पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- नीति आयोग ने “भारत में कॉरपोरेट बॉन्ड बाज़ार को सुदृढ़ करना” शीर्षक वाली रिपोर्ट जारी की है।
परिचय
- यह रिपोर्ट भारत के कॉरपोरेट बॉन्ड बाज़ार की वर्तमान स्थिति, चुनौतियों और भविष्य की रूपरेखा की समीक्षा करती है—जो निगमों, अवसंरचना, MSMEs एवं उभरते क्षेत्रों के लिए एक प्रमुख वित्तपोषण मार्ग है।
- एक गहरा और तरल कॉरपोरेट बॉन्ड बाज़ार दीर्घकालिक पूंजी एकत्रित करने में सहायता करता है, बैंकों पर अत्यधिक निर्भरता को कम करता है तथा आर्थिक विकास को समर्थन देता है।
- यह अवसंरचना, जलवायु कार्यों, MSMEs और विकसित भारत 2047 लक्ष्यों से जुड़े उभरते क्षेत्रों के वित्तपोषण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कॉरपोरेट बॉन्ड क्या है?
- कॉरपोरेट बॉन्ड निजी और सार्वजनिक निगमों द्वारा जारी किए गए ऋण प्रतिभूतियाँ (Debt Securities) होते हैं।
- कंपनियाँ कॉरपोरेट बॉन्ड जारी करती हैं ताकि वे विभिन्न उद्देश्यों के लिए धन एकत्रित कर सकें, जैसे नया संयंत्र बनाना, उपकरण खरीदना या व्यवसाय का विस्तार करना।
- जब कोई व्यक्ति कॉरपोरेट बॉन्ड खरीदता है, तो वह “जारीकर्ता” अर्थात कंपनी को धन उधार देता है।
- इसके बदले कंपनी यह वादा करती है कि वह निर्दिष्ट परिपक्वता तिथि पर मूलधन (Principal) वापस करेगी। उस तिथि तक कंपनी सामान्यतः एक निश्चित ब्याज दर का भुगतान करती है, सामान्यतः अर्धवार्षिक।
- कॉरपोरेट बॉन्ड कंपनी की ओर से एक IOU (I owe you) होता है, लेकिन यह कंपनी में स्वामित्व अधिकार नहीं देता, जैसा कि इक्विटी शेयर खरीदने पर मिलता है।
रिपोर्ट की प्रमुख विशेषताएँ
- विकास और वर्तमान स्थिति: बकाया कॉरपोरेट बॉन्ड ₹17.5 ट्रिलियन (FY2015) से बढ़कर ₹53.6 ट्रिलियन (FY2025) हो गए, ~12% वार्षिक वृद्धि दर के साथ।
- बाज़ार का आकार GDP का 15–16% है, जो सुधरा है लेकिन दक्षिण कोरिया, मलेशिया और चीन जैसे देशों से अभी भी कम है।
- कॉरपोरेट बॉन्ड फंडरेज़िंग अब बैंक ऋण स्तरों के करीब पहुँच रही है, जो बाज़ार-आधारित वित्तपोषण की ओर क्रमिक बदलाव का संकेत है।

- रणनीतिक महत्व: एक गहरा कॉरपोरेट बॉन्ड बाज़ार 2047 तक $30 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के लिए अनिवार्य है।
- यह दीर्घकालिक, कम लागत वाली पूंजी एकत्रित करने में सक्षम बनाता है, जो अवसंरचना, उद्योग, जलवायु कार्यों और उभरते क्षेत्रों को समर्थन देता है।
- यह बैंकों को पूरक करता है, प्रणालीगत जोखिमों को कम करता है, मौद्रिक प्रसारण को सुदृढ़ करता है और एक लचीली वित्तीय संरचना को समर्थन देता है।
- रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत का कॉरपोरेट बॉन्ड बाज़ार 2030 तक ₹100–120 ट्रिलियन (लगभग $1.3–1.4 ट्रिलियन) से अधिक हो सकता है, बशर्ते सुदृढ़ संरचनात्मक सुधार और संस्थागत क्षमता निर्माण किए जाएँ।
- इक्विटी बनाम बॉन्ड बाज़ार असंतुलन: भारत का इक्विटी बाज़ार USD 4.8 ट्रिलियन मूल्य का है जबकि बॉन्ड बाज़ार USD 642 बिलियन का है।
- इक्विटी बाज़ार बॉन्ड बाज़ार से लगभग 7 गुना बड़ा है, जो महत्वपूर्ण असंतुलन को दर्शाता है।
- संरचनात्मक सीमाएँ:
