मैंग्रोव की कोशिकाएं पौधों को लवणीय जल में तनाव सहन करने में सहायक 

पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण

संदर्भ 

  • करंट बायोलॉजी में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने उन कोशिकीय अनुकूलनों की व्याख्या की है जो मैंग्रोव प्रजातियों को अत्यधिक लवणीय तनाव सहन करने में सक्षम बनाते हैं। यह अध्ययन भविष्य में नमक-सहिष्णु फसलों के विकास के लिए महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ 

  • मुख्य कोशिकीय लक्षण (स्टोमाटा-आधारित नहीं): मैंग्रोव प्रकाश संश्लेषण बढ़ाने के लिए छोटे या अधिक संख्या वाले स्टोमाटा पर निर्भर नहीं होते।
    • इसके बजाय, इनमें असामान्य रूप से छोटे पत्ती एपिडर्मल पेवमेंट कोशिकाएँ और मोटी कोशिका भित्तियाँ होती हैं, जो मिलकर उन्हें कम परासरणीय क्षमता को सहन करने के लिए अधिक यांत्रिक शक्ति प्रदान करती हैं।
  • नमक प्रबंधन रणनीतियाँ
    • नमक बहिष्करण : कुछ मैंग्रोव में मोमी जड़ परतें होती हैं जो जल पौधे में प्रवेश करने से पहले नमक को छान देती हैं।
    • नमक स्रवण : अन्य प्रजातियाँ नमक को अवशोषित करती हैं लेकिन इसे विशेषीकृत पत्ती ऊतकों के माध्यम से बाहर निकाल देती हैं।

मैंग्रोव

  • मैंग्रोव एक छोटा पेड़ या झाड़ी है जो तटरेखाओं के साथ उगता है और प्रायः जल के अंदर नमकीन अवसादों में जड़ें जमाता है।
  • मैंग्रोव पुष्पीय वृक्ष हैं, जो राइजोफोरेसी, एकेंथेसी, लिथ्रेसी, कोम्ब्रेतेसी, और एरेकेसी परिवारों से संबंधित हैं।
  • विशेषताएँ (Features)
    • नमकीन वातावरण: मैंग्रोव की विशेषता यह है कि वे उच्च लवणीय और कम ऑक्सीजन जैसी अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
      • जड़ें लवणीय और लवणीय-स्वच्छ जल में संपर्क में आने वाले 90% नमक को छान देती हैं।
    • कम ऑक्सीजन: किसी भी पौधे के भूमिगत ऊतक को श्वसन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। मैंग्रोव की जड़ प्रणाली वातावरण से ऑक्सीजन अवशोषित करती है।
    • स्वच्छ जल का भंडारण: रेगिस्तानी पौधों की तरह मैंग्रोव मोटी रसीली पत्तियों में मीठा पानी संग्रहित करते हैं।
    • जीवज (Viviparous): इनके बीज माता वृक्ष से जुड़े रहते हुए ही अंकुरित हो जाते हैं। अंकुरित होने के बाद बीज पौधा प्रोपैग्यूल में विकसित होता है।
      • पश्चिम बंगाल के सुंदरबन विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव क्षेत्र है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
      • भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन भितरकनिका (रामसर स्थल), ओडिशा में है, जो ब्राह्मणी और बैतरणी नदियों के दो डेल्टा द्वारा निर्मित है।

मैंग्रोव का महत्व 

  • प्राकृतिक तटीय रक्षा: 50 वर्ष प्राचीन और 100–1,000 मीटर चौड़ा परिपक्व मैंग्रोव बेल्ट तरंग ऊर्जा को 7–55% तक कम कर सकता है, जिससे चक्रवात, तूफानी लहरें एवं तटीय बाढ़ का प्रभाव गैर-मैंग्रोव तटरेखाओं की तुलना में काफी कम हो जाता है।
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट: भारत के मैंग्रोव लगभग 4,011 प्रजातियों का समर्थन करते हैं, जिनमें 920 पौधों की प्रजातियाँ और 3,091 पशु प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • जलवायु परिवर्तन शमन (ब्लू कार्बन): मैंग्रोव प्रति एकड़ उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में 7.5–10 गुना अधिक कार्बन संग्रहित करते हैं।
  • जीविका और आर्थिक सुरक्षा: मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र मत्स्य पालन, जलीय कृषि, इको-पर्यटन और पुनर्स्थापन गतिविधियों के माध्यम से विश्व स्तर पर लाखों आजीविकाओं का समर्थन करता है, जिससे संवेदनशील तटीय समुदायों को आय सुरक्षा मिलती है।
  • लागत-प्रभावी प्रकृति-आधारित समाधान: आपदा जोखिम न्यूनीकरण, जैव विविधता संरक्षण और कार्बन पृथक्करण को मिलाकर मैंग्रोव इंजीनियर तटीय रक्षा की तुलना में कम लागत एवं उच्च प्रभाव वाला समाधान प्रदान करते हैं।

Source: PIB


 

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