हेनरी डेरोज़ियो प्रभाव
पाठ्यक्रम: GS1/इतिहास
समाचार में
- अपनी पुस्तक, इंडियाज फर्स्ट रेडिकल्स: यंग बंगाल एंड द ब्रिटिश एम्पायर में, रोसिंका चौधरी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हेनरी डेरोजियो की भूमिका पर प्रकाश डाला है।
परिचय
- 1826 में, 17 वर्षीय एंग्लो-पुर्तगाली कवि हेनरी डेरोज़ियो, कलकत्ता के हिंदू कॉलेज में व्याख्याता बने।
- अप्रैल 1831 में उन्हें “नास्तिकता का प्रचार” करने के कारण बर्खास्त कर दिया गया। इसके तुरंत बाद डेरोज़ियो की मृत्यु हो गई, लेकिन उनके छात्रों ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया।
प्रभाव
- उनकी अंग्रेज़ी कविता, विशेषकर “द फ़कीर ऑफ़ जंगीरा” में राष्ट्रवादी पीड़ा और स्वतंत्रता का आह्वान व्यक्त किया गया था।
- उन्होंने छात्रों को अकादमिक संघ बनाने के लिए प्रेरित किया, जिससे स्वतंत्रता, तर्क और सुधारवादी परिचर्चा को बढ़ावा मिला।
- डेरोज़ियन, यंग बंगाल के रूप में विकसित हुए, जो धार्मिक और सामाजिक रूढ़िवादिता को चुनौती देने वाला एक क्रांतिकारी समूह था।
- 1843 में, उन्होंने समतावादी उद्देश्यों के साथ भारत की प्रथम राजनीतिक पार्टी – बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी – की स्थापना की।
- उनकी दृष्टि मैकाले के अंग्रेजीदां अभिजात वर्ग से भिन्न थी; अलेक्जेंडर डफ ने उन्हें “पूर्व में पुरुषों की एक नई नस्ल” के रूप में वर्णित किया था।
विरासत और वैचारिक निरंतरता
- यंग बंगाल के आदर्श, हालांकि अल्पकालिक, समावेशिता, सहिष्णुता, बौद्धिक खुलापन, गांधी और नेहरू के दर्शन के पूर्वाभास थे।
- रोसिंका चौधरी उनके कट्टरपंथ को भारत की आधुनिक राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान का आधार मानते हैं।
Source :TH
भारत में विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणालियाँ (GIAHS)
पाठ्यक्रम: GS 3/अर्थव्यवस्था
समाचार में
- खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, भारत वर्तमान में तीन वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणालियों का घर है।
विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणालियाँ (GIAHS)
- ये गतिशील, समुदाय-प्रबंधित कृषि प्रणालियाँ हैं जो सतत आजीविका और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि जैव विविधता, पारंपरिक ज्ञान एवं सांस्कृतिक विरासत को एकीकृत करती हैं।
- इन्हें एफएओ द्वारा मान्यता प्राप्त है, 29 देशों में ऐसी 99 प्रणालियों को नामित किया गया है।
- हाल ही में, ताजिकिस्तान में एक पर्वतीय कृषि-पशुपालन प्रणाली मध्य एशिया में GIAHS में शामिल होने वाली पहली प्रणाली बन गई है।
- इसके अतिरिक्त, दक्षिण कोरिया में एक चीड़ के पेड़ की कृषि वानिकी प्रणाली एवं एक पारंपरिक बांस-मत्स्य पालन प्रणाली, और पुर्तगाल में एक कृषि-वन-पशुपालन प्रणाली को भी मान्यता दी गई है।
भारत की विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणालियाँ (GIAHS)
- कोरापुट क्षेत्र, ओडिशा: यह उच्चभूमि निर्वाह धान की खेती और देशी चावल की किस्मों की समृद्ध विविधता के साथ-साथ जनजातीय ज्ञान प्रणालियों से जुड़े औषधीय पादप संसाधनों के लिए जाना जाता है।
- कुट्टनाड कृषि प्रणाली, केरल: यह समुद्र तल से नीचे की एक अद्वितीय कृषि पद्धति है जिसमें धान के खेतों, नारियल के बगीचों, अंतर्देशीय मत्स्य पालन और आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र में शंख संग्रह का संयोजन किया जाता है।