- जारीकर्ता एकाग्रता: शीर्ष-रेटेड निगमों का प्रभुत्व; MSMEs की सीमित भागीदारी।
- निवेशक एकाग्रता: संस्थागत निवेशकों पर भारी निर्भरता; खुदरा और FPI भागीदारी कम।
- बाज़ार संरचना: निजी प्लेसमेंट का प्रभुत्व; द्वितीयक बाज़ार तरलता कमजोर।
- नियामक बाधाएँ: ओवरलैपिंग नियामक, उच्च अनुपालन लागत, प्रक्रियात्मक विलंब।
- निवेश प्रतिबंध: बीमा और पेंशन फंड्स को कम-रेटेड प्रतिभूतियों में निवेश की सीमा।
- कमजोर सक्षम कारक: अक्षम ऋण वसूली, कर असमानताएँ, उच्च लेनदेन लागत।
- सुदृढ़ बॉन्ड बाज़ार के आर्थिक लाभ:
- संस्थागत और घरेलू बचत को उत्पादक निवेश में चैनल करता है।
- जोखिम प्रबंधन उपकरणों के विकास को समर्थन देता है।
- अवसंरचना, हरित परिवर्तन, MSMEs और नवाचार-आधारित क्षेत्रों के लिए स्थिर वित्तपोषण प्रदान करता है।
- वैश्विक अनुभव और सीख:
- अमेरिका, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे देशों ने सफलता पाई है:
- सुसंगत और एकीकृत विनियमन;
- सुदृढ़ बाज़ार अवसंरचना;
- सक्रिय मार्केट-मेकिंग और गहरे द्वितीयक बाज़ार;
- सुव्यवस्थित प्रकटीकरण और क्रेडिट संवर्द्धन तंत्र।
- ये विशेषताएँ तरलता, निवेशक विविधता और वित्तपोषण गहराई को बढ़ाती हैं।
भारत में किए गए सुधार
- SEBI: इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग के लिए RFQ प्लेटफ़ॉर्म शुरू किया, ऑनलाइन बॉन्ड प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से खुदरा पहुँच को सुगम बनाया, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और डिबेंचर ट्रस्टीज़ के लिए शासन मानकों को सुदृढ़ किया तथा निर्गम मानदंडों को सरल बनाया।
- RBI: निपटान संरचना को बेहतर बनाया, त्रि-पक्षीय रेपो और क्रेडिट डिफ़ॉल्ट स्वैप्स शुरू किए, तथा रेपो व क्लियरिंग तंत्र के विकास का समर्थन किया।
- सरकार: अवसंरचना निवेश ट्रस्ट (InvITs), रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (REITs) और ग्रीन फाइनेंस पहलों को बढ़ावा दिया ताकि दीर्घकालिक निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके तथा पूंजी बाज़ार को गहराई दी जा सके।
- सामूहिक रूप से, इन सुधारों ने एक अधिक पारदर्शी, सुलभ और प्रौद्योगिकी-चालित बॉन्ड बाज़ार पारिस्थितिकी तंत्र की सुदृढ़ नींव रखी है।
सुधार रोडमैप (चरणबद्ध दृष्टिकोण)
- अल्पकालिक प्राथमिकताएँ:
- विनियमों को सुव्यवस्थित करना और अंतर-नियामक समन्वय में सुधार करना।
- बाज़ार अवसंरचना और डिजिटल पहुँच को सुदृढ़ करना।
- व्यापक जारीकर्ता भागीदारी के लिए निर्गम को सरल बनाना।
- त्वरित उपलब्धियों और प्रारंभिक तरलता सुधारों के माध्यम से विश्वास बनाना।
- मध्यम से दीर्घकालिक प्राथमिकताएँ:
- एकीकृत नियामक संरचना और सुदृढ़ समाधान तंत्र।
- सक्रिय मार्केट-मेकिंग और रेपो सुविधाओं के साथ गहरे द्वितीयक बाज़ार।
- व्यापक जारीकर्ता आधार (मध्यम आकार की कंपनियाँ, नए परिसंपत्ति वर्ग)।
- उत्पाद नवाचार: लंबी अवधि वाले बॉन्ड, क्रेडिट-संवर्द्धित उपकरण, स्थिरता-लिंक्ड बॉन्ड।
- निवेशक आधार का विस्तार (बीमा, पेंशन, खुदरा, FPIs)।
- डिजिटल नवाचारों का लाभ उठाना (टोकनाइज्ड बॉन्ड, एकीकृत डेटा प्लेटफ़ॉर्म)।
Source: PIB
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