पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य/GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- भारत ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP), 2017 और SDG-3 के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की है, जिसे मुख्य रूप से आयुष्मान भारत (AB) के जरिए लागू किया गया।
- प्रगति के बावजूद, भारत अब भी गंभीर पहुंच–सुलभता–गुणवत्ता अंतराल का सामना कर रहा है, जो दर्शाता है कि UHC के लक्ष्य अभी अधूरे हैं।
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज क्या है?
- इसका अर्थ है कि सभी लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की पूरी श्रृंखला तक बिना आर्थिक कठिनाई के पहुंच हो।
- UHC के प्रमुख घटक हैं:
- देखभाल तक पहुंच : प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ समय पर मिलनी चाहिए।
- गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ : दी जाने वाली देखभाल प्रभावी, सुरक्षित और अच्छी गुणवत्ता की होनी चाहिए।
- आर्थिक सुरक्षा : व्यक्तियों को चिकित्सा व्ययों के कारण आर्थिक कठिनाइयों का सामना नहीं करना चाहिए।
- UHC स्वास्थ्य के सार्वभौमिक मानव अधिकार में निहित है, जिसे अंतरराष्ट्रीय संधियों और अल्मा-अता घोषणा (1978) में मान्यता दी गई, जिसने व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता दी।
भारतीय संदर्भ में UHC की आवश्यकता
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के प्रति ऐतिहासिक प्रतिबद्धता: भोर समिति (1943–46) ने बीमा-आधारित UHC की बजाय सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता दी।
- स्वतंत्रता के बाद नीति विकास: भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 1983 ने “सभी के लिए स्वास्थ्य” के लक्ष्य को मान्यता दी और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल तथा स्वास्थ्य संसाधनों के समान वितरण पर बल दिया।
- बीमा-आधारित UHC की ओर बदलाव: राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY) 2008 और आयुष्मान भारत–PMJAY ने UHC को संस्थागत रूप दिया, लेकिन बीमा-प्रधान दृष्टिकोण को सुदृढ़ किया।
- कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और निजी निर्भरता में वृद्धि: प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के दीर्घकालिक अल्प-वित्तपोषण ने खराब गुणवत्ता वाली सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढांचे और कार्यबल की कमी को जन्म दिया।
- UHC का संवैधानिक आधार: संविधान के राज्य नीति निदेशक तत्व (भाग IV) स्वास्थ्य के अधिकार का आधार प्रदान करते हैं।
- अनुच्छेद 39 (e) राज्य को श्रमिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा का निर्देश देता है।
- अनुच्छेद 42 न्यायसंगत और मानवीय कार्य परिस्थितियों तथा मातृत्व राहत पर बल देता है।
- अनुच्छेद 47 राज्य पर पोषण स्तर और जीवन स्तर बढ़ाने तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधारने का कर्तव्य डालता है।
- अनुच्छेद 243G पंचायतों और नगरपालिकाओं को सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने का अधिकार देता है।
- कोविड-19 के बाद की समझ: महामारी ने बीमा-आधारित पहुंच में असमानताओं, अनौपचारिक श्रमिकों और प्रवासियों के बहिष्कार तथा अस्पताल-केंद्रित मॉडल की कमजोरी को उजागर किया।
- वर्तमान नीति दिशा: वर्तमान में भारत आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) के विस्तार के माध्यम से UHC प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है, जो केंद्र सरकार की प्रमुख सार्वजनिक वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा (PFHI) योजना है।
भारत में UHC अपनाने की चुनौतियाँ
- संसाधन सीमाएँ: भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में गंभीर वित्तीय सीमाओं का सामना कर रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय कई अन्य देशों की तुलना में कम है, जिससे व्यापक सेवाएँ प्रदान करना कठिन होता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय ~2.1% GDP है, जो NHP लक्ष्य 2.5% से कम है।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: कई क्षेत्रों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल, क्लीनिक और प्रशिक्षित कर्मियों की कमी है, जिससे देखभाल तक पहुंच कठिन हो जाती है।
- स्वास्थ्य कार्यबल की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है, जिससे पहुंच और गुणवत्ता में असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
- खंडित स्वास्थ्य प्रणाली: भारत की स्वास्थ्य प्रणाली सार्वजनिक और निजी प्रदाताओं का मिश्रण है, जिससे गुणवत्ता और एवं पहुंच में असंगतियाँ होती हैं।
- साथ ही, स्वास्थ्य राज्य का विषय है, जबकि वित्तपोषण और प्रमुख योजनाएँ केंद्र द्वारा संचालित होती हैं, जिससे असमान परिणाम सामने आते हैं।
| वैश्विक अनुभव से सीख – WHO अल्मा-अता घोषणा (1978) ने UHC की नींव के रूप में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर बल दिया। – कई पूर्वी एशियाई देशों ने बीमा दृष्टिकोण से UHC अपनाया, लेकिन समय के साथ प्राथमिक और द्वितीयक देखभाल को भी सुदृढ़ किया। वृद्ध होती जनसंख्या और पुरानी बीमारियों ने ऐसे बदलावों को आवश्यक बनाया। – चीन और दक्षिण कोरिया ने लगभग सार्वभौमिक बीमा – कवरेज हासिल किया, लेकिन उच्च राजकोषीय लागत का सामना किया। – स्थिरता संबंधी मुद्दों को पहचानते हुए, चीन ने रणनीति बदली: प्राथमिक और द्वितीयक देखभाल को सुदृढ़ करना। रोकथाम, प्रारंभिक पहचान और फॉलो-अप पर बल देना। मानव संसाधनों और जनसंख्या तक पहुँच में निवेश करना। एक सुदृढ़ सार्वजनिक क्षेत्र ने निजी प्रदाताओं को नियंत्रित करने में सहायता की, हालांकि निजी प्रभाव अब भी चुनौती बना हुआ है। |

आयुष्मान भारत 2.0 को अधिक प्रभावी बनाना
- कवरेज से देखभाल की ओर बदलाव: अस्पताल-केंद्रित बीमा से सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल की ओर बढ़ना।
- व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को प्रथम संपर्क बिंदु के रूप में सुदृढ़ करना।
- प्राथमिक और द्वितीयक देखभाल को सुदृढ़ करना: बुनियादी ढाँचे, डायग्नोस्टिक्स, दवाओं और रेफरल सिस्टम में निवेश करना।
- स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWCs) को गेटकीपर के रूप में उपयोग करना ताकि अनावश्यक अस्पताल में भर्ती कम हो।
- सार्वजनिक निवेश बढ़ाना: स्वास्थ्य व्यय को कम से कम GDP के 2.5% तक बढ़ाना।
- रोकथाम और स्वास्थ्य संवर्धन देखभाल तथा स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को प्राथमिकता देना।
- डिजिटल और मानव संसाधन सुधार: ABHA ID, इंटरऑपरेबल स्वास्थ्य रिकॉर्ड और रोग निगरानी को एकीकृत करना।
- कार्यबल की कमी को टास्क-शिफ्टिंग, स्थानीय भर्ती और सतत प्रशिक्षण के माध्यम से दूर करना।
- बेहतर विनियमन और रणनीतिक खरीद: मानक उपचार दिशानिर्देश, लागत नियंत्रण और जवाबदेही तंत्र लागू करना।
- बीमा योजनाओं को एक सुदृढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के अंदर संरेखित करना, जैसा कि वैश्विक स्तर पर देखा गया है।

| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न]: सुदृढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रावधानों के बिना वित्तीय सुरक्षा स्वास्थ्य असमानताओं को अधिक गंभीर कर सकती है। विवेचना कीजिए। |
Source: IE