भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बढ़ते दुरुपयोग, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर, पर चिंता व्यक्त की और आत्मसंयम व नियमन की आवश्यकता पर बल दिया।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायालय ने दोहराया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभ्य समाज की मूलभूत आवश्यकता है और इसे “तुच्छ और मनमाने कारणों” से खराब नहीं किया जा सकता।
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) को जीवन और गरिमा के अधिकार (अनुच्छेद 21) के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। यदि टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है, तो गरिमा की प्रधानता होगी।