दहेज: एक अंतर-सांस्कृतिक बुराई – सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

पाठ्यक्रम: GS1/सामाजिक मुद्दे

संदर्भ  

  • सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज को एक अंतर-सांस्कृतिक सामाजिक बुराई बताया है, जो धर्म और समुदायों से परे है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय  

  • न्यायालय की टिप्पणियाँ :
    • दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के बावजूद यह प्रथा “उपहार” जैसे छद्म रूपों में जारी है।
    • दहेज न्याय, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व जैसे संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करता है और सीधे अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) को कमजोर करता है।
    • दहेज महिलाओं को विवाह में समान भागीदार के बजाय आर्थिक शोषण का साधन मानता है।
  • न्यायालय के निर्देश :
    • शैक्षिक पाठ्यक्रम सुधार हेतु निर्देश दिए गए ताकि पति-पत्नी की समानता को सुदृढ़ किया जा सके।
    • दहेज निषेध अधिकारियों की नियुक्ति, पुलिस/न्यायपालिका का संवेदनशीलकरण और मामलों का शीघ्र निपटारा सुनिश्चित करने का आदेश दिया।
    • उच्च न्यायालयों से लंबित दहेज मामलों की संख्या का आकलन कर उनके शीघ्र निपटारे के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया।

दहेज प्रणाली 

  • दहेज का अर्थ है विवाह की शर्त के रूप में वधू के परिवार द्वारा नकद, संपत्ति या आभूषण जैसी मूल्यवान वस्तुएँ देना।
    • ऐतिहासिक रूप से यह स्त्रीधन (महिला की सुरक्षा हेतु स्वैच्छिक उपहार) से जुड़ा था, लेकिन समय के साथ यह एक जबरन और शोषणकारी सामाजिक प्रथा बन गया।
  • औपनिवेशिक प्रभाव : 1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस की नीतियों ने भूमि स्वामित्व का निजीकरण किया, जिससे महिलाओं को संपत्ति से वंचित किया गया।
    • इसके परिणामस्वरूप परिवारों ने बेटियों के भविष्य की सुरक्षा हेतु दहेज देना शुरू किया, जो बाद में विवाह की अनिवार्य शर्त बन गया।

भारत में दहेज मामले 

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2023 में दहेज-संबंधी अपराधों के मामलों में 14% वृद्धि हुई, और वर्षभर में 6,100 से अधिक मृत्युएँ दर्ज की गईं।
  • उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मामले दर्ज हुए, इसके बाद बिहार और कर्नाटक का स्थान रहा।
    • सबसे अधिक मृत्युएँ उत्तर प्रदेश में हुईं, इसके बाद बिहार रहा।
  • 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों जैसे पश्चिम बंगाल, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख और सिक्किम ने वर्षभर में शून्य दहेज मामले दर्ज किए।

भारत में दहेज प्रणाली के कारण

  • पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना, जिसमें महिलाओं को आश्रित माना जाता है और पुत्रों को पुत्रियों से अधिक महत्व दिया जाता है।
  • शिक्षा, रोजगार और उत्तराधिकार में लैंगिक असमानता, जिससे विवाह महिलाओं की सुरक्षा का मुख्य साधन बन जाता है।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा एवं मान-सम्मान का दबाव, जहाँ दहेज और भव्य विवाह सम्मान के प्रतीक बन जाते हैं।
  • विवाह का व्यावसायीकरण, जिससे यह सामाजिक संस्था के बजाय आर्थिक लेन-देन बन गया।
  • कानूनों का कमजोर प्रवर्तन और सामाजिक स्वीकृति, जिसके कारण कानूनी निषेध के बावजूद यह प्रथा जारी है।

चिंताएँ 

  • दहेज महिलाओं को वस्तु बना देता है और समानता व न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करता है।
  • घरेलू हिंसा और दहेज मृत्यु: उत्पीड़न, क्रूरता, वधू-दहन और आत्महत्याएँ गंभीर चिंताएँ बनी हुई हैं।
  • लैंगिक असंतुलन: पुत्र-प्राथमिकता दहेज से और मजबूत होती है, जिससे भ्रूण हत्या और घटता लिंग अनुपात बढ़ता है।
  • आर्थिक भार: भारी दहेज माँगें गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को ऋण और गरीबी में धकेल देती हैं।
  • पितृसत्ता का स्थायीकरण: विवाह और समाज में पुरुष प्रभुत्व और महिलाओं की अधीनता को सुदृढ़ करता है।
  • सामाजिक विकास को कमजोर करना: भ्रष्टाचार, उपभोक्तावाद और असमानता को सामान्य बनाता है, जिससे नैतिक एवं सामाजिक नींव कमजोर होती है।

सरकारी पहल

  • दहेज निषेध अधिनियम, 1961: दहेज देना, लेना या माँगना अपराध है।
    • दहेज उत्पीड़न भारतीय न्याय संहिता (BNS) और घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय है।
    • यदि विवाह के सात वर्षों के अंदर महिला की अस्वाभाविक मृत्यु दहेज उत्पीड़न से होती है, तो इसे दहेज मृत्यु माना जाता है और कठोर कानूनी परिणाम होते हैं।
    • दहेज निषेध अधिकारी, पुलिस और NGOs शिकायतों का निपटारा करते हैं, और जागरूकता कार्यक्रम दहेज प्रथा को हतोत्साहित करते हैं।
  • घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, 2005: धारा 3 इसे किसी भी ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित करती है जो महिला के शारीरिक/मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाए या उसकी सुरक्षा को खतरे में डाले, जिसमें अवैध माँगों के लिए उत्पीड़न भी शामिल है।
  • 24×7 महिला हेल्पलाइन (181): यह हेल्पलाइन महिलाओं को सार्वजनिक और निजी स्थानों पर हिंसा का सामना करने पर आपातकालीन एवं सहयोग सेवाएँ प्रदान करती है।
  • वन स्टॉप सेंटर (OSCs): ये केंद्र चिकित्सा सहायता, कानूनी सहायता, मनोवैज्ञानिक परामर्श और अस्थायी आश्रय एक ही स्थान पर उपलब्ध कराते हैं।
  • महिला हेल्प डेस्क (WHDs): पुलिस थानों में स्थापित किए गए हैं ताकि महिलाओं की समस्याओं के प्रति कानून प्रवर्तन अधिक सुलभ और संवेदनशील हो।
    • कुल 14,658 महिला हेल्प डेस्क स्थापित किए गए हैं, जिनमें से 13,743 महिला पुलिस अधिकारियों द्वारा संचालित हैं।

आगे की राह

  • दहेज उन्मूलन के लिए बहुआयामी हस्तक्षेप आवश्यक है: महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को बेहतर करना, उत्तराधिकार कानूनों में सुधार कर वास्तविक संपत्ति अधिकार सुनिश्चित करना, लड़कियों के लिए अनिवार्य विद्यालयी नामांकन और व्यावसायिक प्रशिक्षण लागू करना।
  • भारत सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षा को बढ़ाने हेतु कानूनी उपायों, वित्तीय प्रावधानों एवं सहयोग सेवाओं के माध्यम से महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

Source: TH

 

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