पाठ्यक्रम: GS2/सरकारी नीति और हस्तक्षेप; GS3/पर्यावरण
संदर्भ
- हाल ही में, केंद्र सरकार ने प्रधान मंत्री जैव ईंधन–वातावरण अनुकूल फसल अवशेष निवारण (JI-VAN) योजना के दायरे और समयसीमा का विस्तार किया है, जिससे सतत विकास एवं ऊर्जा सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पुनः पुष्ट किया है।
पीएम जी-वन एवं इसके 2024 उन्नयन
- इसे 2019 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoP&NG) के अंतर्गत शुरू किया गया था।
- इसका क्रियान्वयन सेंटर फॉर हाई टेक्नोलॉजी (CHT) द्वारा किया जाता है, जो MoP&NG के अधीन कार्यरत है।
- वित्तीय प्रावधान: ₹1,950 करोड़ (कुल आवंटन)
- ₹1,800 करोड़ – 12 वाणिज्यिक स्तर की परियोजनाओं के लिए
- ₹150 करोड़ – 10 प्रदर्शन स्तर की परियोजनाओं के लिए
- सहायता तंत्र: परियोजनाओं को वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य बनाने हेतु वायबिलिटी गैप फंडिंग और पूंजी सहायता प्रदान की जाती है।
योजना के उद्देश्य
- लिग्नोसेलुलोसिक बायोमास और अन्य नवीकरणीय फीडस्टॉक्स का उपयोग कर वाणिज्यिक एवं प्रदर्शन स्तर की उन्नत जैव ईंधन परियोजनाओं की स्थापना।
- किसानों को कृषि अवशेषों के लिए लाभकारी आय प्रदान करना, जो अन्यथा अनुपयोगी हो जाते।
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित करना।
- पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करना तथा नगरपालिका ठोस अपशिष्ट से होने वाली मृदा एवं जल प्रदूषण को घटाना।
- स्वच्छ भारत मिशन में योगदान देना और एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम को समर्थन देना।
- भारत की कच्चे तेल आयात पर निर्भरता कम करना और राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को समर्थन देना।
पीएम जी-वन के अंतर्गत प्रमुख जैव ईंधन परियोजनाएँ
- द्वितीय पीढ़ी (2G) बायो-एथेनॉल परियोजनाएँ:
- इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) ने हरियाणा के पानीपत में धान की पराली आधारित फीडस्टॉक बायो-एथेनॉल परियोजना स्थापित की है।
- असम के नुमालीगढ़ में नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड ने असम बायो-एथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड (ABEPL) के माध्यम से 2G बांस आधारित बायोरिफाइनरी स्थापित की है।
- तृतीय पीढ़ी (3G) एथेनॉल परियोजना:
- IOCL ने पानीपत में एक 3G एथेनॉल संयंत्र चालू किया है, जो रिफाइनरी ऑफ-गैस को फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करता है — यह कार्बन उपयोग में नवाचार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
जैव ईंधन विस्तार हेतु नीति ढाँचा
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति (संशोधित 2022) विविध फीडस्टॉक्स के उपयोग को बढ़ावा देती है, जैसे:
- क्षतिग्रस्त और अधिशेष खाद्यान्न (टूटा चावल, मक्का, कसावा, सड़े आलू)।
- कृषि अवशेष (धान की पराली, मक्का के भुट्टे, कपास की डंठल, आरा चूरा, गन्ने का बगास)।
- गन्ने का रस और शीरा, जिसे राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति (NBCC) द्वारा खाद्य सुरक्षा संघर्ष से बचने हेतु नियंत्रित किया जाता है।
- फीडस्टॉक उपयोग को प्रतिवर्ष उपलब्धता, लागत, बाजार मांग और स्थिरता के आधार पर समायोजित किया जाता है।
चीनी और मक्का क्षेत्र पर प्रभाव
- चीनी क्षेत्र:
- चीनी सत्र (SS) 2024–25 में उत्पादन 340 LMT तक पहुँचा, जिसमें से 34 LMT एथेनॉल उत्पादन हेतु मोड़ा गया।
- घरेलू चीनी मांग 281 LMT रही, और एथेनॉल उत्पादन ने चीनी भंडार को स्थिर करने तथा गन्ना किसानों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने में सहायता की।
- मक्का उत्पादन वृद्धि:
- मक्का उत्पादन लगभग 30% बढ़ा — 2021–22 में 337.30 LMT से बढ़कर 2024–25 में 443 LMT हो गया।
- यह वृद्धि सरकार द्वारा धान और गन्ने जैसी जल-गहन फसलों से फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने से संभव हुई।
एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम की उपलब्धियाँ
- एथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ESY) 2014–15 से अक्टूबर 2025 तक:
- किसानों को ₹1,36,300 करोड़ से अधिक का भुगतान।
- ₹1,55,000 करोड़ से अधिक का विदेशी मुद्रा बचत।
- लगभग 790 लाख मीट्रिक टन CO₂ की शुद्ध कमी।
- 260 LMT से अधिक कच्चे तेल आयात का प्रतिस्थापन।
निष्कर्ष
- प्रधान मंत्री जी-वन योजना भारत की स्वच्छ ऊर्जा और चक्रीय अर्थव्यवस्था दृष्टि का आधारस्तंभ है।
- यह किसानों की आजीविका, अपशिष्ट प्रबंधन एवं ऊर्जा सुरक्षा को जोड़कर एक सतत और आत्मनिर्भर जैव ईंधन पारिस्थितिकी तंत्र का मार्ग प्रशस्त करती है।
- यह पहल सहायक नीतियों और तकनीकी नवाचारों के साथ भारत की निम्न-कार्बन, ऊर्जा-सुरक्षित भविष्य की यात्रा को सुदृढ़ करती है।
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संक्षिप्त समाचार 04-12-2025