पाठ्यक्रम: GS2/ शासन, GS3/ विज्ञान और प्रौद्योगिकी
संदर्भ
- उच्च गति कनेक्टिविटी की बढ़ती मांग से प्रेरित सैटेलाइट मेगाकॉन्स्टेलेशन का तीव्र विस्तार सीमित स्पेक्ट्रम और कक्षीय स्लॉट्स के लिए वैश्विक संघर्ष को तीव्र कर रहा है।
सैटेलाइट स्पेक्ट्रम क्या है?
- सैटेलाइट स्पेक्ट्रम उन रेडियो आवृत्तियों को संदर्भित करता है जो सैटेलाइट संचार के लिए उपयोग की जाती हैं।
- ये आवृत्तियाँ सैटेलाइट आधारित प्रणालियों को कक्षा में उपस्थित उपग्रहों और ग्राउंड स्टेशनों के बीच डेटा एवं सिग्नल प्रसारित करने में सक्षम बनाती हैं।
- स्थलीय स्पेक्ट्रम के विपरीत, सैटेलाइट स्पेक्ट्रम राष्ट्रीय क्षेत्रीय सीमाओं के बिना संचालित होता है और इसे वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
- सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को विभिन्न आवृत्ति बैंडों में विभाजित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक विशेष प्रकार के संचार के लिए उपयुक्त होता है।

भारत में स्पेक्ट्रम आवंटन
- सैटकॉम के लिए स्पेक्ट्रम दूरसंचार अधिनियम, 2023 की प्रथम अनुसूची का भाग है (“प्रशासनिक प्रक्रिया के माध्यम से स्पेक्ट्रम का आवंटन”)।
- अधिनियम की धारा 4(4) के अंतर्गत, दूरसंचार स्पेक्ट्रम की नीलामी द्वारा आवंटन किया जाएगा “सिवाय उन प्रविष्टियों के जो प्रथम अनुसूची में सूचीबद्ध हैं, जिनका आवंटन प्रशासनिक प्रक्रिया द्वारा किया जाएगा।”
- अधिनियम के अंतर्गत प्रशासनिक प्रक्रिया का अर्थ है बिना नीलामी (बोली प्रक्रिया) के स्पेक्ट्रम का आवंटन।
स्पेक्ट्रम के लिए अंतरिक्षीय संघर्ष
- स्पेक्ट्रम कंजेशन: Ku, Ka और L बैंड की अत्यधिक मांग है। ओवरलैपिंग आवृत्तियाँ हस्तक्षेप का जोखिम उत्पन्न करती हैं, जिससे सेवा की गुणवत्ता घटती है और GPS जैसी महत्वपूर्ण कार्यप्रणालियाँ प्रभावित होती हैं।
- कक्षीय कंजेशन और मलबा: पृथ्वी की कक्षा में पहले से ही 40,000 से अधिक ट्रैक किए गए ऑब्जेक्ट उपस्थित हैं, जिनमें 10 सेमी से बड़े 27,000+ मलबे शामिल हैं।
- अनुमान है कि 2030 तक 50,000+ उपग्रह कक्षा में होंगे, जिससे टकराव का जोखिम बढ़ेगा और वैज्ञानिक अवलोकन जटिल होंगे।
- ITU की प्रथम-आगमन, प्रथम-सेवा प्रणाली: यह प्रणाली उन देशों एवं कंपनियों को लाभ देती है जिनके पास संसाधन हैं और जो जल्दी फाइल कर सकते हैं तथा जटिल समन्वय प्रबंधित कर सकते हैं। देर से आने वालों के पास कम और कम मूल्यवान स्पेक्ट्रम–कक्षा विकल्प बचते हैं।
- डिजिटल विभाजन और वहनीयता: LEO उपग्रह 20–40 ms की कम विलंबता प्रदान करते हैं, जिससे टेलीमेडिसिन और ऑनलाइन शिक्षा संभव होती है।
- लेकिन वहनीयता चुनौती बनी हुई है क्योंकि स्टारलिंक टर्मिनल की कीमत $600 है, जो अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या के लिए महंगी है।
