भारत की प्रथम MWh-स्केल वैनेडियम फ्लो बैटरी

पाठ्यक्रम: GS3/विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

संदर्भ

  • विद्युत एवं आवास तथा शहरी कार्य मंत्री ने भारत का सबसे बड़ा और प्रथम MWh-स्तरीय वैनाडियम रेडॉक्स फ्लो बैटरी (VRFB) सिस्टम 3 MWh क्षमता का उद्घाटन किया।
    • यह दीर्घ-अवधि ऊर्जा भंडारण (LDES) समाधानों की दिशा में एक बड़ा कदम है, जो नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण और ग्रिड लचीलापन को बढ़ाता है।

लिथियम आयन बैटरियाँ और उनकी सीमाएँ

  • लिथियम-आयन बैटरियाँ पुनःचार्ज योग्य ऊर्जा भंडारण उपकरण हैं जो लिथियम आयनों को चार्ज वाहक के रूप में उपयोग करती हैं। ये प्रमुख बैटरी तकनीक हैं जिनका उपयोग होता है:
    • इलेक्ट्रिक वाहन (EVs)
    • मोबाइल फोन, लैपटॉप
    • नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण प्रणालियाँ
  • कार्य सिद्धांत: डिस्चार्ज के दौरान, लिथियम आयन एनोड (सामान्यतः ग्रेफाइट) से कैथोड (लिथियम मेटल ऑक्साइड) की ओर इलेक्ट्रोलाइट के माध्यम से जाते हैं, जिससे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है।
  • सीमाएँ:
    • सुरक्षा जोखिम: थर्मल रनअवे, आग और विस्फोट की संभावना यदि बैटरी ओवरचार्ज या क्षतिग्रस्त हो जाए क्योंकि इसमें ज्वलनशील इलेक्ट्रोलाइट होता है।
    • कच्चे माल की सीमित आपूर्ति: लिथियम, कोबाल्ट और निकल पर निर्भरता, जो कुछ ही देशों में केंद्रित हैं, आपूर्ति श्रृंखला को असुरक्षित बनाती है।
    • उच्च लागत: कच्चे माल और निर्माण लागत के कारण Li-ion बैटरियाँ महंगी होती हैं, विशेषकर बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण के लिए।
    • रीसाइक्लिंग चुनौतियाँ: रीसाइक्लिंग तकनीक जटिल और महंगी है; वैश्विक रीसाइक्लिंग दर 10% से कम है।
    • तापमान संवेदनशीलता: अत्यधिक ठंड या गर्मी में दक्षता घट जाती है, जिससे EV प्रदर्शन प्रभावित होता है।
    • समय के साथ क्षय: बार-बार चार्जिंग से क्षमता घटती है और जीवनकाल कम हो जाता है।

आगामी पीढ़ी (Next-Gen) बैटरी तकनीकें

  • आगामी पीढ़ी की बैटरी तकनीकें उभरती हुई ऊर्जा भंडारण प्रणालियाँ हैं जिनका उद्देश्य पारंपरिक लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरियों की सीमाओं को दूर करना है।
  • ठोस-स्थिति और फ्लो बैटरियाँ
    • सॉलिड-स्टेट बैटरियाँ ठोस इलेक्ट्रोलाइट घोल का उपयोग करती हैं, जिन्हें अलग सेपरेटर की आवश्यकता नहीं होती। यह उन्हें अधिक सुरक्षित बनाता है क्योंकि गर्म तापमान में क्षति या फूलने के कारण रिसाव की संभावना कम होती है।
    • फ्लो बैटरियाँ: ये रेडॉक्स (reduction-oxidation) प्रतिक्रियाओं से संचालित होती हैं, जिनमें दो अलग-अलग तरल इलेक्ट्रोलाइट आयन या प्रोटॉन को झिल्ली के माध्यम से आगे-पीछे करती हैं।
      • ये बैटरियाँ बड़ी मात्रा में ऊर्जा संग्रहित कर सकती हैं — जितना इलेक्ट्रोलाइट सेल्स का आकार अनुमति देता है।
      • इनमें ज्वलनशील या प्रदूषक पदार्थों का उपयोग नहीं होता।

आगामी पीढ़ी की बैटरियाँ लिथियम-आयन बैटरियों से कैसे बेहतर हैं?

