भारत के बच्चों की वंचना की समस्या: तत्काल और व्यवस्थित सुधार

पाठ्यक्रम: GS2/सामाजिक मुद्दे

संदर्भ 

  • यूनिसेफ की ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन (SWOC) 2025’ रिपोर्ट के अनुसार भारत जैसे विकासशील देशों को अत्यधिक बाल गरीबी और बहुआयामी बाल अभाव का सामना करना पड़ रहा है।

‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2025’ की प्रमुख विशेषताएं 

  • वैश्विक प्रवृत्तियाँ: विश्वभर में 1 अरब से अधिक बच्चे बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे हैं — शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आवास, पोषण, स्वच्छता या जल तक पहुँच की कमी।
  • कुपोषण: यह बाल मृत्यु दर का प्रमुख कारण बना हुआ है। ठिगनापन (stunting), दुबलापन (wasting) और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी लाखों बच्चों को प्रभावित करती है, विशेषकर निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में।
  • जलवायु परिवर्तन और संघर्ष: रिपोर्ट बताती है कि विश्वभर में पाँच में से चार बच्चे अब प्रत्येक वर्ष कम से कम एक चरम जलवायु खतरे का सामना करते हैं।
    • पर्यावरणीय आघात लाखों बच्चों के लिए जल, भोजन और सुरक्षित आश्रय तक पहुँच को खतरे में डालते हैं। इसके अतिरिक्त, संघर्ष क्षेत्रों का प्रभाव दोगुना हो गया है — 2024 में विश्व के 19% बच्चे हिंसा-प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे थे, जबकि 1990 के दशक के मध्य में यह लगभग 9% था।
  • विकास सहायता में कटौती: अंतर्राष्ट्रीय सहायता में कमी वैश्विक असमानताओं को और बढ़ा सकती है, जिससे 2030 तक 4.5 मिलियन अतिरिक्त पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु और आगामी वर्ष तक छह मिलियन बच्चों का स्कूल छोड़ना संभव है।
  • विकास सहायता कटौती: अनुमानित कटौती से 2030 तक 4.5 मिलियन अतिरिक्त बाल मृत्यु और 2026 तक 6 मिलियन बच्चों का स्कूल छोड़ना हो सकता है।

भारत की बाल गरीबी चुनौती 

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 206 मिलियन बच्चे कम से कम एक प्रकार के अभाव का सामना कर रहे हैं।
    • आश्चर्यजनक यह है कि इनमें से 62 मिलियन बच्चे दो या अधिक अभावों का सामना कर रहे हैं, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पोषण, स्वच्छता और जल जैसी महत्वपूर्ण आयाम शामिल हैं। 
  • यह रेखांकित करता है कि गरीबी केवल आय तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता, सेवाओं तक पहुँच और विकास के अवसरों से भी जुड़ी है।
  •  भारत संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC) का हस्ताक्षरकर्ता है, जो बच्चों के समग्र विकास और उनके मानवाधिकारों की पूर्ति को मान्यता देता है।

भारत का नीतिगत ढाँचा: प्रगति और अंतराल

  • बजटीय आवंटन: भारत के 2025-26 के केंद्रीय बजट में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) को ₹26,890 करोड़ मिले, जिनमें शामिल हैं:
    • ₹21,960 करोड़ सक्षम आंगनवाड़ी एवं पोषण 2.0 के लिए
    • ₹1,500 करोड़ मिशन वात्सल्य के लिए मंत्रालय का केंद्रीय व्यय में हिस्सा 2015-16 में 0.96% से घटकर 2025-26 में 0.5% हो गया है, जो दर्शाता है कि बढ़ती आवश्यकताओं के बावजूद बाल कल्याण उच्च नीति प्राथमिकता नहीं बन पाया है।
  • ASER और NFHS-5 निष्कर्ष: भारत की जनसंख्या में 0-18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे लगभग 40% हैं।
    • ASER रिपोर्ट 2023 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 3-6 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 40% बच्चे प्री-स्कूल या आंगनवाड़ी केंद्र से बाहर हैं। 
    • NFHS-5 के अनुसार भारत में बच्चों में ठिगनापन (35.5%) और कम वजन (19.3%) की समस्या है।
  • कार्यान्वयन अंतराल: आंगनवाड़ी उन्नयन में देरी, प्रशिक्षित स्टाफ की कमी और धीमी धनराशि वितरण ने कार्यक्रमों के परिणामों को प्रभावित किया है।
  • शहरी और डिजिटल विभाजन: शहरी झुग्गियाँ सबसे गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं — कुपोषण, असुरक्षित आवास, प्रदूषण और बाधित शिक्षा।
    • साथ ही, डिजिटल बहिष्करण लाखों बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा और कौशल निर्माण के अवसरों से वंचित रखता है।
  • उच्च बाल जनसंख्या: भारत विश्व की सबसे बड़ी बाल जनसंख्या वाला देश है, जिससे इसकी प्रगति वैश्विक बाल विकास लक्ष्यों के लिए आवश्यक है।
  • लगातार असमानताएँ: हाशिए पर रहने वाले समुदायों — विशेषकर दलित, आदिवासी और ग्रामीण या संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों के बच्चे — असमान अभाव का सामना करते हैं।

