भारत की स्वच्छ ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं में ‘महत्वपूर्ण कारक’

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • भारत ने 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है, ऐसे में महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच सुनिश्चित करना एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन गया है।

महत्वपूर्ण खनिज क्या हैं? 

  • ये वे खनिज हैं जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यावश्यक हैं। 
  • इन खनिजों की उपलब्धता की कमी या इनका निष्कर्षण एवं प्रसंस्करण कुछ सीमित भौगोलिक क्षेत्रों में केंद्रित होने से “आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरियों और आपूर्ति में बाधा” उत्पन्न हो सकती है।

महत्वपूर्ण खनिजों की सूची 

  • विभिन्न देशों की अपनी विशिष्ट परिस्थितियों और प्राथमिकताओं के आधार पर महत्वपूर्ण खनिजों की अलग-अलग सूची होती है। 
  • भारत के लिए कुल 30 खनिजों को सबसे महत्वपूर्ण पाया गया है, जिनमें से दो उर्वरक खनिज के रूप में महत्वपूर्ण हैं: एंटिमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट, कॉपर, गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, हैफनियम, इंडियम, लिथियम, मोलिब्डेनम, नायोबियम, निकल, PGE, फॉस्फोरस, पोटाश, रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs), रेनियम, सिलिकॉन, स्ट्रोंशियम, टैंटलम, टेल्यूरियम, टिन, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनाडियम, ज़िरकोनियम, सेलेनियम और कैडमियम।

भारत के हरित संक्रमण में महत्वपूर्ण खनिजों की भूमिका 

  • महत्व: महत्वपूर्ण खनिज इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), सोलर पैनलों, पवन टर्बाइनों और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को शक्ति देने वाली तकनीकों के लिए आवश्यक हैं।
    • लिथियम और कोबाल्ट EV बैटरियों का मूल हिस्सा हैं, जबकि REEs पवन टर्बाइनों और इलेक्ट्रॉनिक्स में उच्च प्रदर्शन वाले मैग्नेट के लिए आवश्यक हैं।
  • बाजार दृष्टिकोण: भारत का EV बाजार 2023–2030 के दौरान इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम (EMPS) 2024 जैसी पहलों के अंतर्गत 49% की वार्षिक समग्र वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने की संभावना है।
    • बैटरी भंडारण बाजार, जिसकी 2023 में कीमत $2.8 बिलियन थी, नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण के साथ तेजी से विस्तार करने वाला है।
  • आयात पर निर्भरता: भारत लगभग 100% लिथियम, कोबाल्ट और निकल तथा 90% से अधिक REEs का आयात करता है, जिससे आपूर्ति में बाधा की आशंका बनी रहती है।
    • वर्तमान में चीन वैश्विक REE उत्पादन का 60% और प्रसंस्करण क्षमता का 85% नियंत्रित करता है, जिससे रणनीतिक जोखिम बढ़ जाते हैं।

भारत की खनिज अन्वेषण के लिए नीति 

  • पहलघरेलू भंडार: भारत के पास विशाल अप्रयुक्त खनिज संभावनाएं हैं, जैसे जम्मू-कश्मीर (J&K) और राजस्थान में लिथियम, तथा ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश में REEs।
    • 2023 में, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने J&K में 5.9 मिलियन टन अनुमानित लिथियम संसाधन की पहचान की।
  • नीतिगत पहल: राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण नीति (NMEP), 2016 और खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2021 ने निजी भागीदारी तथा उन्नत सर्वेक्षणों के माध्यम से अन्वेषण को गति दी है।
  • KABIL (खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड) आपूर्ति सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विदेशी खनिज संपत्तियों का अधिग्रहण कर रहा है। 
  • राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) ₹34,300 करोड़ की योजना के साथ अन्वेषण से पुनर्प्राप्ति तक मूल्य श्रृंखला को सुदृढ़ करने का लक्ष्य रखता है। 
भारत की खनिज अन्वेषण के लिए नीति 

चुनौतियाँ

  • पर्यावरणीय चिंताएं: खनन और निष्कर्षण पारिस्थितिक एवं सामाजिक चुनौतियां उत्पन्न करते हैं।
  • सीमित प्रसंस्करण और परिष्करण क्षमता: भारत के पास लिथियम, कोबाल्ट और REEs जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए पर्याप्त घरेलू उन्नत प्रसंस्करण एवं परिष्करण सुविधाएं नहीं हैं।
  • कम घरेलू उत्पादन: पर्याप्त अप्रयुक्त भंडार होने के बावजूद, भारत वैश्विक REE उत्पादन में 1% से भी कम योगदान देता है, जिससे वैश्विक महत्वपूर्ण खनिज बाजारों में इसकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है और आपूर्ति कमजोरियां उत्पन्न होती हैं।

आगे की राह

  • नीतिगत प्रोत्साहन: सब्सिडी, कर प्रोत्साहन, उत्पादन-आधारित योजनाएं और समर्पित R&D वित्तपोषण जैसे सुदृढ़ वित्तीय उपाय घरेलू अन्वेषण एवं प्रसंस्करण को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए आवश्यक हैं।
  • स्वीकृत खनन पट्टों का शीघ्र संचालन और छत्तीसगढ़, राजस्थान एवं जम्मू-कश्मीर जैसे खनिज-समृद्ध क्षेत्रों में अन्वेषण को तीव्र करना आपूर्ति सुरक्षा को बढ़ावा देगा।
  • यंत्रीकृत खनन उपकरणों, स्वचालित प्रसंस्करण संयंत्रों और सतत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को अपनाने से दक्षता बढ़ेगी तथा पर्यावरणीय प्रभाव कम होगा।
  • परिपत्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: भारत प्रतिवर्ष लगभग चार मिलियन मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न करता है, ऐसे में प्रयुक्त बैटरियों और इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट से महत्वपूर्ण खनिजों की पुनर्प्राप्ति एवं पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना आयात निर्भरता को अत्यंत सीमा तक कम कर सकता है।

Source: TH

 

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