  • उच्च ऊर्जा घनत्व: ठोस अवस्था, Li-सल्फर, धातु-वायु जैसी बैटरियाँ Li-ion की तुलना में 2–3 गुना अधिक ऊर्जा घनत्व प्रदान करती हैं।
    • इससे EV की रेंज लंबी, बैटरियाँ हल्की और प्रदर्शन बेहतर होता है।
  • बेहतर सुरक्षा: ठोस अवस्था बैटरियाँ गैर-ज्वलनशील ठोस इलेक्ट्रोलाइट का उपयोग करती हैं, जिससे ये अधिक सुरक्षित और स्थिर होती हैं।
  • तेज़ चार्जिंग: तेज़ आयन ट्रांसफर के कारण 10–15 मिनट में 80% तक चार्जिंग संभव।
  • लंबा जीवनकाल: Li-ion बैटरियाँ 500–2,000 चक्रों के बाद क्षय होती हैं। आगामी पीढ़ी की बैटरियाँ 5,000+ चक्रों तक न्यूनतम क्षमता हानि के साथ चल सकती हैं।
  • प्रचुर और सस्ते पदार्थों का उपयोग: सोडियम, सल्फर, जिंक और एल्युमिनियम जैसे प्रचुर तत्वों का उपयोग, जिससे लागत एवं संसाधन निर्भरता कम होती है।
  • पर्यावरण-अनुकूल: लिथियम और कोबाल्ट खनन से मिट्टी का क्षरण, जल संकट और प्रदूषण होता है।
    • आगामी पीढ़ी  बैटरियाँ पर्यावरण-अनुकूल पदार्थों का उपयोग करती हैं, इन्हें रीसाइक्ल करना आसान है और इनका कार्बन फुटप्रिंट कम है।
  • बेहतर तापमान सहनशीलता: ये बैटरियाँ व्यापक तापमान सीमा में स्थिर प्रदर्शन बनाए रखती हैं, जो भारतीय जलवायु के लिए आदर्श है।
  • उन्नत अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त: कॉम्पैक्टनेस, सुरक्षा और ऊर्जा दक्षता के कारण इनका उपयोग किया जा सकता है:
    • एयरोस्पेस और रक्षा
    • उच्च-प्रदर्शन ड्रोन
    • बड़े पैमाने पर ग्रिड ऊर्जा भंडारण

सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय मिशन ऑन ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी एंड बैटरी स्टोरेज (NMTMBS): 2019 में नीति आयोग द्वारा शुरू किया गया।
    • उद्देश्य: स्वच्छ, कनेक्टेड और साझा मोबिलिटी को बढ़ावा देना और घरेलू बैटरी निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना।
  • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना – एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल्स (ACC): 2021 में शुरू की गई ताकि Li-ion से आगे बढ़कर अगली पीढ़ी की बैटरियों का घरेलू निर्माण बढ़ाया जा सके।
  • शैक्षणिक संस्थानों और स्टार्टअप्स के साथ सहयोग: IITs, CSIR लैब्स, IISc और C-MET जैसे भारतीय अनुसंधान संस्थान सक्रिय रूप से Next-gen बैटरी सामग्री विकसित कर रहे हैं।
  • वैश्विक साझेदारियाँ: भारत जापान, EU और अमेरिका के साथ निम्नलिखित ढाँचों के अंतर्गत सहयोग कर रहा है:
    • भारत–जापान ऊर्जा संवाद
    • इंडो–यूएस क्लीन एनर्जी इनिशिएटिव
    • EU–भारत क्लीन एनर्जी और क्लाइमेट पार्टनरशिप
    • ध्यान: तकनीकी हस्तांतरण और उन्नत बैटरी रसायनों में संयुक्त अनुसंधान।

Source: PIB

 

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