भारत में बच्चों से संबंधित प्रयास 

  • ICDS और मिड-डे मील; पीएम स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया (PM SHRI); एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूल (EMRS); प्रधानमंत्री यंग अचीवर्स स्कॉलरशिप अवार्ड स्कीम फॉर वाइब्रेंट इंडिया (PM YASASVI) — जो OBCs, EBCs और DNTs के लिए है।

केस स्टडी: केरल का विकेन्द्रीकृत मॉडल 

  • केरल एक उल्लेखनीय सफलता की कहानी प्रस्तुत करता है। राज्य ने अपनी पंचायत राज संस्थाओं और सामुदायिक संगठनों (CBOs) के माध्यम से स्थानीय समितियों को आंगनवाड़ियों से सक्रिय रूप से जोड़कर सशक्त बनाया है। 
  • इन सामुदायिक-स्वामित्व एवं नेतृत्व वाली संरचनाओं ने जवाबदेही, स्थानीय स्वामित्व और समावेशी भागीदारी को बढ़ावा देकर बाल अधिकारों को सुदृढ़ किया तथा कल्याण परिणामों में सुधार किया।

आगे की राह: बाल अधिकारों के लिए राष्ट्रीय मिशन 

  • भारत को बाल गरीबी उन्मूलन को राष्ट्रीय मिशन के रूप में अपनाना चाहिए ताकि यह यूनिसेफ के पाँच-बिंदु ढाँचे के अनुरूप हो। इसके लिए आवश्यक है:
    • सार्वभौमिक डिजिटल पहुँच और समावेशी शिक्षा;
    • मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली;
    • अंतिम छोर तक सार्वजनिक सेवा वितरण;
    • एकीकृत नीतिगत कार्रवाई के लिए अंतर-मंत्रालयी समन्वय; और,
    • सशक्त फ्रंटलाइन कार्यकर्ता और पारदर्शिता हेतु वास्तविक समय निगरानी।
  • एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता: रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और बाल संरक्षण को एकीकृत ढाँचे के तहत जोड़ने वाली ‘पूरे-सरकार’ रणनीति का समर्थन करती है। 
  • डेटा-आधारित नीति: प्रगति को ट्रैक करने और हस्तक्षेपों को प्रभावी ढंग से लक्षित करने के लिए बेहतर वास्तविक समय डेटा संग्रह एवं निगरानी आवश्यक है। 
  • परिवार-आधारित देखभाल: यूनिसेफ संस्थागत देखभाल से परिवार और समुदाय-आधारित बाल संरक्षण प्रणाली की ओर बदलाव का समर्थन करता है।

निष्कर्ष: भविष्य में निवेश 

  • भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश तभी फलदायी होगा जब आज के बच्चे स्वस्थ, शिक्षित और सुरक्षित बड़े हों। 
  • यदि साहसिक सुधार और लक्षित निवेश नहीं किए गए, तो लाखों बच्चे अदृश्य, अनसुने एवं असहाय बने रहेंगे — राष्ट्रीय प्रगति के वादे से बाहर।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में बच्चों द्वारा सामना की जा रही वंचना (Deprivation) के विभिन्न आयामों पर चर्चा कीजिए। भारत में बच्चों द्वारा सामना की जा रही बहुआयामी वंचना को दूर करने हेतु आवश्यक तंत्रगत सुधारों की समीक्षा कीजिए।

Source: BS

 

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