संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

समाचार में 

  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मुख्य न्यायाधीश सम्मेलन में वैश्विक संघर्षों और मानवीय संकटों का प्रभावी समाधान करने हेतु संयुक्त राष्ट्र (UN) एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।

सुधार की आवश्यकता 

  • पुरानी शक्ति संरचनाएँ : संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) अब भी 1945 की शक्ति वितरण व्यवस्था को दर्शाती है:
    • पाँच स्थायी सदस्य (P5) जिनके पास वीटो शक्ति है (वीटो ने बार-बार यूक्रेन युद्ध, इज़राइल–फिलिस्तीन संघर्ष, सीरियाई मानवीय संकट और म्यांमार संकट पर UNSC की कार्रवाई को रोक दिया है)।
    • प्रमुख विकासशील देशों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं।
    • अफ्रीका और लैटिन अमेरिका स्थायी सीटों में पूरी तरह से अप्रतिनिधित्वित हैं।
  • नए खतरों का उदय : संयुक्त राष्ट्र को आधुनिक चुनौतियों जैसे साइबर युद्ध, एआई हथियारकरण, वैश्विक आतंकवाद, ऊर्जा आपूर्ति व्यवधान, जलवायु-जनित विस्थापन और महामारी-स्तरीय स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिए नहीं बनाया गया था। इन खतरों के लिए अद्यतन बहुपक्षीय नियम, मानदंड और संस्थागत क्षमताएँ आवश्यक हैं।
  • बहुपक्षीय संस्थाओं की घटती विश्वसनीयता : WHO, WTO, IMF और UNSC जैसी संस्थाओं पर पक्षपात, राजनीतिक हस्तक्षेप, अक्षम प्रतिक्रियाएँ, वित्तीय कमी एवं धीमी निर्णय-प्रक्रिया के आरोप लगते हैं। इससे वैश्विक नियम-आधारित व्यवस्था की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचता है और शक्तिशाली देशों द्वारा एकतरफा कदम उठाने को प्रोत्साहन मिलता है।
  • वैश्विक दक्षिण का हाशियाकरण (Marginalization of the Global South): विकासशील देशों का तर्क है कि उनकी प्राथमिक आवश्यकताएँ—विकास वित्त, जलवायु न्याय, ऋण राहत और समान तकनीकी पहुँच—वर्तमान वैश्विक शासन में उपेक्षित हैं।

भारत की स्थिति 

  • UNSC का विस्तार : भारत G4 देशों (ब्राज़ील, जर्मनी, भारत और जापान) के प्रस्ताव का समर्थन करता है, जिसमें स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाकर प्रमुख विकासशील देशों को शामिल करने और आज कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों को बेहतर प्रतिनिधित्व देने की बात है। साथ ही वीटो शक्ति के दुरुपयोग को सीमित करने की भी माँग है।
  • वैश्विक दक्षिण का समर्थन: G20 अध्यक्षता, ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन, IBSA और BRICS+ जैसे मंचों में नेतृत्व के माध्यम से भारत एक समावेशी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की दिशा में प्रयासरत है।
  • सुधारित बहुपक्षवाद : भारत पूर्वानुमेय विकास वित्त, न्यायसंगत व्यापार प्रोटोकॉल, जलवायु समानता और तकनीकी साझाकरण को एक सुधारे हुए तंत्र के स्तंभ मानता है।

आगे की राह

  • नए संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की माँग वर्तमान प्रणाली को त्यागने की नहीं, बल्कि बहुपक्षवाद को 21वीं सदी की चुनौतियों के अनुरूप पुनर्जीवित करने की है।
  • साइबर, एआई, अंतरिक्ष, महामारी और जलवायु-जनित प्रवासन जैसे उभरते क्षेत्रों को प्रबंधित करने के लिए ढाँचे विकसित करना।
  • पारदर्शी शासन तंत्र के साथ बहुपक्षीय संस्थाओं को सशक्त बनाना।
  • अफ्रीकी संघ, आसियान, यूरोपीय संघ, IORA और क्वाड जैसी क्षेत्रीय संगठनों की भूमिका को बढ़ाना।

Source: TH

 

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