पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था
समाचार में
- भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र हाल के समय में अत्यधिक ऋण भार, बढ़ती चूक दरों और अनुचित संग्रह प्रक्रियाओं जैसी चुनौतियों के कारण चर्चा में रहा है।
भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र के बारे में
- माइक्रोफाइनेंस उन निम्न-आय वाले व्यक्तियों या समूहों को महत्वपूर्ण बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करता है जिन्हें सामान्यतः वित्तीय सेवाओं की पहुँच नहीं होती।
- माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFIs) विभिन्न सेवाएँ प्रदान करते हैं जैसे माइक्रो ऋण, बचत खाते और वित्तीय शिक्षा, विशेष रूप से विकासशील देशों में।
- NBFCs, NBFC-MFIs, स्मॉल फाइनेंस बैंक (SFBs) और बैंक सहित MFIs लगभग आठ करोड़ गरीब परिवारों को घर-घर जाकर, बिना गारंटी के ऋण प्रदान करते हैं।
माइक्रोफाइनेंस वित्त पोषण को आकार देने वाले रुझान
- डिजिटल परिवर्तन: फिनटेक साझेदारियाँ MFIs को परिचालन लागत कम करने और क्रेडिट मूल्यांकन सुधारने में सक्षम बना रही हैं, जिससे वे निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बन रहे हैं।
- ब्लेंडेड फाइनेंस मॉडल: रियायती वित्त पोषण को वाणिज्यिक पूंजी के साथ मिलाकर निवेश को जोखिममुक्त करने और निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करने में सहायता मिल रही है।
- ग्रीन माइक्रोफाइनेंस: वित्त पोषण अब पर्यावरणीय रूप से सतत परियोजनाओं की ओर निर्देशित हो रही है, जैसे सौर ऊर्जा ऋण या जलवायु-लचीली कृषि।

- जेंडर-लेंस निवेश: निवेशक उन MFIs को प्राथमिकता दे रहे हैं जो महिला उद्यमियों को सशक्त बनाते हैं, महिला वित्तीय समावेशन के गुणक प्रभाव को पहचानते हुए।
भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र की चिंताएँ और चुनौतियाँ
- ऋण पूंजी पर अत्यधिक निर्भरता: अधिकांश MFIs बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ऋण पर अत्यधिक निर्भर हैं, जिससे वे ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव एवं तरलता संकट के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं, विशेष रूप से आर्थिक मंदी के दौरान।
- सीमित इक्विटी निवेश: निवेशक परिसंपत्ति गुणवत्ता, नियामक जोखिम एवं सीमित निकासी विकल्पों को लेकर सतर्क हैं, जिससे क्षेत्र की विस्तार और आघातों को सहन करने की क्षमता सीमित होती है।
- ऋण वितरण का भौगोलिक संकेंद्रण: MFI संचालन लगभग 250 जिलों तक सीमित है, जिससे देश के दो-तिहाई हिस्से, विशेष रूप से पूर्वोत्तर और आदिवासी क्षेत्रों में, कम पहुँच में हैं, जो समावेशन के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है।
- ओडिशा, केरल, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में बकाया ऋणों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जबकि उत्तर प्रदेश में प्रारंभिक चूक दरों में गिरावट दर्ज की गई है।
- उधारकर्ताओं का अधिक ऋण भार: विभिन्न संस्थानों से कई ऋण लेने के कारण अस्थिर ऋण स्तर उत्पन्न हो गए हैं।
- कई राज्यों में प्रति उधारकर्ता औसत बकाया ऋण अब प्रति व्यक्ति आय से अधिक हो गया है, जिससे पुनर्भुगतान क्षमता को लेकर चिंता बढ़ गई है।
- नियामक सख्ती: RBI द्वारा घरेलू आय मूल्यांकन और अनुपालन मानदंडों को सख्त करने की पहल के कारण आशीर्वाद माइक्रोफाइनेंस एवं आरोहन फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे प्रमुख संस्थानों पर नियामक प्रतिबंध लगे हैं।
- ये उपाय उधारकर्ता संरक्षण के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इससे ऋण वितरण धीमा हुआ है और परिचालन जटिलता में वृद्धि है।
संरचनात्मक चुनौतियाँ
- उच्च ब्याज दरें: कई MFIs अब भी उच्च मार्जिन वसूलते हैं, जिससे उधारकर्ताओं के शोषण और वित्तीय संकट की आशंका बनी रहती है, भले ही उन्हें कम लागत वाली पूंजी उपलब्ध हो।
