पाठ्यक्रम: GS3/प्रदूषण
संदर्भ
- एनवायरनमेंटल अर्थ साइंसेज़ में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि कावेरी नदी की मछलियों में भारी धातुओं का खतरनाक स्तर पाया गया है, जो पारिस्थितिक तंत्र और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न करता है।
भारी धातुओं के बारे में
- ये स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले तत्व हैं जिनका परमाणु भार और घनत्व अधिक होता है।
- इनमें से कुछ जैसे लौह (Iron) और जिंक (Zinc) सूक्ष्म मात्रा में आवश्यक हैं, जबकि सीसा (Lead), पारा (Mercury), आर्सेनिक (Arsenic) और कैडमियम (Cadmium) कम सांद्रता पर भी विषैले होते हैं।
- ये प्रदूषक नदी की तलछट में जम जाते हैं और जलीय जीवों में जैव-संचयन (Bioaccumulation) करते हैं, जिससे मछलियों और पेयजल के माध्यम से मानव खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं।
संदूषण के स्रोत
- मानवजनित स्रोत: कोयला खनन, स्मेल्टिंग, चमड़ा शोधन (Leather Tanning) और अन्य औद्योगिक गतिविधियाँ।
- प्राकृतिक स्रोत: कुछ भारी धातुएँ भूजल में स्वाभाविक रूप से वर्तमान होती हैं, जैसे चट्टानों से रिसाव, ज्वालामुखीय गतिविधियाँ और जंगल की आग।
जल निकायों में संदूषण
- नदी तंत्र: केंद्रीय जल आयोग (CWC) के अनुसार, आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, कॉपर, निकल और सीसा जैसी विषैली धातुएँ अनुमेय सीमा से अधिक पाई गईं।
- गंगा, यमुना, कावेरी और अर्कवती नदियों में बहु-धातु प्रदूषण देखा गया, जो प्रायः औद्योगिक अपशिष्ट एवं अनुपचारित सीवेज से जुड़ा होता है।
- भूजल प्रदूषण: जल शक्ति मंत्रालय ने पुष्टि की कि 36,873 ग्रामीण बस्तियाँ भूजल में भारी धातु संदूषण से प्रभावित हैं।
- आर्सेनिक एवं फ्लोराइड सबसे सामान्य प्रदूषक हैं, जबकि कैडमियम और सीसा कुछ क्षेत्रों में पाए गए।
- खाद्य स्रोतों में संदूषण:
- कावेरी नदी और कोच्चि बैकवाटर्स की मछलियों में पारा, सीसा एवं कैडमियम का खतरनाक स्तर पाया गया।
- कर्नाटक के EMPRI अध्ययन के अनुसार, बेंगलुरु बाजारों में बिकने वाली सब्जियों में भी भारी धातुएँ सुरक्षित सीमा से अधिक पाई गईं।
भारी धातु संदूषण के प्रभाव
- स्वास्थ्य पर खतरे: तंत्रिका तंत्र को हानि, गुर्दे की विफलता, हड्डियों की विकृतियाँ, कैंसर और बच्चों में विकास संबंधी विकार।
- मृदा क्षरण: मृदा की उर्वरता और सूक्ष्मजीव गतिविधि को कम करता है, जिससे फसल उत्पादन एवं खाद्य गुणवत्ता घटती है।
- जल संदूषण: नदियों और भूजल को दूषित करता है, जिससे मछलियों एवं जलीय खाद्य श्रृंखला में जैव-संचयन होता है।
- आर्थिक हानि: कृषि, मत्स्य पालन प्रभावित होते हैं और स्वास्थ्य देखभाल लागत बढ़ती है।
- पारिस्थितिक असंतुलन: जैव विविधता को बाधित करता है, पोषक चक्रों को बदलता है और वनस्पति एवं जीव-जंतुओं को हानि पहुँचाता है।
भारी धातु संदूषण के समाधान
- वैज्ञानिक और तकनीकी समाधान:
- पर्यावरण-अनुकूल विधियाँ जैसे एडसॉर्प्शन, मेम्ब्रेन फिल्ट्रेशन और फोटो-कैटालिसिस।
- बायोरिमेडिएशन: सूक्ष्मजीव और पौधे (जैसे Streptomyces Rochei) मृदा और जल से धातुओं को अवशोषित कर उन्हें डिटॉक्सिफाई करते हैं।
- फाइटोरिमेडिएशन: कुछ पौधे दूषित मृदा से धातुएँ निकाल सकते हैं, यह कम लागत और हरित समाधान है।
- बायोसॉर्प्शन: कृषि अपशिष्ट, पौधों के अवशेष, शैवाल और सूक्ष्मजीव बायोमास से धातुओं का अवशोषण।
- रिवर्स ऑस्मोसिस: पानी को अर्ध-पारगम्य फिल्टरों से गुजारा जाता है।
- रेज़िन आधारित जल शोधन तकनीक: आयन एक्सचेंज रेज़िन का उपयोग कर हानिकारक आयनों को सुरक्षित आयनों से बदला जाता है।
- केसी वैली परियोजना (कर्नाटक): उपचारित अपशिष्ट जल पुनर्भरण पहल ने सूखा-प्रवण क्षेत्रों में भूजल गुणवत्ता पुनर्स्थापित करने में सहायता की।
- सामुदायिक और पर्यावरणीय कार्रवाई:
- विकेन्द्रीकृत जल शोधन: ग्रामीण समुदायों के लिए रेत निस्पंदन और सक्रिय कार्बन जैसी स्थानीय तकनीकें।
- भूमि उपचार: स्टील स्लैग और अन्य औद्योगिक उप-उत्पादों का उपयोग मृदा की विषाक्तता कम करने में।
सरकारी पहल
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NCG) और नमामि गंगे: औद्योगिक अपशिष्ट कम करने पर केंद्रित।
- राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM): भारी धातु प्रभावित क्षेत्रों की पहचान।
- लेडेड पेट्रोल पर प्रतिबंध (BS Norms) और लीड पेंट विनियमन (2016)।
- ई-वेस्ट प्रबंधन नियम (2022): विषैले अपशिष्ट उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु।
- फ्लोरोसिस और आर्सेनिकोसिस की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम।