलभृत प्रबंधन योजनाएँ’ के माध्यम से भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा देता है।
अटल भूजल योजना (2020): 7 राज्यों के 80 जिलों के जल-संकटग्रस्त ग्राम पंचायतों को लक्षित करती है, भूजल प्रबंधन पर केंद्रित है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): सिंचाई कवरेज बढ़ाने और जल उपयोग दक्षता सुधारने के लिए ‘हर खेत को जल , जल निकायों की मरम्मत एवं लघु सतही सिंचाई योजनाओं जैसे घटकों के माध्यम से कार्य करती है।
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा BWUE की स्थापना: राष्ट्रीय जल मिशन के अंतर्गत जल उपयोग दक्षता को विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ावा देने के लिए एक सुविधा प्रदाता के रूप में कार्य करता है।
मिशन अमृत सरोवर (2022): प्रत्येक जिले में 75 अमृत सरोवरों का निर्माण या पुनरुद्धार करने का लक्ष्य रखता है, जल संचयन और संरक्षण के लिए।
राष्ट्रीय एक्विफर मैपिंग (NAQUIM): केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा 25 लाख वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र में पूरी की गई है, जो भूजल पुनर्भरण और संरक्षण योजनाओं को समर्थन देती है।
राष्ट्रीय जल नीति (2012): जल संसाधन विभाग द्वारा तैयार की गई है, जो वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण का समर्थन करती है तथा वर्षा जल के प्रत्यक्ष उपयोग के माध्यम से जल उपलब्धता बढ़ाने की आवश्यकता को उजागर करती है।
राष्ट्रीय जल पुरस्कार (2018): भारत भर में जल संरक्षण और प्रबंधन के प्रति असाधारण योगदान को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए जल संसाधन विभाग द्वारा 2018 में शुरू किया गया।

सुझाव

  • भारत का भूजल संकट अब केवल “कमी” नहीं बल्कि “सुरक्षा” का संकट बन गया है, जिसमें अदृश्य और अपरिवर्तनीय प्रदूषण एक गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। 
  • इसलिए भारत के भूजल संकट के समाधान के लिए एक साहसिक, समन्वित और बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है:
    • व्यापक नीति सुधार: अति-उपयोग वाले क्षेत्रों में सख्त निकासी सीमा तय करें और जल-कुशल कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करें।
    • एकीकृत निगरानी प्रणाली: रीयल-टाइम डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके प्रदूषण प्रवृत्तियों को ट्रैक करें और भविष्य के जोखिमों की भविष्यवाणी करें।
    • जन जागरूकता अभियान: समुदायों को प्रदूषण के जोखिमों के बारे में शिक्षित करें और कम लागत वाली उपचार तकनीकों को अपनाने को बढ़ावा दें।
    • लक्षित उपचार उपाय: लवणता-प्रवण क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन और फ्लोराइड व नाइट्रेट प्रदूषण को रोकने के लिए फॉस्फेट न्यूनीकरण रणनीतियाँ जैसे क्षेत्र-विशिष्ट समाधान लागू करें।

Source :TH

 

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