पाठ्यक्रम: GS3/विज्ञान और प्रौद्योगिकी
संदर्भ
- भारत में तकनीकी स्वतंत्रता की दिशा में प्रयास अब एक रणनीतिक अनिवार्यता बन चुका है, क्योंकि डिजिटल संप्रभुता तेजी से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ती जा रही है।
भारत में तकनीकी स्वायत्तता की आवश्यकता
- तकनीकी स्वायत्तता का अर्थ है किसी राष्ट्र की यह क्षमता कि वह महत्वपूर्ण तकनीकों का नवाचार, निर्माण और रखरखाव विदेशी संस्थाओं पर अत्यधिक निर्भर हुए बिना कर सके।
- यह रक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, डिजिटल अवसंरचना और उन्नत विनिर्माण जैसे क्षेत्रों को समाहित करता है।
- विदेश नीति में रणनीतिक स्वायत्तता अब तकनीकी स्वतंत्रता से गहराई से जुड़ गई है।
- आयातित सेमीकंडक्टर्स, रक्षा उपकरणों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर निर्भरता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोखिम उत्पन्न करती है, क्योंकि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और भू-राजनीति अब साइबर युद्ध, सॉफ्टवेयर और ड्रोन द्वारा आकार ले रही है।
- इन क्षेत्रों में स्वदेशी क्षमताएँ संप्रभु निर्णय लेने और बाहरी दबावों से बचाव के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

भारत की तकनीकी स्वायत्तता की विकास यात्रा
- एक वैज्ञानिक राष्ट्र की नींव:
- प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951) ने कृषि सुधार, अवसंरचना विकास और वैज्ञानिक अनुसंधान की आधारशिला रखी।
- CSIR (1942), परमाणु ऊर्जा विभाग (1954), DRDO (1958), अंतरिक्ष विभाग (1972) जैसे संस्थानों की स्थापना की गई ताकि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में स्वदेशी अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके।
- भारत ने 1976 में अपने संविधान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास को शामिल किया, यह दर्शाता है कि जिज्ञासा, तर्क और मानवतावाद नागरिक कर्तव्य हैं — एक दूरदर्शी कदम जिसने भारत की वैज्ञानिक संस्कृति को आकार दिया।
- कृषि और खाद्य सुरक्षा: 1960 और 1970 के दशक में भारत की हरित और श्वेत क्रांतियों ने उसे खाद्य-अभावी राष्ट्र से आत्मनिर्भर राष्ट्र में बदल दिया।
- CSIR और ICAR के नेतृत्व में उच्च उत्पादकता वाली फसलें, यंत्रीकरण और स्वदेशी कीटनाशकों के विकास ने भारत को खाद्य आयात पर स्थायी रूप से निर्भर होने से मुक्त किया।
- अंतरिक्ष और रणनीतिक तकनीकें: ISRO की विनम्र शुरुआत से लेकर चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशनों तक की यात्रा भारत की अंतरिक्ष स्वायत्तता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
- पोखरण परमाणु परीक्षण (1974 और 1998) रणनीतिक आत्मनिर्भरता में माइलस्टोन रहे, जिसके परिणामस्वरूप 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस घोषित किया गया।
- स्वास्थ्य और नवाचार: भारत का फार्मास्युटिकल क्षेत्र, सार्वजनिक अनुसंधान एवं विकास और निजी उद्यमों द्वारा समर्थित, अब वैश्विक स्तर पर सस्ती दवाओं की आपूर्ति करता है।
- भारत ने स्वदेशी टीकों और CoWIN जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का विकास किया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि भारत वैश्विक संकटों का स्वतंत्र और त्वरित समाधान देने में सक्षम है।
वर्तमान सरकारी पहलें अनुसंधान
- राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF): ANRF अधिनियम, 2023 के माध्यम से स्थापित यह सर्वोच्च निकाय अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता को रणनीतिक दिशा देने के लिए बनाया गया है।
- अंतरिक्ष सुधार (ISRO + IN-SPACe): अंतरिक्ष तकनीकों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं।