- कश्मीर की केसर विरासत: इसमें जैव विविधता और मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली, अंतर-फसल तथा जैविक पद्धतियों का उपयोग करके पारंपरिक केसर की खेती की जाती है।
Source :PIB
संसद द्वारा खान और खनिज संशोधन विधेयक, 2025 पारित
पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था और शासन
संदर्भ
- संसद ने खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन विधेयक, 2025 पारित कर दिया है, जिसका उद्देश्य सतत खनन को बढ़ावा देना और राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन के उद्देश्यों को आगे बढ़ाना है।
- यह विधेयक खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन करेगा।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान
- विधेयक में प्रावधान है कि पट्टाधारक वर्तमान पट्टे में अन्य खनिजों को शामिल करने के लिए राज्य सरकार से आवेदन कर सकते हैं।
- महत्वपूर्ण एवं रणनीतिक खनिजों, और अन्य निर्दिष्ट खनिजों को शामिल करने के लिए, कोई अतिरिक्त राशि का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है।
- इनमें लिथियम, ग्रेफाइट, निकल, कोबाल्ट, सोना और चांदी जैसे खनिज शामिल हैं।
- विधेयक राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट के दायरे का विस्तार करता है और इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण एवं विकास ट्रस्ट कर देता है।
- कैप्टिव खदानों को अंतिम उपयोग की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद, एक वर्ष में उत्पादित खनिजों का 50 प्रतिशत तक बेचने की अनुमति है।
- विधेयक खनिजों की बिक्री की सीमा को हटाता है और खनिज एक्सचेंजों को पंजीकृत एवं विनियमित करने के लिए एक प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान करता है।
- यह विधेयक सरकार को एक्सचेंजों के माध्यम से खनिज व्यापार को सुविधाजनक बनाने, पर्यावरणीय खतरों को कम करने के लिए खनिज डंप की बिक्री की अनुमति देने और गहरे खनिजों के निष्कर्षण को बढ़ावा देने का अधिकार देता है।
Source: DD News
एआई के युग में व्हाइट-कॉलर और ब्लू-कॉलर रोजगार
पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था, कौशल विकास
संदर्भ
- जॉब लिस्टिंग प्लेटफॉर्म इनडीड की हालिया रिपोर्ट, द वर्क अहेड, इस बात पर प्रकाश डालती है कि भारत में व्हाइट कॉलर और ब्लू कॉलर दोनों ही प्रकार के कर्मचारी अपने करियर को भविष्य के लिए सुरक्षित बनाने के लिए तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपना रहे हैं।
एआई युग में व्हाइट-कॉलर बनाम ब्लू-कॉलर रोजगार
- व्हाइट -कॉलर रोजगार: पारंपरिक रूप से संज्ञानात्मक और डेस्क-आधारित भूमिकाएँ (वित्त, आईटी, कानूनी, प्रबंधन) शामिल होती हैं।
- एआई दोहराए जाने वाले कार्यों को स्वचालित करके, उच्च-मूल्य वाले कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाकर, और डिजिटल साक्षरता, डेटा विश्लेषण एवं एआई नैतिकता में पुनः कौशलीकरण की आवश्यकता के द्वारा इन्हें नया रूप दे रहा है।
- ब्लू-कॉलर रोजगार: पारंपरिक रूप से मैनुअल और कुशल श्रम (विनिर्माण, वितरण, निर्माण) शामिल होती हैं।
- एआई के साथ, पूर्वानुमानित रखरखाव, सुरक्षा निगरानी, रसद अनुकूलन और ग्राहक जुड़ाव जैसे कार्यों को डिजिटल किया जा रहा है, जिसके लिए बुनियादी डिजिटल एवं एआई परिचितता की आवश्यकता होती है।
Source: TH
एआई द्वारा एंटीबायोटिक्स डिजाइन
पाठ्यक्रम: GS3/ विज्ञान और प्रौद्योगिकी
संदर्भ
- मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के शोधकर्ताओं ने दवा-प्रतिरोधी निसेरिया गोनोरिया और मेथिसिलिन-प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस (MRSA) से निपटने के लिए जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके दो नए संभावित एंटीबायोटिक विकसित किए हैं।
- गोनोरिया एक यौन संचारित संक्रमण (STI) है जो निसेरिया गोनोरिया जीवाणु के कारण होता है।
परिचय
- एंटीबायोटिक्स रोगाणुरोधी एजेंट होते हैं जो विशिष्ट जीवाणु प्रक्रियाओं को लक्षित करते हैं, उनकी वृद्धि को बाधित करते हैं या उन्हें मार देते हैं।
- 1928 में अलेक्जेंडर फ्लेमिंग द्वारा पेनिसिलियम नोटेटम नामक कवक से पेनिसिलिन की खोज के बाद पहला आधुनिक एंटीबायोटिक विकसित हुआ।
- सुपरबग, जिन्हें बहुऔषधि प्रतिरोधी सूक्ष्मजीव भी कहा जाता है, संक्रामक जीव होते हैं, मुख्यतः बैक्टीरिया, जिन्होंने कई प्रकार के एंटीबायोटिक्स और अन्य रोगाणुरोधी दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया है, जिससे उनका उपचार मुश्किल हो जाता है।
Source: BBC
क्वांटम यांत्रिकी और सामान्य सापेक्षता
पाठ्यक्रम: GS3/विज्ञान और प्रौद्योगिकी
समाचार में
- एक नए अध्ययन में क्वांटम यांत्रिकी और सामान्य सापेक्षता के प्रतिच्छेदन का पता लगाने के लिए एक अभूतपूर्व प्रयोग का प्रस्ताव दिया गया है।
क्वांटम यांत्रिकी
- यह परमाणु एवं उप-परमाणु पैमानों पर पदार्थ और ऊर्जा के व्यवहार का वर्णन करता है।
- यह तरंग-कण द्वैत को प्रकट करता है, जहाँ इलेक्ट्रॉन जैसे कण तरंग-सदृश और कण-सदृश, दोनों गुण प्रदर्शित करते हैं।
- प्रमुख अवधारणाओं में ऊर्जा का अध्यारोपण, उलझाव और परिमाणीकरण शामिल हैं।
- परमाणु घड़ियाँ, क्वांटम सेंसर और क्वांटम नेटवर्क जैसी प्रौद्योगिकियाँ इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित हैं।
सामान्य सापेक्षता
- आइंस्टीन द्वारा 1915 में प्रस्तावित, सामान्य सापेक्षतावाद ने गुरुत्वाकर्षण को द्रव्यमान के कारण स्पेसटाइम की वक्रता के रूप में पुनर्परिभाषित किया।
- गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग, ब्लैक होल और समय फैलाव जैसी घटनाओं द्वारा इसकी पुष्टि होती है।
- यह एक सतत सिद्धांत है, जो ग्रहों और आकाशगंगाओं जैसी विशाल संरचनाओं का वर्णन करता है।
हालिया शोध
- एक नए अध्ययन में विभिन्न ऊँचाइयों पर स्थित उलझी हुई परमाणु घड़ियों का उपयोग करके यह परीक्षण करने का प्रस्ताव है कि क्वांटम प्रणालियाँ घुमावदार स्पेसटाइम में कैसे व्यवहार करती हैं।
- यटरबियम परमाणुओं के साथ सुदृढ़ W-अवस्था उलझाव और सटीक समय-निर्धारण का लाभ उठाकर, इस सेटअप का उद्देश्य गुरुत्वाकर्षण समय फैलाव के कारण होने वाले सूक्ष्म आवृत्ति बदलावों का पता लगाना है, जो सापेक्षतावादी परिस्थितियों में क्वांटम सुसंगतता का प्रत्यक्ष परीक्षण प्रदान करता है।
महत्त्व
- हालिया प्रयोग वक्रित स्पेसटाइम में एकात्मकता और रैखिकता जैसे मूल क्वांटम सिद्धांतों को प्रमाणित कर सकता है, तथा संभावित रूप से नई भौतिकी को उजागर कर सकता है।
- यह वर्तमान तकनीकों का उपयोग करके क्वांटम यांत्रिकी और सामान्य सापेक्षता के बीच सेतु बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
Source :TH
पल्मायरा ताड़ के पेड़
पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण
समाचार में
- ओडिशा बिजली से संबंधित मृत्यु के मामले में शीर्ष राज्यों में शामिल है (आईएमडी और एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार)।
- विद्युत गिरने से प्राकृतिक सुरक्षा के रूप में पल्मायरा ताड़ के पेड़ लगाने को बढ़ावा दिया जा रहा है।
पल्मायरा पाम (बोरासस फ्लैबेलिफ़र) के बारे में
