फेक न्यूज़’ की परिभाषा तय करें, कार्रवाई हेतु दंड प्रावधानों में संशोधन करें: संसदीय समिति

पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन

संदर्भ

  • संचार और आईटी पर संसदीय स्थायी समिति ने “फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने की व्यवस्था की समीक्षा” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की।

प्रमुख बिंदु

  • फेक न्यूज़ की परिभाषा: समिति ने सरकार से ‘फेक न्यूज़’ शब्द को परिभाषित करने और वर्तमान नियामक ढाँचे में उपयुक्त प्रावधान शामिल करने का आग्रह किया है ताकि गलत सूचना पर अंकुश लगाया जा सके और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा हो सके।
  • संशोधन: प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल—प्रत्येक प्रकार के मीडिया के लिए संबंधित अधिनियमों/नियमों/दिशानिर्देशों में फेक न्यूज़ प्रकाशित/प्रसारित करने पर दंडात्मक प्रावधानों में संशोधन की आवश्यकता है।
  • फैक्ट चेकिंग तंत्र: मीडिया संगठनों में तथ्य-जाँच तंत्र और आंतरिक लोकपाल की व्यवस्था से स्व-नियामक तंत्र की भूमिका सुदृढ़ होगी।
  • समिति ने सरकार से आग्रह किया कि गलत सूचना से निपटने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के बीच संतुलन बनाए रखते हुए प्रावधान शामिल किए जाएँ।

भारत की दुष्प्रचार चुनौती

  • बढ़ती इंटरनेट पहुँच: भारत 900 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को पार करने की राह पर है, जिससे उचित नियमों के अभाव में दुष्प्रचार का खतरा बढ़ जाता है।
  • विविध परिदृश्य, उच्च जोखिम: भारत की राजनीतिक, सामाजिक और भाषाई विविधता हेरफेर किए गए आख्यानों, मतदाता प्रभाव एवं सामाजिक अशांति के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है।
  • राजनीति से परे: दुष्प्रचार उपभोक्ता बहिष्कार, आर्थिक संघर्ष और अंतरराष्ट्रीय तनाव में योगदान देता है।
  • पारंपरिक मीडिया पर भरोसे में गिरावट: पारंपरिक समाचार स्रोतों पर जनता का विश्वास घट रहा है।
    • नागरिक समाचार के लिए तीव्रता से सोशल मीडिया पर निर्भर हो रहे हैं।
    • अप्रमाणित जानकारी तीव्रता से फैलती है और प्रायः उस पर भरोसा किया जाता है क्योंकि यह मित्रों या परिवार से आती है।
  • युवा वर्ग जोखिम में: भारत का युवा वर्ग तीव्रता से गलत सूचना के संपर्क में आ रहा है।
    • कई युवाओं में डिजिटल साक्षरता और मीडिया उपभोग कौशल की कमी है।

कानूनी और नियामक परिदृश्य

  • संवैधानिक सीमाएँ: अनुच्छेद 19(1)(a) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद 19(2) मानहानि, नैतिकता और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए प्रतिबंधों की अनुमति देता है।
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनु. 19(1)(a)) और उचित प्रतिबंधों (अनु. 19(2)) के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: धारा 69A सरकार को सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था संबंधी चिंताओं के लिए ऑनलाइन सामग्री को अवरुद्ध करने की शक्ति देती है।
  • मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता, 2021: सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफॉर्म और डिजिटल समाचार मीडिया को नियंत्रित करती है।
  • ओटीटी प्लेटफॉर्म द्वारा स्व-नियमन: नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम जैसे प्लेटफॉर्म डिजिटल पब्लिशर्स कंटेंट ग्रिवेन्सेस काउंसिल (DPCGC) जैसे स्व-नियामक ढाँचे का पालन करते हैं।
  • केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC): जिसे 1952 के सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के अंतर्गत स्थापित किया गया था, भारत में फिल्मों को सेंसर करने के लिए जिम्मेदार है।

