दहेज प्रथा का उन्मूलन एक आवश्यक संवैधानिक, सामाजिक आवश्यकता है: सर्वोच्च न्यायालय

पाठ्यक्रम: GS1/ सामाजिक मुद्दा

समाचार में

  • सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज-विरोधी कानूनों के प्रवर्तन को सुदृढ़ करने हेतु प्रणालीगत निर्देश जारी किए।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि दहेज एक लंबे समय से चली आ रही सामाजिक बुराई है जो सभी समुदायों में व्याप्त है और इसके लिए केवल दंडात्मक प्रावधान ही नहीं बल्कि संस्थागत जवाबदेही भी आवश्यक है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश 

  • न्यायिक निगरानी: उच्च न्यायालयों को आईपीसी की धारा 304-बी (दहेज मृत्यु) और 498-ए (क्रूरता) के अंतर्गत लंबित मामलों की शीघ्र निपटान हेतु निगरानी करनी होगी, तथा अनुपालन समीक्षा के लिए निर्णय का प्रसार करना होगा।
  • प्रशासनिक प्रवर्तन: राज्यों को दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 9 के अंतर्गत दहेज निषेध अधिकारी (DPOs) नियुक्त करने और उन्हें पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने होंगे, साथ ही उनके संपर्क विवरण व्यापक रूप से प्रसारित करने होंगे।
  • क्षमता निर्माण एवं संवेदनशीलता: पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को समय-समय पर मामलों की संवेदनशीलता पर प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि वास्तविक दावों और तुच्छ मामलों में भेद किया जा सके। जिला प्रशासन और विधिक सेवा प्राधिकरणों को बुनियादी स्तर पर जन-जागरूकता अभियान चलाने होंगे।

भारत में दहेज मामले 

  • एनसीआरबी की “क्राइम इन इंडिया 2023” रिपोर्ट के अनुसार दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अंतर्गत मामलों में 14% वृद्धि दर्ज की गई है — 2022 में 13,479 से बढ़कर 2023 में 15,489 मामले हुए, साथ ही देशभर में 6,156 दहेज मृत्यु हुईं।
  • उत्तर प्रदेश 7,151 मामलों और 2,122 मृत्युओं के साथ शीर्ष पर रहा, इसके बाद बिहार, कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश का स्थान रहा।
  • 83,000+ लंबित दहेज-संबंधी मामलों में दोषसिद्धि दर 11-17% के बीच रही, जबकि 833 हत्याएँ स्पष्ट रूप से दहेज प्रेरित थीं; सामाजिक कलंक और पारिवारिक दबाव के कारण कम रिपोर्टिंग बनी हुई है।


संबंधित कानून और संवैधानिक आधार 

  • दहेज दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अंतर्गत प्रतिबंधित है, जो दहेज देने, लेने और माँगने को अपराध घोषित करता है तथा दहेज निषेध अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
  • वर्तमान कानूनी ढाँचा इस व्यवस्था को धारा 498-ए (बीएनएस की धारा 85 और 86) के माध्यम से सुदृढ़ करता है, जो विवाहित महिलाओं के विरुद्ध क्रूरता को संबोधित करता है, और धारा 304-बी (बीएनएस की धारा 80) के माध्यम से, जो विवाह के सात वर्षों के अंदर होने वाली दहेज मृत्यु से संबंधित है।
  • संवैधानिक रूप से, दहेज के विरुद्ध संघर्ष को अनुच्छेद 14 और 15 से वैधता मिलती है, जो समानता की गारंटी देते हैं तथा भेदभाव को निषिद्ध करते हैं; अनुच्छेद 21 से, जो गरिमा के साथ जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करता है; और अनुच्छेद 51ए(ई) से, जो नागरिकों पर महिलाओं की गरिमा के प्रतिकूल प्रथाओं का परित्याग करने का मौलिक कर्तव्य डालता है।

Source: BS





 

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