पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संदर्भ
- ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की भारत यात्रा, नया EFTA व्यापार समझौता और यूरोपीय संघ के साथ व्यापार वार्ताएँ भारत की कूटनीति में यूरोप की बढ़ती भूमिका को दर्शाती हैं।
पश्चिमी बहुलवाद के कारण ट्रंप के अंतर्गत
- अमेरिकी नीति में परिवर्तन: “अमेरिका फर्स्ट” राष्ट्रवाद ने गठबंधनों और सुरक्षा प्रतिबद्धताओं पर प्रश्न उठाए।
- इसने वैश्विक संस्थाओं और व्यापार मानदंडों को कमजोर किया।
- पश्चिम के अंदर आंतरिक विभाजन: पश्चिमी देशों में रूस, चीन, व्यापार और तकनीक जैसे वैश्विक मुद्दों पर मतभेद हैं।
- यूरोप अब स्वयं की भू-राजनीतिक भूमिका विकसित कर रहा है, बजाय इसके कि वह “सामूहिक पश्चिम” के रूप में केवल अमेरिका का विस्तार बना रहे।
- यूरोप की प्रतिक्रिया: यूरोप ने रणनीतिक स्वायत्तता और महाद्वीपीय संप्रभुता की मांग की है।
- यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने घोषणा की कि “यूरोप को आर्थिक, तकनीकी और सैन्य रूप से आत्मनिर्भर बनने के लिए तैयार रहना चाहिए।”
भारत-यूरोपीय संघ संबंध
- राजनीतिक सहयोग: भारत-ईयू संबंधों की शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी, और 1994 में हस्ताक्षरित सहयोग समझौते ने इस द्विपक्षीय संबंध को व्यापार एवं आर्थिक सहयोग से आगे बढ़ाया।
- 2000 में प्रथम भारत-ईयू शिखर सम्मेलन इस संबंध के विकास में एक माइलस्टोन था।
- 2004 में हेग में हुए 5वें भारत-ईयू शिखर सम्मेलन में इस संबंध को ‘रणनीतिक साझेदारी’ में उन्नत किया गया।
- आर्थिक सहयोग: 2023-24 में भारत और ईयू के बीच वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार 137.41 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जिससे ईयू भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया।
- भारत के 17% निर्यात ईयू को जाते हैं और ईयू के 9% निर्यात भारत आते हैं।
- भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ताएँ
- वार्ता पुनः आरंभ: 8 वर्षों के अंतराल के बाद 2022 में वार्ताएँ फिर से शुरू हुईं।
- उद्देश्य: वस्तुओं, सेवाओं, निवेश और भौगोलिक संकेतों को शामिल करते हुए एक व्यापक व्यापार समझौते को अंतिम रूप देना।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष ने इस वर्ष के अंत तक समझौते को पूरा करने पर सहमति व्यक्त की।
- अन्य सहयोग क्षेत्र
- भारत-ईयू जल साझेदारी (IEWP), 2016 में स्थापित, जल प्रबंधन में तकनीकी, वैज्ञानिक और नीतिगत ढांचे को सुदृढ़ करने का लक्ष्य रखती है।
- 2020 में, भारत सरकार और यूरोपीय परमाणु ऊर्जा समुदाय के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में अनुसंधान एवं विकास सहयोग हेतु समझौता हुआ।
- भारत और ईयू ने 2023 में व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) की स्थापना की। TTC व्यापार, तकनीक और सुरक्षा पर सहयोग के लिए एक मंच है।
- भारत की दो स्तरों पर भागीदारी
- ईयू एक समूह के रूप में: नियमित शिखर सम्मेलन, व्यापार, तकनीक, सुरक्षा और विदेश नीति पर रणनीतिक संवाद।
- प्रमुख ईयू सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय रूप से: फ्रांस, जर्मनी, नॉर्डिक और पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ संबंधों को गहरा करना।
भारत-यूरोप संबंधों को आकार देने वाले कारक
- भू-राजनीतिक परिवर्तन और रणनीतिक स्वायत्तता: यूरोप में युद्ध की वापसी (रूस-यूक्रेन) और बहुपक्षवाद का वैश्विक क्षरण।
- यूरोप अमेरिका से अधिक रणनीतिक स्वायत्तता चाहता है, विशेष रूप से ट्रंप युग के बाद।
- भारत बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था बनाए रखने और अमेरिका, रूस, चीन से परे साझेदारियों को विविध बनाने का प्रयास कर रहा है।
- व्यापार और आर्थिक सहयोग: ईयू भारत के सबसे बड़े व्यापार और निवेश भागीदारों में से एक है।
- भारत और ईयू भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौता (FTA) तथा निवेश समझौते को पूरा करने के इच्छुक हैं।
- IMEC (भारत–मध्य पूर्व–यूरोप गलियारा) रणनीतिक संपर्क और व्यापार के अवसर प्रदान करता है।
- प्रौद्योगिकी और डिजिटल संप्रभुता: दोनों सार्वजनिक वस्तुओं के रूप में डिजिटल तकनीकों को बढ़ावा देने में साझा रुचि रखते हैं।
- भारत यूरोप की डीप टेक, सेमीकंडक्टर और डिजिटल निर्माण में विशेषज्ञता से लाभ उठा सकता है।
- रक्षा और रणनीतिक सहयोग: यूरोप भारत का प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता है।
- भारत संयुक्त विकास, सह-उत्पादन और तकनीक हस्तांतरण चाहता है।
- यूरोप यूक्रेन युद्ध के कारण पुनः सशस्त्र हो रहा है; भारत आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भरता) की दिशा में अग्रसर है।
- इंडो-पैसिफिक और समुद्री रणनीति: यूरोप इंडो-पैसिफिक को रणनीतिक प्राथमिकता के रूप में देख रहा है।
- भारत फ्रांस, जर्मनी और अन्य देशों के साथ मिलकर स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक को बढ़ावा दे रहा है।
भारत-ईयू संबंधों में चुनौतियाँ
- यूक्रेन युद्ध पर भारत का दृष्टिकोण: यूरोप चाहता है कि भारत रूस की अधिक आलोचना करे; भारत रणनीतिक तटस्थता बनाए रखता है।
- पाकिस्तान और आतंकवाद पर ईयू का दृष्टिकोण: भारत चाहता है कि ईयू पाकिस्तान को राज्य प्रायोजित आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहराए।
- व्यापार समझौतों में धीमी प्रगति: भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ताएँ कई बार गतिरोध में फंसी हैं।
- कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM): ईयू द्वारा लगाया गया यह तंत्र भारत के लिए अतिरिक्त व्यापार बाधाएँ उत्पन्न करता है।
- मानवाधिकार और मानक दबाव: ईयू प्रायः भारत के आंतरिक मामलों (जैसे कश्मीर, CAA, कृषि कानून) पर निर्देशात्मक दृष्टिकोण अपनाता है।
- भारत इसे घरेलू मामलों में हस्तक्षेप मानता है, जिससे कूटनीतिक तनाव उत्पन्न होता है।
- नियम और मानक बाधाएँ: डेटा गोपनीयता, डिजिटल कराधान, पर्यावरण मानकों और श्रम कानूनों पर ईयू के सख्त नियम भारतीय निर्यातकों एवं तकनीकी कंपनियों के लिए बाधाएँ हैं।
- मीडिया की रूढ़ियाँ और सीमित जन-जागरूकता: यूरोप में भारत के प्रति मीडिया की रूढ़ छवि और सीमित जन-जागरूकता लोगों के बीच संबंधों को बाधित करती है।
आगे की राह
- व्यापार और निवेश समझौतों को शीघ्रता से पूरा करें: लंबे समय से लंबित भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौता और निवेश संरक्षण समझौते को अंतिम रूप दें।
- रणनीतिक और रक्षा सहयोग को गहरा करें: खरीदार-विक्रेता संबंध से आगे बढ़कर संयुक्त विकास और सह-उत्पादन की दिशा में कार्य करें।
- गतिशीलता और शिक्षा साझेदारी का विस्तार करें: कुशल पेशेवरों, छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए एक व्यापक गतिशीलता समझौते को अंतिम रूप दें।
- लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएँ बनाएं: पारदर्शी और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देकर चीन पर निर्भरता कम करें।
- IMEC (भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा) जैसी पहलों का लाभ उठाएं: लॉजिस्टिक्स, ऊर्जा और व्यापार के लिए।
- जन-जन और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा दें: पर्यटन, मीडिया सहभागिता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दें ताकि रूढ़ियों को तोड़ा जा सके और आपसी समझ को गहरा किया जा सके।
निष्कर्ष
- पुनः सशस्त्र हो रहे यूरोप और विविध व्यापार से चिह्नित पश्चिमी बहुलवाद भारत के लिए अवसर एवं चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करता है।
- यह भारत की कूटनीतिक क्षमता को विस्तार देता है, साथ ही एक अधिक बहुध्रुवीय विश्व में आर्थिक और रणनीतिक लाभ उठाने के लिए घरेलू अनुकूलन की गति भी माँगता है।
Source: IE
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