भारत में डिजिटल सेंसरशिप की चुनौतियाँ

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नियमन का संतुलन: अति-नियमन रचनात्मकता को दबा सकता है, जबकि अपर्याप्त नियमन हानिकारक सामग्री फैला सकता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: सामग्री मॉडरेशन और सेंसरशिप निर्णयों में प्रायः स्पष्ट दिशानिर्देशों की कमी होती है, जिससे दुरुपयोग की आशंका बढ़ती है।
  • अधिकार क्षेत्र संबंधी मुद्दे: कई डिजिटल प्लेटफॉर्म भारत से बाहर संचालित होते हैं, जिससे प्रवर्तन कठिन हो जाता है।
  • प्रौद्योगिकीगत प्रगति: डिजिटल मीडिया का तीव्र विकास सुसंगत और निष्पक्ष नियमन को जटिल बनाता है।
  • नैतिक चिंताएँ: अश्लीलता कानूनों की व्यक्तिपरक प्रकृति मनमाने सेंसरशिप की ओर ले जा सकती है।

सरकारी पहल

  • फैक्ट चेक यूनिट: इसे 2019 में प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) के अंतर्गत स्थापित किया गया था।
    • इसका गठन सरकार से संबंधित “फर्जी, झूठी या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री” को चिन्हित करने के लिए किया गया था।
  • सहयोग पोर्टल: इसे 2024 में गृह मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया।
    • यह पोर्टल मंत्रालयों से लेकर स्थानीय पुलिस थानों तक विभिन्न स्तरों पर सरकारी एजेंसियों के लिए अवरोध आदेश अधिक कुशलता से जारी करने हेतु एक केंद्रीकृत प्रणाली के रूप में कार्य करता है।

भारत में दुष्प्रचार से निपटने के लिए अनुशंसित उपाय (ग्लोबल रिस्क्स रिपोर्ट 2025)

  • तकनीकी क्षमता और निगरानी को सुदृढ़ करना:
    • एल्गोरिद्म डेवलपर्स को अपस्किल करना ताकि एआई सिस्टम में पक्षपात और हेरफेर कम हो।
    • एआई पर्यवेक्षी बोर्ड और परिषदों की स्थापना करना ताकि जनरेटिव एआई प्रथाओं की निगरानी एवं नियमन हो सके।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म, विशेषकर एआई का उपयोग करने वाले, नियमित जोखिम आकलन अनिवार्य करें।
  • जन-जागरूकता और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना:
    • नागरिकों को दुष्प्रचार पहचानने और उसका प्रतिरोध करने में सहायता हेतु डिजिटल साक्षरता अभियान का विस्तार।
    • शैक्षिक सुधारों और जनसंपर्क के माध्यम से आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना।
  • बिग टेक प्लेटफॉर्म का नियमन:
    • फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म के सबसे बड़े बाजार के रूप में भारत की स्थिति का उपयोग कर जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • प्रेस स्वतंत्रता की रक्षा करना:
    • पत्रकारों और व्हिसलब्लोअर्स को धमकी और डिजिटल उत्पीड़न से बचाने के लिए सुदृढ़ कानून पारित करना।
  • वैश्विक और क्षेत्रीय गठबंधन बनाना:
    • दुष्प्रचार की वैश्विक प्रकृति का सामना करने हेतु सीमा-पार गठबंधन को बढ़ावा देना।
    • सहयोगियों और अंतरराष्ट्रीय निकायों के साथ सर्वोत्तम प्रथाएँ, खतरे की जानकारी और नियामक ढाँचे साझा करना।

निष्कर्ष

  • दुष्प्रचार केवल तकनीकी मुद्दा नहीं है—यह लोकतंत्र, विविधता और सत्य के लिए खतरा है। 
  • जन-जागरूकता और सुदृढ़ नीतिगत उपायों के बिना, दुष्प्रचार राजनीतिक एवं सामाजिक विभाजन को गहरा करेगा। 
  • यह प्रवृत्ति सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है और लोगों को विश्वसनीय जानकारी पहचानने में सहायता हेतु मीडिया साक्षरता, आलोचनात्मक सोच और जवाबदेही को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता को दर्शाती है।

Source: TH

 

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