पाठ्यक्रम: GS2/शासन; GS3/आईटी की भूमिका
संदर्भ
- भारत में ई-गवर्नेंस का विकास प्रशासनिक मॉडल को ऊपर से नीचे के दृष्टिकोण से बदलकर एक सहभागी, पारदर्शी और नागरिक-केंद्रित प्रणाली में परिवर्तित कर चुका है।
भारत में ई-गवर्नेंस के बारे में
- यह इस बात में एक मौलिक बदलाव को दर्शाता है कि सरकार नागरिकों, व्यवसायों और राज्य के अन्य अंगों के साथ कैसे संवाद करती है।
- भारत ने सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग करके शासन को अधिक पारदर्शी, कुशल एवं नागरिक-केंद्रित रूप में पुनः परिभाषित किया है।
- ई-गवर्नेंस के मुख्य उद्देश्य
- पारदर्शिता: डिजिटल ट्रेल्स के माध्यम से भ्रष्टाचार में कमी;
- कुशलता: प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाना और विलंब को कम करना;
- समावेशिता: शहरी-ग्रामीण अंतर को समाप्त करना और हाशिए पर उपस्थित समुदायों को सशक्त बनाना;
- जवाबदेही: रीयल-टाइम निगरानी और फीडबैक तंत्र;
- सुलभता: सरकार और नागरिकों दोनों के लिए लागत को न्यूनतम करना।
भारत में ई-गवर्नेंस का विकास
- चरण I (2000 तक):
- : सरकारी विभागों को कंप्यूटर से परिचित कराने और बुनियादी डिजिटल संचार प्रणाली विकसित करने के लिए।
- NIC नेटवर्क (NICNET), 1987: भारत का प्रथम उपग्रह-आधारित सरकारी नेटवर्क; राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ाया।
- रेलवे आरक्षण प्रणाली, आयकर रिकॉर्ड और मतदाता सूची का कम्प्यूटरीकरण जैसे अन्य नवाचारों ने दिखाया कि बैक-एंड डिजिटलीकरण प्रशासनिक दक्षता को कैसे बढ़ा सकता है।
- ई-सेवा (आंध्र प्रदेश, 1999): नागरिकों को एकल खिड़की से कई सेवाओं तक पहुंच प्रदान की।
- चरण II (2000–2014):
- ज्ञानदूत (मध्य प्रदेश, 2000): आदिवासी क्षेत्रों के लिए ग्रामीण साइबर कियोस्क बनाए गए।
- भूमि (कर्नाटक, 2001): भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण, जिससे संपत्ति प्रबंधन में क्रांति आई।
- FRIENDS (केरल) और लोकवाणी (उत्तर प्रदेश): दिखाया कि डिजिटल शासन भारत की सामाजिक-आर्थिक विविधता के अनुरूप ढल सकता है।
- ई-गवर्नेंस का संस्थागतकरण:
- राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP), 2006: यह प्रणालीगत, राष्ट्रव्यापी डिजिटलीकरण की शुरुआत थी। इसमें शामिल थे:
- राज्यव्यापी क्षेत्रीय नेटवर्क (SWANs): कनेक्टिविटी के लिए;
- कॉमन सर्विस सेंटर (CSCs): ग्रामीण-शहरी अंतर को समाप्त करने के लिए;
- राज्य डेटा केंद्र (SDCs): एप्लिकेशन और सेवाओं की मेजबानी के लिए।
- ये प्रमुख आधारभूत परियोजनाएँ एकीकृत सेवाओं के लिए डिजिटल रीढ़ बन गईं।
- आधार (2010): यह विश्व का सबसे बड़ा बायोमेट्रिक पहचान कार्यक्रम है, जो एक अरब से अधिक लोगों को सत्यापित डिजिटल पहचान प्रदान करता है, और UIDAI के माध्यम से कल्याण हस्तांतरण एवं वित्तीय समावेशन को सक्षम बनाता है।
- राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP), 2006: यह प्रणालीगत, राष्ट्रव्यापी डिजिटलीकरण की शुरुआत थी। इसमें शामिल थे:
- हालांकि, कई परियोजनाएँ कनेक्टिविटी समस्याओं और वित्तीय अस्थिरता से ग्रस्त रहीं — ‘पायलट प्रोजेक्ट सिंड्रोम’ का उदाहरण, जहाँ छोटे स्तर की सफलता राष्ट्रव्यापी विस्तार में परिवर्तित नहीं हो सकी।
- चरण III (2015–2019):
- डिजिटल इंडिया (2015): नागरिकों को सशक्त बनाने और डिजिटल अंतर को समाप्त करने के लिए, सेवा वितरण से पारिस्थितिकी तंत्र निर्माण की ओर बढ़ना।
- डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण:
- JAM त्रयी (जन धन, आधार, मोबाइल): प्रत्यक्ष कल्याण हस्तांतरण और वित्तीय समावेशन को सक्षम बनाया।
- डिजिलॉकर और BHIM: नागरिकों को सुरक्षित डिजिटल भंडारण और भुगतान की सुविधा दी।
- इंडिया स्टैक: आधार प्रमाणीकरण, ई-KYC, ई-साइन और UPI जैसे ओपन API प्रदान किए, जिससे नवाचार के लिए प्रोग्राम योग्य सार्वजनिक अवसंरचना बनी।
- यूपीआई (UPI): 2016 में 0.01 मिलियन लेन-देन से बढ़कर 2025 तक 18 अरब मासिक लेन-देन तक पहुंच गया।
- शासन का प्लेटफॉर्मीकरण:
- UMANG: मोबाइल/वेब के माध्यम से 100+ सरकारी सेवाओं तक पहुंच का एकीकृत प्लेटफॉर्म;
- ई-क्रांति: डिजिटल इंडिया के अंतर्गत एक उप-मिशन, जो ई-गवर्नेंस को सुशासन में बदलने पर केंद्रित है;
- डिजिलॉकर: डिजिटल दस्तावेजों को संग्रहित और साझा करने के लिए सुरक्षित क्लाउड-आधारित प्लेटफॉर्म;
- मोबाइल सेवा: SMS, IVRS, USSD और मोबाइल ऐप्स के माध्यम से सेवाओं की डिलीवरी;
- कॉमन सर्विस सेंटर (CSCs): ग्रामीण क्षेत्रों में ई-सेवाओं और डिजिटल साक्षरता के लिए पहुँच बिंदु;
- डिजीयात्रा: यात्रियों को चेहरे की स्कैनिंग से कतारों को पार करने की सुविधा देता है, जो राज्य और नागरिक के संबंध में एक मौलिक परिवर्तन को दर्शाता है।
संबंधित चिंताएँ और चुनौतियाँ
- अंतर और विभाजन:
- शहरी-ग्रामीण अंतर: जहाँ शहरी क्षेत्रों को हाई-स्पीड इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता का लाभ मिलता है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी कनेक्टिविटी एवं जागरूकता की कमी है।
- कम डिजिटल साक्षरता: कई नागरिक, विशेष रूप से ग्रामीण और वृद्ध जनसंख्या, डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करने में कठिनाई महसूस करते हैं।
- भाषाई बाधाएँ: भारत की भाषाई विविधता एक बड़ी चुनौती है। अधिकांश ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म अंग्रेजी-केंद्रित हैं, जिससे गैर-अंग्रेजी भाषी नागरिकों को कठिनाई होती है।
- अवसंरचना की कमी: अस्थिर बिजली, कमजोर इंटरनेट कनेक्टिविटी और दूरदराज के क्षेत्रों में हार्डवेयर की कमी प्लेटफॉर्म की कार्यक्षमता को बाधित करती है।
- साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता: बढ़ते डिजिटलीकरण के साथ नागरिक डेटा की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है।
- साइबर धोखाधड़ी, फ़िशिंग हमले और पहचान की चोरी में वृद्धि, विशेष रूप से कमजोर वर्गों को लक्षित करती है।
- कमजोर KYC मानदंड और अपर्याप्त साइबर पुलिस बल समस्या को बढ़ाते हैं।
- इंटरऑपरेबिलिटी की समस्याएँ: कई सरकारी विभाग अलग-अलग कार्य करते हैं, जिससे डेटा का विखंडन और सेवा वितरण में अक्षमता आती है।
- परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध: नौकरशाही जड़ता और अधिकारियों में प्रशिक्षण की कमी प्रायः अपनाने की गति को धीमा कर देती है।
नीतिगत ढाँचा और समर्थन
- MeitY ने ई-गवर्नेंस को समर्थन देने और डिजिटल शासन प्रणालियों की स्केलेबिलिटी, सुरक्षा एवं स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए व्यापक नीतियाँ तैयार की हैं, जिनमें शामिल हैं:
- ओपन सोर्स सॉफ़्टवेयर को अपनाना;
- क्लाउड-रेडी एप्लिकेशन विकास;
- इंटरऑपरेबिलिटी के लिए ओपन API;
- ईमेल और डेटा सुरक्षा नीतियाँ।
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