पाठ्यक्रम: GS1/ समाज
संदर्भ
- अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस (IDPD) प्रतिवर्ष 3 दिसंबर को मनाया जाता है ताकि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा दिया जा सके।
परिचय
- इतिहास: IDPD सर्वप्रथम 1992 में मनाया गया था, जब इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 47/3 के माध्यम से घोषित किया गया।
- 2006 में, दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर अभिसमय (CRPD) को अपनाया गया ताकि दिव्यांगजन के लिए समान अवसर सुनिश्चित किए जा सकें और 2030 सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में सहयोग किया जा सके।
- विषय 2025: “सामाजिक प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए दिव्यांग-समावेशी समाजों को प्रोत्साहित करना।”
भारत में दिव्यांगता परिदृश्य
- “दिव्यांग व्यक्ति” वह है जिसके पास दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी अक्षमता है, जो बाधाओं के साथ अंतःक्रिया में समाज में दूसरों के समान पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा डालती है। (दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुसार)।
- जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांगजन हैं, जो कुल जनसंख्या का 2.21 प्रतिशत हैं।
| संवैधानिक प्रावधान – अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित करता है, जिसमें गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है। – अनुच्छेद 41 (नीति निदेशक तत्व): बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी और दिव्यांगता की स्थिति में काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार। – सातवीं अनुसूची: “दिव्यांग और अशक्त व्यक्तियों की राहत” विषय राज्य सूची में शामिल है, जिससे राज्य सरकारों को इन मामलों पर अधिकार मिलता है। |
भारत का कानूनी और नीतिगत ढांचा
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: 1995 के अधिनियम को प्रतिस्थापित करते हुए 2016 में लागू किया गया।
- यह 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को मान्यता देता है और शिक्षा व रोजगार में आरक्षण का प्रावधान करता है।
- भारत, UNCRPD का हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, एक सुलभ और समावेशी समाज बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
- राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999: ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के कल्याण हेतु राष्ट्रीय निकाय की स्थापना करता है।
- पुनर्वास परिषद अधिनियम, 1992: RCI को 1986 में एक पंजीकृत संस्था के रूप में स्थापित किया गया और 1993 में संसद के अधिनियम के अंतर्गत वैधानिक निकाय बना।
सरकारी पहल और योजनाएँ
- सुगम्य भारत अभियान : 2015 में शुरू किया गया, यह दिव्यांगजन द्वारा सामना की जाने वाली दीर्घकालिक बाधाओं को दूर करने पर केंद्रित है।
- यह तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देता है — निर्मित अवसंरचना, परिवहन प्रणाली और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT)।
- दिव्यांगजन कार्ड (EPICS): रेलवे पहचान पत्र जो दिव्यांगजन को ट्रेन यात्रा में रियायतें प्रदान करता है।
- दिव्यांगजन हेतु यूनिक आईडी परियोजना (UDID): राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने और प्रत्येक दिव्यांगजन को यूनिक आईडी कार्ड जारी करने के लिए लागू।
- PM-DAKSH DEPwD: दिव्यांगजन, प्रशिक्षण संस्थान, नियोक्ता और जॉब एग्रीगेटर्स को जोड़ने वाला डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म।
- भारतीय सांकेतिक भाषा (ISL) का संवर्धन: ISLRTC, 2015 में स्थापित, ISL को बढ़ावा देने का प्रमुख संस्थान है।
- 2024 में, सरकार ने PM e-vidya चैनल 31 लॉन्च किया, जो विशेष रूप से श्रवण-बाधित छात्रों, विशेष शिक्षकों और दुभाषियों के लिए ISL प्रशिक्षण हेतु समर्पित है।
चिंताएँ
- कानूनी ढांचे के बावजूद, कई दिव्यांगजन को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार तक सीमित पहुँच है।
- सामाजिक कलंक और भेदभाव सामाजिक समावेशन एवं अवसरों में बाधा डालते हैं।
- नीतियों और योजनाओं का कार्यान्वयन क्षेत्रों में असमान रहता है, जिससे सेवा वितरण में अंतराल उत्पन्न होते हैं।
- दिव्यांगजन और उनके परिवारों में अधिकारों और उपलब्ध सहायता प्रणालियों के प्रति जागरूकता कम है।
निष्कर्ष
- भारत में दिव्यांगजन मामलों का विकास उनके अधिकारों और क्षमता की बढ़ती मान्यता को दर्शाता है।
- समर्पित पहल और प्लेटफ़ॉर्म व्यक्तियों को सशक्त बनाते हैं, समावेशिता को बढ़ावा देते हैं और आर्थिक अवसर सृजित करते हैं, जिससे ऐसा समाज बनता है जहाँ हर कोई गरिमा के साथ जीवन यापन कर सके।
Source: PIB
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संक्षिप्त समाचार 02-12-2025