पाठ्यक्रम: GS2/ स्वास्थ्य
संदर्भ
- उभरते विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सम्मेलन (ESTIC) 2025 के उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने वैज्ञानिक समुदाय से खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा की ओर बढ़ने पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया।
भारत में खाद्य सुरक्षा की स्थिति
- 2024-25 के तृतीय अग्रिम अनुमानों के अनुसार, भारत ने 353.96 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन का रिकॉर्ड प्राप्त किया है, जिसमें 117.51 मिलियन टन गेहूँ और 149.07 मिलियन टन चावल शामिल हैं।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न सुनिश्चित करता है, जो ग्रामीण जनसंख्या के 75% और शहरी जनसंख्या के 50% को कवर करता है।
- जुलाई 2025 तक, भारतीय खाद्य निगम (FCI) और राज्य एजेंसियों के पास केंद्रीय पूल अनाज के लिए कुल 917.83 लाख मीट्रिक टन (LMT) ढंके हुए और कवर एंड प्लिन्थ (CAP) भंडारण क्षमता उपलब्ध है।
- हालांकि, खाद्य सुरक्षा पोषण सुरक्षा की गारंटी नहीं देती।
| मानदंड | खाद्य सुरक्षा | पोषण सुरक्षा |
| मुख्य बिंदु / केन्द्र बिंदु | कैलोरी पर्याप्तता | स्थूल एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों का पर्याप्त सेवन |
| लक्ष्य | भूख की रोकथाम करना | शारीरिक और संज्ञानात्मक कल्याण सुनिश्चित करें |
| संकेतक | अनाज की उपलब्धता, पीडीएस कवरेज | एनीमिया, बौनापन, मोटापा, आहार विविधता |
| दृष्टिकोण | मात्रा-संचालित | गुणवत्ता और विविधता से प्रेरित |
| नीति अभिविन्यास | अनाज-केंद्रित (चावल और गेहूं) | फसल एवं आहार विविधीकरण |
| मुख्य योजनाएँ | पीडीएस, एनएफएसए, मध्याह्न भोजन | पोषण अभियान, आईसीडीएस, फूड फोर्टिफिकेशन मिशन |
| माप मीट्रिक | प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता | पोषण परिणाम और आहार विविधता |
| स्थिरता पहलू | अल्पकालिक राहत | दीर्घकालिक स्वास्थ्य और स्थिरता |
पोषण सुरक्षा की ओर ध्यान देने की आवश्यकता
- लगातार बाल कुपोषण: (NFHS-5, 2019–21 के अनुसार)
- पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अवरुद्ध (Stunted) हैं (आयु के अनुसार कम लंबाई)।
- 19.3% बच्चे क्षीण (Wasted) हैं (लंबाई के अनुसार कम वज़न)।
- 32.1% बच्चे कम वज़न (Underweight) के हैं।
- मातृ एवं महिला पोषण:
- कुपोषित महिलाओं (BMI < 18.5) का अनुपात 22.9% से घटकर 18.7% हुआ है।
- लेकिन 15–49 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया की दर 57% है, जो अत्यंत चिंताजनक है (NFHS-5)।
- सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी:
- भारत में लौह (Iron), विटामिन A, जिंक और आयोडीन की व्यापक कमी है।
- व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) के अनुसार, 50% से अधिक प्री-स्कूल बच्चे विटामिन A या लौह की कमी से पीड़ित हैं।
- ऐसी “छिपी हुई भूख” (Hidden Hunger) खाद्य-सुरक्षित परिवारों में भी बनी रहती है, जो मुख्यतः अनाज-आधारित आहार पर निर्भर हैं।
- आर्थिक और सामाजिक प्रभाव:
- कुपोषण मानव पूंजी विकास को सीमित करता है, उत्पादकता घटाता है, स्वास्थ्य देखभाल लागत बढ़ाता है और गरीबी के चक्र को बनाए रखता है, जिससे राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
पोषण सुरक्षा की दिशा में नीतिगत पहल
- पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन): 2018 में शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य मंत्रालयों के बीच समन्वय के माध्यम से अवरुद्धता, कुपोषण और एनीमिया को कम करना है।
- पुनर्गठित मिशन पोषण 2.0: इसमें पूरक पोषण कार्यक्रम और पोषण ट्रैकर ऐप को एकीकृत किया गया है, ताकि बच्चों एवं महिलाओं के पोषण की वास्तविक समय पर निगरानी हो सके।
- खाद्य पदार्थों का सुदृढ़ीकरण (Fortification): सरकार ने 2028 तक PDS, ICDS और मध्याह्न भोजन योजना के माध्यम से सुदृढ़ीकृत चावल के वितरण को अनिवार्य किया है।
- खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) की फूड फोर्टिफिकेशन पहल के अंतर्गत तेल, दूध और नमक का सुदृढ़ीकरण जारी है।

- एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS): आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से पूरक पोषण, वृद्धि निगरानी और स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करती है।
- एनीमिया मुक्त भारत (2018): बच्चों, किशोरों और महिलाओं में एनीमिया की कमी को लक्ष्य करता है।
- कृषि और खाद्य प्रणाली विविधीकरण: आहार विविधता बढ़ाने हेतु मोटे अनाज (Millets) और दालों को बढ़ावा, जो अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 की सफलता से जुड़ा है।
- जैव-सुदृढ़ीकृत फसलों पर शोध: लौह-समृद्ध बाजरा, जिंक-समृद्ध गेहूँ, प्रोटीन-समृद्ध मक्का पर ICAR द्वारा अनुसंधान, ताकि छिपी हुई भूख का समाधान किया जा सके।
आगे की राह
- आहार विविधता बढ़ाना: PDS टोकरी में दालें, मोटे अनाज और खाद्य तेल सम्मिलित करना।
- पहले 1,000 दिन पर ध्यान: मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना, जिसमें गर्भावस्था पोषण, केवल स्तनपान और पूरक आहार पर बल हो।
- मूलभूत निर्धारकों का समाधान: स्वच्छता, सुरक्षित पेयजल और महिलाओं की शिक्षा में सुधार, जो पोषण परिणामों को गहराई से प्रभावित करते हैं।
- महिला सशक्तिकरण: स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से आहार जागरूकता को बढ़ावा।
- डेटा-आधारित शासन: पोषण ट्रैकर, NFHS और स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HMIS) जैसे उपकरणों का उपयोग कर जिला-स्तरीय लक्षित हस्तक्षेप।
- परिणामों पर ध्यान: केवल इनपुट वितरण पर नहीं, बल्कि अवरुद्धता (Stunting) में कमी जैसे ठोस परिणामों पर फोकस।
Source: TH
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