- संकुचित ऋण पोर्टफोलियो: FY25 में सकल ऋण पोर्टफोलियो 13.5% घटकर ₹3.75 लाख करोड़ रह गया, जो बढ़ती चूक और नियामक दबाव के बीच सतर्क ऋण वितरण को दर्शाता है।
- नीतिगत प्रतिक्रिया: जैसे 2010 में आंध्र प्रदेश अध्यादेश जैसी ऐतिहासिक घटनाएँ अब भी प्रभाव डालती हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने 2023 में इन प्रतिबंधों को ख़ारिज कर दिया, लेकिन क्षेत्र की प्रतिष्ठा और निवेशकों का विश्वास अब भी कमजोर बना हुआ है।
भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में सरकारी प्रयास और पहलें
- RBI का माइक्रोफाइनेंस ऋण के लिए नियामक ढांचा: RBI ने 1 अप्रैल 2022 से प्रभावी एकीकृत नियामक ढांचा प्रस्तुत किया, जो सभी विनियमित संस्थाओं (REs) जैसे NBFC-MFIs, बैंक और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों पर लागू होता है। मुख्य विशेषताएँ:
- समान परिभाषा: माइक्रोफाइनेंस ऋण को ₹3,00,000 तक की वार्षिक आय वाले परिवारों को दिए गए बिना गारंटी वाले ऋण के रूप में परिभाषित किया गया है।
- पुनर्भुगतान लचीलापन: REs को बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों के आधार पर उधारकर्ता-अनुकूल पुनर्भुगतान कार्यक्रम प्रदान करने होंगे।
- आय मूल्यांकन: REs को घरेलू आय का मूल्यांकन करना और इसे क्रेडिट सूचना कंपनियों (CICs) को रिपोर्ट करना आवश्यक है।
- पुनर्भुगतान सीमा: मासिक ऋण पुनर्भुगतान घरेलू आय के 50% से अधिक नहीं होना चाहिए, ताकि उत्तरदायी ऋण वितरण सुनिश्चित हो सके।
- PM स्वनिधि योजना: यह MoHUA द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य स्ट्रीट वेंडर्स को कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान करना है। हालिया विकास:
- मार्च 2030 तक विस्तार, कुल ₹7,332 करोड़ का परिव्यय।
- वृद्धि की गई ऋण सीमा: प्रथम किश्त ₹15,000 तक, दूसरी ₹25,000 तक, और तीसरी ₹50,000 तक।
- डिजिटल सशक्तिकरण: UPI-लिंक्ड RuPay क्रेडिट कार्ड और डिजिटल लेन-देन पर कैशबैक प्रोत्साहन की शुरुआत।
- विस्तारित कवरेज: अब सांख्यिकीय नगरों और अर्ध-शहरी क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।
- प्रभाव: ₹13,797 करोड़ के कुल 96 लाख ऋण वितरित; 47 लाख डिजिटल रूप से सक्रिय लाभार्थियों ने 557 करोड़ से अधिक लेन-देन किए।
- MSME क्रेडिट प्रवाह में RBI की सलाहकार भूमिका: RBI की स्थायी सलाहकार समिति (SAC) माइक्रोफाइनेंस को प्रभावित करती है, जबकि MSMEs पर केंद्रित रहते हुए अप्रत्यक्ष रूप से इसे बढ़ावा देती है:
- यूनिफाइड लेंडिंग इंटरफेस (ULI) और अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क के माध्यम से सहज क्रेडिट पहुँच।
- वैकल्पिक क्रेडिट मूल्यांकन और तीव्र ऋण वितरण के लिए डिजिटल समाधान।
- निष्पक्ष ऋण प्रथाएँ और संकटग्रस्त उधारकर्ताओं के लिए सक्रिय पुनर्वास।
सतत विकास का मार्ग
- भौगोलिक विस्तार: नए क्षेत्रों में विस्तार अति-संतृप्ति को कम करने और संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
- क्रेडिट मूल्यांकन को सुदृढ़ बनाना: घरेलू आय और वर्तमान देनदारियों का सुदृढ़ मूल्यांकन एक सशक्त अंडरराइटिंग के लिए आवश्यक है।
- MFIs को अधिक सटीक मूल्यांकन ढाँचे अपनाने की आवश्यकता है ताकि अति-ऋणभार से बचा जा सके।
- गैर-माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो का प्रबंधन: RBI द्वारा हाल ही में गैर-योग्य परिसंपत्तियों पर दी गई छूट विकास के नए अवसर प्रदान करती है, लेकिन संस्थानों को वित्तीय स्थिरता को जोखिम में डाले बिना विविधीकरण के लिए विशेषज्ञता और सतर्कता की आवश्यकता है।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] भारत में माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के वित्तपोषण से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। नीतिगत सुधार और नवीन वित्तीय साधन इस क्षेत्र में स्थायी पूंजी प्रवाह सुनिश्चित करने में कैसे सहायता कर सकते हैं? |
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