पाठ्यक्रम: GS1/भूगोल/GS3/पर्यावरण
समाचारों में
- उच्च समुद्री संधि (High Seas Treaty), जिसे 60 से अधिक देशों ने अनुमोदित किया है, जनवरी 2026 से प्रभावी होगी।
संधि की उत्पत्ति और विकास
- उच्च समुद्री संधि की प्रक्रिया 2004 में शुरू हुई जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने UNCLOS (1982) में राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैव विविधता (BBNJ) से संबंधित खामियों को दूर करने के लिए एक कार्य समूह का गठन किया। 2011 तक, देशों ने चार प्रमुख क्षेत्रों पर बातचीत करने पर सहमति व्यक्त की:
- समुद्री आनुवंशिक संसाधन (MGRs)
- क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण (ABMTs)
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIAs)
- क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
- 2018 से 2023 के बीच चार अंतर-सरकारी सम्मेलनों के बाद, मार्च 2023 में अंतिम समझौता हुआ, जून 2023 में संधि को औपचारिक रूप से अपनाया गया और सितंबर 2025 में इसका अनुमोदन किया गया।
राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौता
- अवलोकन:
- BBNJ समझौता, या उच्च समुद्री संधि, अंतरराष्ट्रीय जल में समुद्री जैव विविधता की रक्षा हेतु UNCLOS के अंतर्गत एक वैश्विक ढांचा है।
- यह अंतरराष्ट्रीय जल में समुद्री जैव विविधता को नियंत्रित करने के लिए एक वैश्विक ढांचा स्थापित करता है।
- यह समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (MGRs) को मानवजाति की साझा धरोहर घोषित करता है और न्यायसंगत लाभ-साझाकरण सुनिश्चित करता है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- संधि क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण (ABMTs) प्रस्तुत करती है, जिनमें समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPAs) शामिल हैं, ताकि वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान को एकीकृत कर जलवायु लचीलापन एवं खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया जा सके।
- यह उन गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIAs) को अनिवार्य बनाती है जिनके संचयी या सीमापार प्रभाव हो सकते हैं।
- यह कई सतत विकास लक्ष्यों (SDGs), विशेषकर SDG14 (जलीय जीवों की सुरक्षा) की दिशा में प्रगति का समर्थन करती है।
- महत्व:
- इसका उद्देश्य समुद्री जैव विविधता की रक्षा करना और महासागरीय संसाधनों के सतत उपयोग को विनियमित करना है, ताकि जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक मछली पकड़ने एवं संदूषण जैसी चुनौतियों से निपटा जा सके।
- यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से सतत उपयोग को बढ़ावा देती है, उच्च समुद्र संसाधनों पर संप्रभु दावों को प्रतिबंधित करती है और न्यायसंगत लाभ-साझाकरण सुनिश्चित करती है।
- संधि एक समावेशी, पारिस्थितिकी-आधारित दृष्टिकोण अपनाती है, जिसमें पारंपरिक और वैज्ञानिक ज्ञान का एकीकरण होता है।
चुनौतियाँ
- उच्च समुद्री संधि कई चुनौतियों का सामना करती है, जिनमें प्रमुख हैं:
- “मानवजाति की साझा धरोहर” और “उच्च समुद्र की स्वतंत्रता” के सिद्धांतों के बीच अस्पष्टता, विशेषकर समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (MGRs) के संदर्भ में, जिससे पहुँच, अनुसंधान और लाभ-साझाकरण के नियम स्पष्ट नहीं हैं।
- यद्यपि संधि MGR लाभों के न्यायसंगत बंटवारे के लिए एक ढांचा प्रस्तुत करती है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में स्पष्टता की कमी है, जिससे जैव-डकैती (biopiracy) और विकासशील देशों के बहिष्कार की आशंका बढ़ती है।
- इसकी प्रभावशीलता कमजोर हो जाती है क्योंकि अमेरिका, चीन और रूस जैसी प्रमुख शक्तियों ने इसका अनुमोदन नहीं किया है।
आगे की राह
- उच्च समुद्री संधि, UNCLOS को सुदृढ़ करती है क्योंकि यह पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIAs), क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरण (ABMTs) और लाभ-साझाकरण के लिए विज्ञान-आधारित नियम प्रस्तुत करती है।
- हालांकि, समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (MGRs) और “मानवजाति की साझा धरोहर” सिद्धांत के आसपास की अस्पष्ट भाषा क्रियान्वयन में चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
- BBNJ समझौते की प्रभावी डिलीवरी के लिए समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPAs) का गतिशील प्रबंधन, नियमित निगरानी और जलवायु व जैव विविधता विचारों का एकीकरण आवश्यक होगा ताकि महासागर शासन अधिक लचीला हो सके।
- इसके अतिरिक्त, संधि को अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority) और क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन संगठनों (Regional Fisheries Management Organisations) जैसी वर्तमान संस्थाओं के साथ सामंजस्य स्थापित करना होगा ताकि कानूनी टकराव एवं महासागर शासन में विखंडन से बचा जा सके।
Source: TH
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संक्षिप्त समाचार 03-11-2025