पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- भारत सरकार ने 21 नवंबर 2025 से चार श्रम संहिताओं को लागू करने की घोषणा की है, जिसके अंतर्गत 29 वर्तमान श्रम कानूनों का सरलीकरण किया गया है।
परिचय
- चार श्रम संहिताओं में शामिल हैं:
- वेतन संहिता, 2019
- औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियाँ संहिता, 2020

- इस सुधार के प्रमुख कारण:
- अनुपालन को सरल बनाना: अनेक कानूनों के कारण अनुपालन में कठिनाई होती थी।
- प्रवर्तन को सुव्यवस्थित करना: विभिन्न श्रम कानूनों में अनेक प्राधिकरण होने से जटिलता और प्रवर्तन में कठिनाई होती थी।
- पुराने कानूनों का आधुनिकीकरण: अधिकांश श्रम कानून स्वतंत्रता-पूर्व काल में बनाए गए थे, जिन्हें आज की आर्थिक वास्तविकताओं एवं तकनीकी प्रगति के अनुरूप करना आवश्यक था।
चार श्रम संहिताएँ
संहिता 1: वेतन संहिता, 2019
- समाहित कानून: वेतन भुगतान अधिनियम, 1936; न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948; बोनस भुगतान अधिनियम, 1965; समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976।
- सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन: सभी कर्मचारियों को, चाहे संगठित हों या असंगठित, न्यूनतम वेतन का वैधानिक अधिकार मिलेगा।
- फ्लोर वेतन का परिचय: सरकार न्यूनतम जीवन स्तर के आधार पर एक वैधानिक फ्लोर वेतन तय करेगी, जिसमें क्षेत्रीय भिन्नता की गुंजाइश होगी। कोई भी राज्य इससे कम वेतन तय नहीं कर सकेगा।
- वेतन भुगतान का सार्वभौमिक कवरेज: समय पर वेतन भुगतान और अनधिकृत कटौती रोकने के प्रावधान सभी कर्मचारियों पर लागू होंगे।
- अतिरिक्त समय का भुगतान: नियमित कार्य समय से अधिक कार्य करने पर नियोक्ता को कर्मचारियों को कम से कम दोगुना वेतन देना होगा।
संहिता 2: औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
- समाहित कानून: ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926; औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946; औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947।
- नियत अवधि रोजगार (Fixed Term Employment): समयबद्ध अनुबंध की अनुमति, जिसमें वेतन और लाभों में पूर्ण समानता होगी; एक वर्ष बाद ग्रेच्युटी का अधिकार।
- छंटनी के समय अनुमति: छंटनी, पुनर्गठन और बंद करने के लिए सरकारी अनुमति की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 श्रमिक कर दी गई है; राज्यों को इसे बढ़ाने का अधिकार है।
संहिता 3: सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
- समाहित कानून: 9 कानून, जिनमें कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923; मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 शामिल हैं।
- विस्तारित ESIC कवरेज: ESIC अब पूरे भारत में लागू होगा, “अधिसूचित क्षेत्रों” की शर्त समाप्त।
- EPF जाँच की समय सीमा: EPF जाँच और वसूली कार्यवाही शुरू करने की सीमा 5 वर्ष तय, जिसे 2 वर्षों में पूरा करना होगा (1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है)।
- गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों का समावेश: “एग्रीगेटर,” “गिग वर्कर,” और “प्लेटफ़ॉर्म वर्कर” की नई परिभाषाएँ शामिल की गईं ताकि उन्हें सामाजिक सुरक्षा मिले।
- सामाजिक सुरक्षा कोष: असंगठित, गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों के लिए योजनाओं को वित्तपोषित करने हेतु समर्पित कोष।
- आवागमन दुर्घटनाएँ शामिल: घर और कार्यस्थल के बीच यात्रा के दौरान होने वाली दुर्घटनाएँ अब रोजगार-संबंधी मानी जाएँगी तथा क्षतिपूर्ति योग्य होंगी।
संहिता 4: व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियाँ संहिता, 2020
- समाहित कानून: 13 कानून, जिनमें कारखाना अधिनियम, 1948; बागान श्रम अधिनियम, 1951; खदान अधिनियम, 1952 शामिल हैं।
- स्वास्थ्य जाँच: नियोक्ता को 40 वर्ष से अधिक आयु के सभी श्रमिकों के लिए नि:शुल्क वार्षिक स्वास्थ्य जाँच प्रदान करनी होगी।
- विस्तारित प्रावधान: प्रावधान उन प्रतिष्ठानों तक भी लागू हो सकते हैं जहाँ केवल एक कर्मचारी खतरनाक या जीवन-घातक कार्य में संलग्न है।
Source: PIB