- उत्पत्ति एवं स्थिति: दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र।
- तमिलनाडु का राज्य वृक्ष घोषित।
- भौगोलिक आवश्यकताएँ:
- अत्यधिक अनुकूलनीय मृदा, रेतीली, लाल, काली, जलोढ़, शुष्क और यहाँ तक कि बंजर भूमि की मृदा में भी उगती है।
- 750 मिमी से कम वार्षिक वर्षा वाले अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त।
- 100 वर्ष या उससे अधिक तक जीवित रह सकता है।
- उपयोगिता:
- फल खाने योग्य होते हैं (ताड़ी, ताड़ की चीनी, गुड़, ताड़ के फल की जेली)।
- पत्तियों का उपयोग प्राचीन काल में छप्पर, चटाई और लेखन सामग्री बनाने के लिए किया जाता था।
- गहरी जड़ें मृदा अपरदन को रोकती हैं।
- भूजल पुनर्भरण में सहायक।
- शुष्क क्षेत्रों में चारा और छाया प्रदान करता है।
Source: DTE
सुंदरबन में लवणीय जल के मगरमच्छ
पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण
संदर्भ
- हाल ही में जारी एक रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है, “सुंदरबन में लवणीय जल के मगरमच्छों की जनसंख्या आकलन और आवास पारिस्थितिकी अध्ययन 2025” में सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व में लवणीय जल के मगरमच्छों की आबादी में वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।
मुहाना या लवणीय जल का मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पोरोसस)
- भारत में, लवणीय जल के मगरमच्छ ओडिशा और पश्चिम बंगाल के दलदली क्षेत्रों, नदियों, मैंग्रोव और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- ये पृथ्वी पर सबसे बड़े जीवित सरीसृप हैं।
- पारिस्थितिक महत्व: यह एक अतिमांसाहारी प्रजाति के रूप में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखता है और शवों एवं जंगली अवशेषों को खाकर प्रवाहित जल को साफ रखता है।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN स्थिति: कम चिंताजनक
- यह वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के अंतर्गत सूचीबद्ध है।
भारत में मगरमच्छ प्रजातियाँ
- भारत में मगरमच्छों की तीन मुख्य प्रजातियाँ पाई जाती हैं – घड़ियाल (गेवियलिस गैंगेटिकस), लवणीय जल का मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पोरोसस) और मगर (क्रोकोडाइलस पैलस्ट्रिस)।
- ओडिशा इन तीनों मगरमच्छ प्रजातियों की जंगली जनसंख्या की मेजबानी के कारण विशिष्ट स्थान पर है।

| सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व (SBR) – सुंदरबन विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा (गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा) और मैंग्रोव वन है। – स्थान: सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व या भारतीय सुंदरबन पश्चिम बंगाल में स्थित है और 9,630 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। – यह क्षेत्र कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित है। – नदी प्रणाली: यह पश्चिम में मुरीगंगा नदी और पूर्व में हरिनभंगा एवं रायमंगल नदियों से घिरा है। – इस पारिस्थितिकी तंत्र से होकर बहने वाली अन्य प्रमुख नदियाँ सप्तमुखी, ठकुरन, मतला और गोआसाबा हैं। – पारिस्थितिक महत्व: यहां 34 मैंग्रोव प्रजातियाँ पायी जाती हैं, जिनमें हेरिटिएरा फोम्स और एक्सोकेरिया अगलोचा जैसे वास्तविक मैंग्रोव शामिल हैं। – जीव: रॉयल बंगाल टाइगर, फिशिंग कैट, ऑलिव रिडले कछुए, इरावदी डॉल्फ़िन आदि। – पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ: कार्बन सिंक, तूफ़ान सर्ज बफर, मत्स्य पालन के लिए नर्सरी। सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व की मान्यता (SBR) – मुख्य क्षेत्र (सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान) को 1987 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। – इसे 1989 में यूनेस्को बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया था। – सुंदरबन वेटलैंड को 2019 में रामसर स्थल घोषित किया गया था। |
Source: TH
मन्नार की खाड़ी में प्रवालों का पुनरुद्धार
पाठ्यक्रम: GS1/भूगोल; GS3/पर्यावरण
संदर्भ
- तमिलनाडु के तट पर स्थित मन्नार की खाड़ी में प्रवाल भित्तियों में दो दशकों से अधिक समय से चल रहे समर्पित वैज्ञानिक पुनरुद्धार प्रयासों के कारण महत्वपूर्ण पुनरुद्धार हुआ है।
परिचय
- प्रवाल अकशेरुकी होते हैं जो निडारिया नामक जंतुओं के एक बड़े समूह से संबंधित हैं।
- प्रवाल कई छोटे, मुलायम जीवों से बनते हैं जिन्हें पॉलीप्स कहते हैं।
- वे सुरक्षा के लिए अपने चारों ओर एक चट्टानी चाक जैसा (कैल्शियम कार्बोनेट) बाह्यकंकाल स्रावित करते हैं।
- इसलिए प्रवाल भित्तियाँ लाखों छोटे पॉलीप्स द्वारा निर्मित होती हैं जो बड़ी कार्बोनेट संरचनाएँ बनाते हैं।
- स्वरूप: प्रवालों का रंग लाल से बैंगनी और यहाँ तक कि नीले रंग तक होता है, लेकिन सामान्यतः भूरे और हरे रंग के होते हैं।
- भारत में प्रवाल भित्तियाँ: कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, अंडमान एवं निकोबार, लक्षद्वीप द्वीप और मालवन।
मन्नार की खाड़ी के बारे में
- यह भारत के प्रवाल-समृद्ध क्षेत्रों में से एक है, जो लगभग 100 वर्ग किलोमीटर में फैला है और इसमें चट्टान बनाने वाले प्रवालों की उच्च प्रजाति विविधता (117 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं) है।
- यह लक्षद्वीप सागर में एक बड़ी उथली खाड़ी है, जो भारत के दक्षिण-पूर्वी सिरे और पश्चिमी श्रीलंका के बीच स्थित है।
- यह रामेश्वरम (द्वीप), एडम्स (राम) ब्रिज (तटवर्ती तटों की एक श्रृंखला) और मन्नार द्वीप से घिरा है; लगभग 130-275 किमी चौड़ा और 160 किमी लंबा।
Source: TH
पाम सिवेट
पाठ्यक्रम: GS3/समाचार में प्रजातियां
संदर्भ
- सिवेट समस्या के कारण केरल उच्च न्यायालय की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित करनी पड़ी।
पाम सिवेट (पैराडॉक्सुरस हर्माफ्रोडिटस) के बारे में
- सामान्य नाम: एशियाई पाम सिवेट, कॉमन पाम सिवेट और टोडी कैट।
- उपस्थिति: प्रायः इसे बिल्ली समझ लिया जाता है; यह अपने तीखे मूत्र के लिए जाना जाता है, जिससे बंद स्थानों में इसकी उपस्थिति स्पष्ट दिखाई देती है।
- पारिस्थितिक भूमिका: वन पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बीज प्रकीर्णक के रूप में महत्वपूर्ण, जैव विविधता को सहारा देने वाला।
- आहार: यह सर्वाहारी है और अधिकांशतः फल और जामुन खाता है, कभी-कभी छोटे स्तनधारी और कीड़े भी खाता है।
- आवास और गतिविधियाँ: यह दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापक रूप से पाया जाता है, और रात एवं भोर के बीच सबसे अधिक सक्रिय माना जाता है।
- खतरे: वनों की कटाई, कृषि के लिए भूमि परिवर्तन और वन्यजीव तस्करी।
- संरक्षण स्थिति: न्यूनतम चिंता (IUCN)।
क्या आप जानते हो?
- कोपी लुवाक (सिवेट कॉफ़ी) कॉफ़ी चेरी से बनाई जाती है, जिसे एशियाई पाम सिवेट आंशिक रूप से पचाकर बाहर निकाल देते हैं।
- पाचन प्रक्रिया से बीन्स में अम्लता कम हो जाती है, जिससे कॉफ़ी को एक अलग स्वाद मिलता है।

Source: TH
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