पाठ्यक्रम: GS2/शासन; GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025 को स्वीकृति दी।
परिचय
- यह विधेयक भारत के बीमा ढांचे को पुनर्गठित करने का प्रयास करता है, जिसमें बीमा अधिनियम, 1938, भारतीय जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956, और भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 में परिवर्तन प्रस्तावित हैं।
- उद्देश्य: आधुनिकीकरण, व्यापक कवरेज और सुदृढ़ नियामक निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ
- 100% एफडीआई: संशोधन भारतीय बीमा कंपनियों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की सीमा 74% से बढ़ाकर 100% करेगा।
- इससे स्थिर और सतत निवेश आकर्षित करने में सहायता मिलेगी और ‘2047 तक सबके लिए बीमा’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा।
- विदेशी पुनर्बीमाकर्ता: विदेशी पुनर्बीमाकर्ताओं के लिए नेट ओन्ड फंड्स (जिसमें इक्विटी पूंजी, मुक्त भंडार, शेयर प्रीमियम खाते का शेष और अधिशेष दर्शाने वाले पूंजी भंडार शामिल हैं) की आवश्यकता ₹5,000 करोड़ से घटाकर ₹1,000 करोड़ करने का प्रस्ताव है।
- इसका उद्देश्य अधिक पुनर्बीमाकर्ताओं के प्रवेश को आसान बनाना और देश में पुनर्बीमा क्षमता का विस्तार करना है।
- यह छूट प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए है, जो वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र की भारतीय पुनर्बीमा निगम (GIC Re) द्वारा प्रभुत्व में है।
- एलआईसी को अधिक अधिकार: भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) को अधिक परिचालन स्वतंत्रता दी जा रही है।
- इसे बिना पूर्व सरकारी अनुमोदन के नए क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित करने का अधिकार मिलेगा, जिससे तीव्र विस्तार, बेहतर प्रशासनिक दक्षता और क्षेत्रीय निगरानी संभव होगी।
- IRDAI को अधिक अधिकार: भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) को प्रवर्तन शक्तियों में वृद्धि दी जा रही है, जिसमें बीमाकर्ताओं या मध्यस्थों द्वारा अर्जित अवैध लाभ को वापस लेने का अधिकार शामिल है।
- इससे IRDAI की दंडात्मक क्षमता SEBI के बराबर हो जाएगी, जिसके पास पहले से ही उल्लंघनकर्ताओं से अवैध लाभ वसूलने की शक्ति है।
- वन-टाइम पंजीकरण प्रणाली: विधेयक बीमा मध्यस्थों के लिए एक बार पंजीकरण प्रणाली का प्रस्ताव करता है, जिससे बार-बार अनुमोदन की आवश्यकता समाप्त होगी और अनुपालन सरल होगा।
- व्यवसाय करने में आसानी: बीमा कंपनियों में चुकता इक्विटी पूंजी के हस्तांतरण के लिए IRDAI की मंजूरी की आवश्यकता की सीमा 1% से बढ़ाकर 5% की जाएगी।
- इससे शेयर हस्तांतरण सुगम होगा और नियामक बाधाएँ कम होंगी।
- दंड: विधेयक दंड लगाने के लिए स्पष्ट मानदंड प्रस्तुत करता है, जिससे प्रवर्तन अधिक तार्किक, पारदर्शी और सभी मामलों में सुसंगत होगा।
बीमा संशोधन विधेयक में प्रमुख चूक
- संयुक्त लाइसेंस का अभाव: विधेयक संयुक्त लाइसेंस की अनुमति नहीं देता, जिसका अर्थ है कि बीमाकर्ताओं को केवल जीवन बीमा या केवल सामान्य बीमा जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में ही कार्य करना होगा।
- इससे दशकों पुरानी संरचना बनी रहती है और उपभोक्ताओं की व्यापक और सुविधाजनक कवरेज की मांग पूरी नहीं होती।
- न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं में कोई ढील नहीं: विधेयक नए प्रवेशकों के लिए उच्च सीमा बनाए रखता है—बीमाकर्ताओं के लिए ₹100 करोड़ और पुनर्बीमाकर्ताओं के लिए ₹200 करोड़।
- ये पूंजी मानक छोटे, क्षेत्रीय और विशेष बीमाकर्ताओं के प्रवेश को हतोत्साहित करते हैं।
- कई पूर्व सुधार प्रस्ताव हटाए गए: पूर्व मसौदों में शामिल प्रावधान—जैसे बीमाकर्ताओं को अन्य वित्तीय उत्पाद वितरित करने की अनुमति, निवेश मानदंडों में अधिक लचीलापन, और एजेंटों को कई बीमाकर्ताओं की नीतियाँ बेचने की अनुमति—अनुपस्थित हैं।
- इससे नए राजस्व स्रोत सीमित होते हैं, उपभोक्ता विकल्प घटते हैं और बीमा वितरण में दक्षता कम होती है।
- कैप्टिव बीमा कंपनियों पर चुप्पी: विधेयक बड़े निगमों को कैप्टिव बीमाकर्ता स्थापित करने की अनुमति देने के लंबे समय से लंबित प्रस्ताव को संबोधित नहीं करता।
- इससे भारत का जोखिम-प्रबंधन ढांचा अधूरा रहता है और निगमों को बाहरी या विदेशी संरचनाओं पर निर्भर रहना पड़ता है, बजाय घरेलू विनियमित कैप्टिव बीमा समाधानों के।
विधेयक का महत्व
- 100% एफडीआई सीमा एक बड़ा सुधार: 100% एफडीआई की अनुमति बीमा क्षेत्र में पर्याप्त विदेशी पूंजी आकर्षित करने की संभावना है।
- वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और तकनीक तक पहुँच: पूर्ण विदेशी स्वामित्व भारतीय बीमाकर्ताओं को उन्नत अंडरराइटिंग मॉडल, डिजिटल क्लेम प्लेटफ़ॉर्म और परिष्कृत जोखिम-मूल्यांकन उपकरण अपनाने में सक्षम बनाएगा।
- नवाचार और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा: विदेशी भागीदारी में वृद्धि से प्रतिस्पर्धा तीव्र होगी, उत्पाद नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा और अधिक ग्राहक-केंद्रित एवं तकनीक-आधारित बीमा समाधान विकसित होंगे।
Source: IE
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संक्षिप्त समाचार 13-12-2025