- राष्ट्रीय नवाचार विकास और दोहन पहल (NIDHI): नवाचार-आधारित उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने के लिए।
- SUPRA योजना: भारत में व्यक्तिगत शोधकर्ताओं और समूहों को दीर्घकालिक प्रभाव वाले मौलिक अनुसंधान के लिए समर्थन देती है।
- TARE योजना: राज्य और निजी संस्थानों के शिक्षकों को केंद्रीय अनुसंधान केंद्रों में व्यावहारिक अनुसंधान अनुभव प्राप्त करने की सुविधा देती है।
- I-STEM (भारतीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग सुविधाओं का मानचित्र): यह भारत भर के शोधकर्ताओं, स्टार्टअप्स और शैक्षणिक संस्थानों को सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित वैज्ञानिक उपकरणों एवं अनुसंधान सुविधाओं तक पारदर्शी पहुँच प्रदान करता है।
- आत्मनिर्भर भारत अभियान: रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स और अंतरिक्ष तकनीक में स्वदेशीकरण पर बल देता है।
- डिजिटल इंडिया कार्यक्रम: डिजिटल अवसंरचना, सेवाओं और साक्षरता पर केंद्रित है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: NRF के माध्यम से अनुसंधान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देती है।
- सेमीकंडक्टर मिशन (2021): घरेलू चिप निर्माण को बढ़ावा देता है ताकि पूर्वी एशियाई आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम हो।
आगामी चुनौतियाँ
- कम अनुसंधान निवेश: भारत GDP का लगभग 0.7% अनुसंधान में निवेश करता है, जबकि दक्षिण कोरिया जैसे वैश्विक नेता 4% से अधिक निवेश करते हैं।
- तकनीकी अंतराल: सेमीकंडक्टर्स, उन्नत सामग्री और चिकित्सा उपकरणों में अभी भी निर्भरता बनी हुई है।
- सॉफ्टवेयर संप्रभुता: भारत के पास ऐसा घरेलू ऑपरेटिंग सिस्टम, डेटाबेस या मूलभूत सॉफ्टवेयर नहीं है जिस पर पूर्ण विश्वास किया जा सके।
- कुशल कार्यबल: शिक्षा और तीव्रता से बदलती तकनीकी आवश्यकताओं के बीच असंतुलन है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग और जैव प्रौद्योगिकी में तीव्र प्रगति के चलते भारत को अपने प्रयासों को तीव्र करना होगा।
रोडमैप: तकनीकी स्वतंत्रता के लिए एक मिशन की ओर
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से अनुसंधान निवेश को बढ़ाना।
- अकादमिक और औद्योगिक सहयोग को मजबूत करना ताकि अनुसंधान व्यावहारिक रूप ले सके।
- अग्रणी तकनीकों में स्वदेशी स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देना।
- डेटा स्थानीयकरण और साइबर सुरक्षा ढांचे को लागू करना ताकि डिजिटल संप्रभुता सुनिश्चित हो सके।
- सेमीकंडक्टर फैब्स, बायोटेक हब्स और AI लैब्स के लिए क्षेत्रीय तकनीकी क्लस्टर बनाना।
- आत्मनिर्भरता के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग — वैश्विक स्तर पर जुड़ाव, लेकिन प्राथमिकता स्वदेशी क्षमता निर्माण को।
- वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना — ऐसे मॉडल अपनाना जो पूरी तरह से सरकार या कॉर्पोरेट फंडिंग पर निर्भर न हों।
निष्कर्ष
- भारत के पास प्रतिभा, विशेषज्ञता और संसाधन हैं जो तकनीकी संप्रभुता प्राप्त करने में सक्षम हैं, लेकिन इसके लिए सामूहिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
- तकनीकी स्वतंत्रता एक राष्ट्रीय मिशन की मांग करती है — जैसे राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए एकता और दृढ़ता की आवश्यकता होती है — ऐसा मिशन जो ओपन-सोर्स नवाचार, रणनीतिक निवेश एवं आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र को एक साथ लाता है।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] भारत की विकास रणनीति में तकनीकी स्वायत्तता के महत्व का परीक्षण कीजिए। नीति, नवाचार और वैश्विक सहयोग इस यात्रा को कैसे आकार दे सकते हैं? |
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