- ITU का अनुमान है कि वैश्विक डिजिटल अंतर को समाप्त करने के लिए 2030 तक $2.6–2.8 ट्रिलियन की आवश्यकता होगी।
अनियंत्रित स्पेक्ट्रम प्रतिस्पर्धा के परिणाम
- प्रौद्योगिकीय परिणाम: बढ़ते हस्तक्षेप से रिमोट सेंसिंग, GPS और जलवायु अवलोकन जैसी सेवाओं की विश्वसनीयता घटती है।
- वैज्ञानिक खगोल विज्ञान उज्ज्वल उपग्रह ट्रेल्स और रेडियो शोर से प्रभावित होता है।
- आर्थिक परिणाम: शुरुआती खिलाड़ी सैटेलाइट ब्रॉडबैंड बाजारों में एकाधिकार स्थापित कर सकते हैं। स्पेक्ट्रम की कमी देर से आने वालों के लिए तैनाती की लागत बढ़ाती है।
- भू-राजनीतिक परिणाम: स्पेक्ट्रम तक असमान पहुँच उन्नत और विकासशील देशों के बीच रणनीतिक विभाजन को गहरा करती है।
- सामाजिक परिणाम: वहनीयता सुधारों के बिना, सैटेलाइट इंटरनेट अमीर उपयोगकर्ताओं के लिए प्रीमियम अवसंरचना बन सकता है, न कि वंचित समुदायों के लिए। इससे वैश्विक डिजिटल अंतर को कम करने की इसकी क्षमता कमजोर होती है।
विश्व रेडियोसंचार सम्मेलन के अंतर्गत सुधार
- विश्व रेडियोसंचार सम्मेलन 2023 ने प्रस्ताव 8 के माध्यम से प्रमुख सुधार प्रस्तुत किए, जिनमें शामिल हैं:
- ऑपरेटरों को नियोजित और वास्तविक कक्षीय तैनाती के बीच किसी भी विचलन की रिपोर्ट करना अनिवार्य किया गया ताकि फाइलिंग के दुरुपयोग को रोका जा सके।
- मेगाकॉन्स्टेलेशन के लिए चरणबद्ध तैनाती मानक तय किए गए:
- 2 वर्षों में 10%
- 5 वर्षों में 50%
- 7 वर्षों में पूर्ण तैनाती ताकि स्पेक्ट्रम और कक्षीय संसाधनों का समय पर और जवाबदेही के साथ उपयोग सुनिश्चित हो सके।
आगे की राह
- स्पेक्ट्रम–कक्षा प्रतिस्पर्धा को नवाचार और स्थिरता के बीच संतुलन बनाने के लिए अद्यतन वैश्विक शासन की आवश्यकता है। इसमें पारदर्शी समन्वय, सुदृढ़ मलबा शमन और न्यायसंगत पहुँच सुनिश्चित करना शामिल है।
- भारत जैसे उभरते अंतरिक्षीय देशों के लिए इन मानदंडों को आकार देने में सक्रिय भागीदारी महत्वपूर्ण है ताकि बाह्य अंतरिक्ष स्थायी और समावेशी बना रहे।
| अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) – ITU संयुक्त राष्ट्र की एक विशेषीकृत एजेंसी है, जिसके 194 सदस्य राष्ट्र हैं। – इसकी स्थापना 1865 में संचार नेटवर्क में अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी को सुगम बनाने के लिए की गई थी। – यह सैटेलाइट स्पेक्ट्रम और कक्षीय स्लॉट्स का एकमात्र वैश्विक समन्वयक है। – भारत 1869 से ITU का सदस्य है। कार्य: – यह वैश्विक रेडियो स्पेक्ट्रम और सैटेलाइट कक्षाओं का आवंटन करता है। – यह तकनीकी मानक विकसित करता है ताकि नेटवर्क और -तकनीकें सहजता से जुड़ सकें। – यह वंचित समुदायों के लिए ICTs तक पहुँच में सुधार करने का प्रयास करता है। |
Source: TH