पाठ्यक्रम: GS2/ शासन व्यवस्था
संदर्भ
- उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा इसे रोकने के लिए बनाए गए नियमों के बावजूद, भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग एक गहरी जड़ जमाए हुए मुद्दा बना हुआ है।
रैगिंग क्या है?
- रैगिंग शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार का कोई भी कृत्य है जो सामान्यतः वरिष्ठ छात्रों द्वारा जूनियर छात्रों के साथ दीक्षा या दोस्ती के बहाने किया जाता है।
- इसमें मौखिक दुर्व्यवहार और जबरन कार्य करवाने से लेकर अत्यधिक शारीरिक यातना और यौन शोषण तक शामिल है।
शिक्षा संस्थानों में रैगिंग का खतरा
- सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के माध्यम से प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार, 2012 से 2023 तक रैगिंग के कारण 78 मौतें हुई हैं।
- UGC की समर्पित हेल्पलाइन ने विगत एक दशक में 8,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की हैं, जिनमें 2012 और 2022 के बीच मामलों में 208% की वृद्धि हुई है।
रैगिंग रोकने के लिए सरकार के कदम
- उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश: 2009 में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने रैगिंग रोकथाम कार्यक्रम के कार्यान्वयन का आदेश दिया। कार्यक्रम में निम्नलिखित कदम सम्मिलित थे:
- एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन: एक टोल-फ्री हेल्पलाइन या कॉल सेंटर स्थापित किया जाना।
- विनियम: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को उच्च शिक्षा संस्थानों में रैगिंग को रोकने के लिए विनियम बनाने का निर्देश दिया।
- एंटी-रैगिंग समिति: UGC को एक एंटी-रैगिंग समिति और एक एंटी-रैगिंग स्क्वॉड का गठन करने का आदेश दिया।
- विश्व जागृति मिशन बनाम केंद्र सरकार और अन्य, 2001 के एक ऐतिहासिक निर्णय में, उच्चतम न्यायालय ने रैगिंग को दंडनीय अपराध बनाया और सख्त संस्थागत उपायों का आदेश दिया।
- गैर सरकारी संगठनों की भूमिका: सोसाइटी अगेंस्ट वायलेंस इन एजुकेशन (SAVE) जैसे संगठन सक्रिय रूप से मामलों को ट्रैक करते हैं और संस्थानों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई के लिए दबाव डालते हैं।
- यूजीसी एंटी-रैगिंग विनियम (2009): UGC ने 24×7 एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन की स्थापना की और छात्रों और अभिभावकों से रैगिंग के विरुद्ध वार्षिक हलफनामे अनिवार्य किए।
- इसने UGC को गैर-अनुपालन संस्थानों से धन वापस लेने की अनुमति दी।
- 2007 में राघवन समिति का गठन भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के खतरे को दूर करने के लिए किया गया था।
- समिति ने भारतीय दंड संहिता (IPC) के अंतर्गत रैगिंग को दंडनीय आपराधिक अपराध के रूप में मानने की सिफारिश की।
निरंतर रैगिंग के कारण
- कठोर क्रियान्वयन का अभाव: उच्चतम न्यायालय ने 15 वर्ष पूर्व रैगिंग विरोधी दिशा-निर्देश जारी किए थे, लेकिन वे ज्यादातर कागजों तक ही सीमित रह गए हैं।
- UGC के नियमों के अनुसार रैगिंग रोकने में विफल रहने वाले कॉलेजों के विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन नियामक संस्था ने 2009 में हेल्पलाइन की स्थापना के बाद से इन प्रावधानों को लागू नहीं किया है।
- गैर-जिम्मेदार प्रणाली: पीड़ितों को प्रायः तदर्थ, गैर-पारदर्शी प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है, जहाँ शिकायतों का पर्याप्त रूप से समाधान नहीं किया जाता है।
- संस्थागत निष्क्रियता: एंटी-रैगिंग स्क्वॉड और औचक निरीक्षण के लिए आदेश के बावजूद, UGC की गई कार्रवाई का कोई रिकॉर्ड नहीं रखता है।
- कम अनुपालन: UGC के दिशा-निर्देशों के अनुसार छात्रों को सालाना एंटी-रैगिंग हलफनामा जमा करना होता है, फिर भी RTI डेटा से पता चलता है कि विगत एक दशक में केवल 4.49% छात्रों ने ऐसा किया है।
- विधिक प्रवर्तन में विफलता: संस्थानों को रैगिंग की शिकायत के 24 घंटे के अन्दर FIR दर्ज करना होता है, लेकिन UGC इस निर्देश के अनुपालन को ट्रैक नहीं करता है।
आगे की राह
- दिशा-निर्देशों का कठोरता से पालन: अधिकारियों को उच्चतम न्यायालय और UGC के नियमों का पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए, तथा चूक के लिए संस्थानों को जवाबदेह बनाना चाहिए।
- प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान: रैगिंग की घटनाओं को रोकने के लिए परिसरों में CCTV निगरानी का विस्तार किया जाना चाहिए।
- पीड़ितों द्वारा गुमनाम रिपोर्टिंग को सक्षम करने के लिए सुरक्षित ऑनलाइन पोर्टल और आईडी-आधारित डैशबोर्ड।
- कानूनी स्पष्टता: शिकायतों को अनदेखा करने में दोषी संकाय या प्रबंधन सहित अपराधियों को सख्त दंड सुनिश्चित करने के लिए कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है।
Source: IE
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