भारत के निर्यात कुछ राज्यों में केंद्रित

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • भारतीय राज्यों पर RBI हैंडबुक ऑफ स्टैटिस्टिक्स 2024–25 से पता चलता है कि निर्यात वृद्धि कुछ विकसित तटीय और औद्योगिक राज्यों में तीव्रता से केंद्रित हो रही है, जिससे बेहतर क्षेत्रीय एवं रोजगार-संबंधी चुनौतियाँ छिप जाती हैं।

भारत के निर्यात का पैटर्न

  • कुछ राज्यों का बढ़ता प्रभुत्व: शीर्ष 10 राज्य अब FY25 में भारत के 91% से अधिक निर्यात के लिए जिम्मेदार हैं, जो FY22 में 84% था।
    • शीर्ष पाँच राज्य – गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश – मिलकर राष्ट्रीय निर्यात का लगभग 70% योगदान करते हैं।
  • क्षेत्रीय असमानता: पश्चिमी और दक्षिणी तटीय राज्य वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में गहराई से एकीकृत हो रहे हैं।
    • उत्तरी और पूर्वी भारत के बड़े हिस्से धीरे-धीरे व्यापार इंजन से अलग हो रहे हैं।

निर्यात केंद्रित होने के पीछे कारण

  • अवसंरचना लाभ: तटीय राज्यों को बंदरगाहों, औद्योगिक कॉरिडोर, मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स और वैश्विक बाजारों की निकटता का लाभ मिलता है।
  • सघनता अर्थव्यवस्था: स्थापित औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र पूँजी, कुशल श्रम, आपूर्तिकर्ताओं और सहायक उद्योगों को आकर्षित करता है, जिससे प्रभुत्व सुदृढ़ होता है।
  • लागत से जटिलता की ओर बदलाव: वैश्विक पूँजी उन क्षेत्रों को प्राथमिकता देती है जिनमें उच्च आर्थिक जटिलता, विविधीकृत निर्यात टोकरी और सुदृढ़ संस्थागत क्षमता होती है।
  • वैश्विक व्यापार बाधाएँ: WTO के आँकड़े दिखाते हैं कि वैश्विक वस्तु व्यापार वृद्धि 0.5–3% तक धीमी हो रही है, जबकि UNCTAD के अनुमान बताते हैं कि शीर्ष 10 निर्यातक वैश्विक व्यापार का लगभग 55% नियंत्रित करते हैं।
    • इससे प्रतिस्पर्धा तेज होती है और पहले से एकीकृत क्षेत्रों को लाभ मिलता है।
  • वित्तीय गहराई असमानता: उच्च-निर्यात वाले राज्य जैसे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश 90% से अधिक क्रेडिट–डिपॉजिट अनुपात दर्ज करते हैं, जिससे स्थानीय बचत स्थानीय उद्योग को वित्तपोषित कर पाती है।

निर्यात केंद्रित होने का प्रभाव

  • क्षेत्रीय असमानता: पश्चिमी और दक्षिणी तटीय राज्य वैश्विक व्यापार में गहराई से एकीकृत हो रहे हैं, जबकि उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्र अलग हो रहे हैं।
  • निर्यात लचीलापन कमजोर: कुछ राज्यों और क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भरता क्षेत्रीय या क्षेत्र-विशिष्ट आघातों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाती है।
  • सीमित रोजगार सृजन: निर्यात वृद्धि अब बड़े पैमाने पर रोजगार की गारंटी नहीं देती, जिससे यह विकास का साधन कमजोर हो जाता है।
  • राजकोषीय और सामाजिक दबाव: लगातार क्षेत्रीय असमानता सहकारी संघवाद और समावेशी विकास के उद्देश्यों पर दबाव डालती है।

सरकार की पहल – आंतरिक क्षेत्रों की निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़ाने हेतु

  • जिला को निर्यात केंद्र (DEH): प्रत्येक जिले को निर्यात केंद्र में बदलने का लक्ष्य। इसमें अवसंरचना विकास (प्रोसेसिंग, परीक्षण, लॉजिस्टिक्स) और स्थानीय उत्पादकों की क्षमता निर्माण पर ध्यान दिया जाता है।
    • इसे वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP) के साथ एकीकृत किया गया है ताकि विकेंद्रीकृत और संतुलित निर्यात संवर्धन हो सके।
  • निर्यात संवर्धन मिशन (EPM): भारत का नया, एकीकृत छह-वर्षीय कार्यक्रम (FY 2025–2031) जो प्राथमिकता देता है:
    • गैर-पारंपरिक जिले और भू-आवेष्ठित राज्य।
    • श्रम-प्रधान और MSME-आधारित निर्यात।
  • कृषि निर्यात नीति और APEDA वित्तीय सहायता योजना (FAS): ग्रामीण और आंतरिक क्षेत्रों से कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात को लक्षित करती है।
  • निर्यात उत्कृष्टता नगर (TEE): ऐसे नगरों की पहचान करता है जिनमें क्षेत्र-विशिष्ट निर्यात क्षमता है (हस्तशिल्प, हथकरघा, वस्त्र, चमड़ा)। यह वित्तीय सहायता, तकनीकी उन्नयन, कौशल विकास और निर्यात विपणन समर्थन प्रदान करता है।
  • पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP): भारत की लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने और व्यापार दक्षता में सुधार करने का लक्ष्य।
    • सड़क, रेल, अंतर्देशीय जलमार्ग और मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी में सुधार।
    • ड्राई पोर्ट, लॉजिस्टिक्स पार्क और मालवाहक कॉरिडोर का विकास।
    • उत्पादन केंद्रों से बंदरगाहों तक माल की तीव्र आवाजाही।

आगे की राह

  • जिला-स्तरीय संस्थानों, लॉजिस्टिक्स, वित्त और कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करना ताकि आंतरिक क्षेत्र मध्यम एवं उच्च-जटिलता वाले निर्यात मूल्य श्रृंखलाओं में प्रवेश कर सकें।
  • निर्यात वृद्धि लक्ष्यों को रोजगार सृजन, क्षेत्रीय प्रसार और मूल्य-श्रृंखला एकीकरण जैसे मानकों के साथ पूरक करना, ताकि समावेशी एवं संतुलित व्यापार-आधारित विकास सुनिश्चित हो सके।

Source: TH

 

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