पाठ्यक्रम: GS2/शासन
संदर्भ
- भारत को 2047 तक विकसित भारत बनने की आकांक्षा है। इसके लिए आर्थिक विकास और राष्ट्रीय प्रगति हेतु एक स्वच्छ, पारदर्शी एवं जवाबदेह व्यवस्था की आवश्यकता है।
भारत में भ्रष्टाचार
- संथानम समिति रिपोर्ट (1964), जो भारत के भ्रष्टाचार-रोधी ढाँचे की नींव है, भ्रष्टाचार को परिभाषित करती है: “लोक क्षेत्र के अधिकारियों का आचरण — चाहे राजनेता हों या सिविल सेवक — जिसमें वे अनुचित और अवैध रूप से स्वयं को या अपने निकटस्थ लोगों को लाभ पहुँचाते हैं, या अपने पद का दुरुपयोग कर दूसरों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं।”
- केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के अनुसार: “भ्रष्टाचार(Corruption) = विवेक(Discretion) + रहस्यवाद(Mystification) – जवाबदेही(Accountability)”
- यह दर्शाता है कि भ्रष्टाचार तब पनपता है जब अधिकारियों के पास अनियंत्रित निर्णय लेने की शक्ति होती है, पारदर्शिता का अभाव होता है और परिणामस्वरूप उन्हें न्यूनतम दंड का सामना करना पड़ता है।
वर्तमान परिदृश्य और वैश्विक रैंकिंग
- भ्रष्टाचार की आर्थिक लागत: 1990 के दशक से हुए शोध लगातार भ्रष्टाचार को धीमी आर्थिक वृद्धि, कम निवेश और कमजोर रोजगार सृजन से जोड़ते हैं।
- एक अध्ययन में पाया गया कि भ्रष्टाचार में मात्र 1% की वृद्धि से प्रति व्यक्ति GDP में 1.5% तक की कमी हो सकती है।
- भ्रष्टाचार निम्न गुणवत्ता वाले वस्तुओं और सेवाओं को जन्म देता है, आय असमानता बढ़ाता है, कल्याणकारी योजनाओं को बाधित करता है तथा सब्सिडी तक पहुँच रोकता है।
- न्यायिक लंबित मामले और प्रवर्तन की कमी: CVC के अनुसार, CBI द्वारा जाँच किए गए 7,000 से अधिक भ्रष्टाचार मामलों का ट्रायल न्यायालयों में लंबित है, जिनमें से 379 मामले 20 वर्षों से अधिक समय से लंबित हैं।
- लोकपाल ने पाँच वर्षों में केवल 24 मामलों में जाँच का आदेश दिया और मात्र 6 मामलों में अभियोजन की अनुमति दी।
- भारत की वैश्विक भ्रष्टाचार रैंकिंग:ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2024 में भारत को 180 देशों में 96वाँ स्थान मिला, स्कोर 38/100 रहा — जो 2014 से अपरिवर्तित है।
- इसी तरह, विश्व बैंक केभ्रष्टाचार नियंत्रण सूचकांक 2023 में भारत को 42/100 अंक मिले और 193 देशों में 108वाँ स्थान दिया गया।
- यह भारत को कई क्षेत्रीय देशों से पीछे रखता है और सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार की स्थायी धारणा को उजागर करता है।
- संस्थागत अनुपालन की कमी: CVC ने 34 प्रमुख मामलों को चिन्हित किया जहाँ सरकारी विभागों ने भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध उसकी सिफारिशों को कमजोर किया या अनदेखा किया, जिससे संस्थागत अखंडता प्रभावित हुई।
संस्थागत प्रतिक्रिया और कानूनी ढाँचा
- शासन में नैतिकता (द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग रिपोर्ट): इसमें बल दिया गया कि न्यायसंगत और पारदर्शी प्रशासन के लिए नैतिक शासन आवश्यक है। प्रमुख नैतिक सिद्धांत:
- ईमानदारी: लोक सेवकों को ईमानदारी से कार्य करना चाहिए और हितों के टकराव से बचना चाहिए।
- जवाबदेही: अधिकारियों को अपने कार्यों और निर्णयों के लिए उत्तरदायी होना चाहिए।
- पारदर्शिता: शासन खुला होना चाहिए और जनसमीक्षा के लिए सुलभ होना चाहिए।
- निष्पक्षता और समानता: निर्णय निष्पक्ष होने चाहिए और जनहित में होने चाहिए।
- DARPG द्वारा शासन में नैतिकता पर प्रशिक्षण मॉड्यूल: इसमें बताया गया कि पक्षपात, विवेकाधिकार का दुरुपयोग और पारदर्शिता की कमी भ्रष्टाचार के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करते हैं।
- केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964: इनमें संशोधन कर सरकारी कर्मचारियों के लिए आचार संहिता जोड़ी गई, जिसमें पूर्ण ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता अनिवार्य की गई।
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (2018 में संशोधित): इसमें लोक सेवकों द्वारा किए गए भ्रष्ट कार्यों को परिभाषित किया गया और रिश्वतखोरी के लिए कॉर्पोरेट दायित्व जोड़ा गया।
- 2018 संशोधन में सार्वजनिक अधिकारियों के अभियोजन के लिए पूर्व अनुमति अनिवार्य की गई।
- केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003: CVC को मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में सतर्कता गतिविधियों की निगरानी का अधिकार देता है।
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013: केंद्र और राज्यों में स्वतंत्र भ्रष्टाचार-रोधी लोकपाल की स्थापना करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और नीति: भारत के भ्रष्टाचार-रोधी मंत्री ने जी20 भ्रष्टाचार विरोधी मंत्रिस्तरीय बैठक में शून्य-सहनशीलता दृष्टिकोण पर बल दिया और संपत्ति पुनर्प्राप्ति तथा कानूनी सहायता पर वैश्विक सहयोग का समर्थन किया।
- हालाँकि, घरेलू कार्यान्वयन असमान बना हुआ है।
- ‘भ्रष्टाचार के विरुद्ध शून्य सहनशीलता’ नीति: कई उपाय लागू किए गए:
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): सब्सिडी सीधे लाभार्थियों तक पहुँचाकर कल्याणकारी योजनाओं में रिसाव कम करता है।
- ई-गवर्नेंस और ई-टेंडरिंग: सार्वजनिक सेवाओं और खरीद प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण कर मानवीय विवेकाधिकार को कम करता है तथा पारदर्शिता बढ़ाता है।
- सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM): खरीद प्रक्रिया को सरल करता है और पक्षपात की संभावना घटाता है।
- साक्षात्कार समाप्ति: ग्रुप B और C पदों के लिए साक्षात्कार समाप्त कर भर्ती में भाई-भतीजावाद और रिश्वतखोरी को रोकता है।
भ्रष्टाचार कम करने की रणनीतियाँ
- नियामक ढाँचे को सरल बनाना: भूमि, कराधान और व्यापार में जटिल नियम नौकरशाही विवेकाधिकार एवं किराया-खोज को बढ़ावा देते हैं।
- इन प्रक्रियाओं को डिजिटलीकरण और स्पष्ट नियमों के माध्यम से सरल बनाना रिश्वत माँगने के अवसरों को कम कर सकता है।
- नौकरशाहों की जवाबदेही बढ़ाना: वरिष्ठ अधिकारियों को प्रायः अभियोजन से बेहतर सुरक्षा मिलती है।
- यह कई बार भ्रष्टाचार को ढकता है, जबकि इसका उद्देश्य उत्पीड़न रोकना होता है।
- प्रत्येक 10 वर्षों में स्वतः आय और संपत्ति का ऑडिट — जिसमें अज्ञात संपत्ति मिलने पर जाँच शुरू हो — वास्तविक जवाबदेही ला सकता है।
- न्यायिक प्रक्रिया में सुधार: भ्रष्टाचार के मामले दशकों तक चलते रहते हैं, जिससे निवारक प्रभाव समाप्त हो जाता है।
- फास्ट-ट्रैक न्यायालयों और समर्पित भ्रष्टाचार-रोधी पीठ समय पर न्याय सुनिश्चित कर सकती हैं तथा भ्रष्ट आचरण की लागत बढ़ा सकती हैं।
निष्कर्ष
- निर्णायक कार्रवाई के बिना भ्रष्टाचार शासन को कमजोर करता रहेगा, निवेश को हतोत्साहित करेगा और असमानता को बनाए रखेगा — जिससे भारत अपनी वास्तविक क्षमता प्राप्त नहीं कर पाएगा।
- भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की आकांक्षा पूरी करने के लिए भ्रष्टाचार का सीधे सामना करना होगा।
- आवश्यक नैतिक, प्रशासनिक और न्यायिक सुधार राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन वे अपरिहार्य हैं।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] चर्चा कीजिए कि भ्रष्टाचार किस प्रकार 2047 तक विकसित भारत बनने के भारत के दृष्टिकोण में बाधा बन रहा है। सतत विकास को बढ़ावा देने में शासन सुधारों और संस्थागत जवाबदेही की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। |