भारत में राजनीतिक वित्तपोषण में वित्तीय विषमता

पाठ्यक्रम: GS2/ राजनीति और शासन

संदर्भ  

  • निरंतर चुनावी चक्रों से पूर्व, भारत के राजनीतिक वित्तपोषण ढाँचे में पारदर्शिता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं। निजी दान तक असमान पहुँच चुनावी प्रतिस्पर्धा को विकृत कर रही है।

भारत में राजनीतिक वित्तपोषण  

  • व्यक्तिगत दान : जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) 1951 की धारा 29B राजनीतिक दलों को व्यक्तियों से दान स्वीकार करने की अनुमति देती है।
    • भारत निर्वाचन आयोग के पारदर्शिता दिशानिर्देश अधिनियम के अंतर्गत ₹20,000 से अधिक के दान का प्रकटीकरण करने की आवश्यकता रखते हैं।
  • राज्य/सार्वजनिक वित्तपोषण : भारत में चुनावों का राज्य वित्तपोषण सरकार द्वारा राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करने से संबंधित है।
  • प्रत्यक्ष वित्तपोषण : दलों/उम्मीदवारों को अभियान व्ययों के लिए सीधी मौद्रिक सहायता।
  • अप्रत्यक्ष वित्तपोषण : इसमें सब्सिडी वाले मीडिया एक्सेस, कर लाभ, अभियानों के लिए मुफ्त सार्वजनिक स्थान, और उपयोगिताओं, परिवहन व सुरक्षा के लिए सहायता शामिल है।
  • कॉरपोरेट वित्तपोषण : कंपनियों अधिनियम, 2013 की धारा 182 के अंतर्गत शासित। भारत में कॉरपोरेट दान 1969 से 1985 तक प्रतिबंधित थे।
    • मुख्य शर्तें:
      • कंपनियाँ कम से कम तीन वर्ष पुरानी होनी चाहिए।
      • दान विगत तीन वित्तीय वर्षों के औसत शुद्ध लाभ का अधिकतम 7.5% तक सीमित है।
      • योगदान कंपनी के लाभ-हानि खाते में प्रकट किया जाना चाहिए।

वर्तमान वित्तपोषण ढाँचे की चुनौतियाँ

  • राजनीतिक वित्त का संकेन्द्रण: राजनीतिक वित्तपोषण कुछ प्रमुख दलों के पक्ष में अत्यधिक झुका हुआ है, जिससे संसाधनों का असमान वितरण होता है और चुनावी प्रतिस्पर्धा कमजोर होती है।
  • कमज़ोर पारदर्शिता: प्रकटीकरण आवश्यकताओं का पर्याप्त रूप से पालन नहीं होता, और दाता–दल संबंधों की प्रमुख जानकारी सार्वजनिक क्षेत्र से बाहर रहती है, जिससे नागरिकों की सार्थक जाँच सीमित होती है।
  • आंतरिक दल जवाबदेही का अभाव: अधिकांश राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र, पारदर्शी निर्णय-निर्माण या कठोर वित्तीय ऑडिटिंग के लागू मानदंडों के बिना कार्य करते हैं।
  • असीमित दल व्यय: अधिक महत्वाकांक्षी, परिष्कृत और पेशेवर अभियानों पर असीमित व्यय ने चुनावों की लागत बढ़ा दी है।

निर्वाचन ट्रस्ट योजना 

  • निर्वाचन ट्रस्ट योजना सरकार द्वारा 2013 में शुरू की गई थी।
  • निर्वाचन ट्रस्ट राजनीतिक दलों के लिए वित्तपोषण चैनलों में से एक हैं।
    • 2024 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्वाचन बांड योजना को रद्द करने के पश्चात 2024-25 में कंपनियों के लिए यह पसंदीदा दान स्रोत बन गए।
    • दोनों योजनाएँ निगमों और व्यक्तियों द्वारा राजनीतिक दलों को दान की सुविधा प्रदान करने के लिए बनाई गई थीं।
  • पात्रता :
    • कोई भी कंपनी जो कंपनियों अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत है, निर्वाचन ट्रस्ट बना सकती है।
    • भारत का कोई भी नागरिक, भारत में पंजीकृत कंपनी, या कोई फर्म, हिंदू अविभाजित परिवार या भारत में रहने वाले व्यक्तियों का संघ निर्वाचन ट्रस्ट को दान कर सकता है।
    • तीन ट्रस्ट—प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट, प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट और न्यू डेमोक्रेटिक इलेक्टोरल ट्रस्ट—ने 2024-25 में कुल योगदान का 98 प्रतिशत हिस्सा दिया।

ये ट्रस्ट कैसे कार्य करते हैं?

  • नवीनीकरण आवश्यकता: निर्वाचन ट्रस्टों को संचालन जारी रखने के लिए प्रत्येक तीन वित्तीय वर्षों में नवीनीकरण के लिए आवेदन करना होता है।
  • पात्र लाभार्थी: दान केवल उन राजनीतिक दलों को दिया जा सकता है जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के अंतर्गत पंजीकृत हैं।
  • अनिवार्य वितरण नियम: किसी वित्तीय वर्ष में प्राप्त कुल योगदान का कम से कम 95% पात्र राजनीतिक दलों को दान किया जाना चाहिए।
    • शेष 5% केवल प्रशासनिक व्ययों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  • दाता पहचान का खुलासा: निवासी भारतीय योगदानकर्ताओं के लिए PAN अनिवार्य है।
    • एनआरआई के लिए योगदान के समय पासपोर्ट नंबर आवश्यक है।
  • लेखांकन और पर्यवेक्षण: ट्रस्टों को ऑडिटेड खाते बनाए रखने चाहिए, जिनमें दाताओं, प्राप्तकर्ताओं एवं वितरण का खुलासा CBDT और भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को करना होता है।

राज्य वित्तपोषण पर सिफारिशें

  • संविधान सभा परिचर्चा(1948): चुनावों की लागत पर सबसे शुरुआती चर्चाएँ संविधान सभा में हुईं।
    • उन्होंने तर्क दिया कि चुनाव व्यय राज्य/सार्वजनिक कोष द्वारा नियंत्रित, कम खर्चीले और संगठित तरीके से वहन किया जाना चाहिए।
  • इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998): सभी दलों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने हेतु राज्य वित्तपोषण का समर्थन किया।
  • भारत विधि आयोग (1999): पूर्ण राज्य वित्तपोषण का समर्थन, बशर्ते दल अन्य धन स्वीकार न करें।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2008): अनुचित वित्तीय प्रभाव को कम करने के लिए आंशिक राज्य वित्तपोषण की सिफारिश की।

भारत में राजनीतिक वित्तपोषण में सुधार

  • एक व्यापक राजनीतिक वित्त कानून का उद्देश्य सभी दलों में समानता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना होना चाहिए।
  • निर्वाचन ट्रस्टों को दाता–दल संबंधों का सार्वजनिक रूप से प्रकटीकरण करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए, जिससे नागरिकों की सूचित निगरानी संभव हो सके।
  • राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के अंतर्गत लाया जाना चाहिए ताकि वित्तीय और संगठनात्मक पारदर्शिता बढ़ सके।

Source: IE


 

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