पाठ्यक्रम: GS1/भूगोल
संदर्भ
- ब्रह्मपुत्र, तीस्ता और धरला नदियाँ अब अप्रत्याशित हो गई हैं, जो पहले से कहीं अधिक तीव्रता से भूमि का अपरदन कर रही हैं।
नदी तट अपरदन के बारे में
- नदी तट अपरदन वह प्रक्रिया है जिसमें प्रवाहित जल की निरंतर क्रिया से नदी के किनारे नष्ट हो जाते हैं।
- यह एक प्राकृतिक भू-आकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन मानव गतिविधियों या पर्यावरणीय परिवर्तनों से यह तीव्र हो सकती है।
- जब जल नदी की धारा में प्रवाहित होता है, तो यह नदी तटों पर कतरनी बल (shear stress) डालता है।
- समय के साथ यह बल मृदा, रेत और चट्टान के कणों को किनारे से हटा देता है, जिससे नदी तट का अपरदन, धसाव और क्षरण होता है।

नदी तट अपरदन के कारण
- प्राकृतिक कारण
- नदी की तीव्र धारा: तीव्र गति से प्रवाहित जल मोड़ों (meanders) के बाहरी किनारों को अपरदित करता है।
- बाढ़: बाढ़ के समय अधिक जल मात्रा और वेग कटाव को तीव्र कर देते हैं।
- मृदा की संरचना: ढीली या रेतीली मृदा आसानी से अपरदित हो जाती है।
- वनस्पति का अभाव: जड़ें मृदा को बांधे रखने में सहायता करती हैं; उनकी अनुपस्थिति किनारों को कमजोर बना देती है।
- नदी विसर्पण: नदी चैनलों के निरंतर स्थानांतरण से पार्श्व अपरदन होता है।
- मानव-जनित कारण
- नदी तटों के पास वनों की कटाई।
- रेत और बजरी का खनन।
- बाँध एवं तटबंधों का निर्माण, जो प्राकृतिक प्रवाह को परिवर्तित देते हैं।
- नदी किनारे के पास अत्यधिक चराई या खेती।
प्रभाव
- कृषि भूमि और आजीविका की हानि।
- लोगों का विस्थापन, जो असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में एक बड़ी समस्या है।
- सड़कों, पुलों और तटबंधों जैसी अवसंरचना को हानि।
- नीचे की ओर गाद जमना, जिससे नौवहन एवं जलीय जीवन प्रभावित होता है।
नियंत्रण और शमन उपाय
- जैव-इंजीनियरिंग विधियाँ: घास, झाड़ियाँ और पेड़ लगाकर किनारों को स्थिर करना।
- रिप्रैप, स्पर और गेबियन दीवारों का निर्माण।
- नदी प्रशिक्षण और ड्रेजिंग द्वारा प्रवाह को नियंत्रित करना।
- समुदाय-आधारित नदी तट प्रबंधन और भूमि उपयोग की योजना।
Source: TH
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