परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY): भारत में जैविक खेती को प्रोत्साहन

पाठ्यक्रम: GS3/ कृषि, GS3/ पर्यावरण

संदर्भ

  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY), जिसे 2015 में राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के अंतर्गत शुरू किया गया था, भारत में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख पहल के रूप में उभरी है।

जैविक खेती क्या है?

  • जैविक खेती एक सतत कृषि प्रणाली है जिसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे कृत्रिम इनपुट का उपयोग नहीं किया जाता। 
  • यह फसल अवशेषों, गोबर खाद एवं कंपोस्ट जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है ताकि मृदा की गुणवत्ता बनाए रखी जा सके और कीट एवं रोगों का प्रबंधन किया जा सके।

भारत में जैविक खेती

  • अंतरराष्ट्रीय जैविक कृषि आंदोलन महासंघ (IFOAM) के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, प्रमाणित क्षेत्र के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है।
  • मध्य प्रदेश में सबसे अधिक क्षेत्र जैविक प्रमाणन के अंतर्गत आता है, इसके बाद महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक का स्थान है।
    • सिक्किम भारत का प्रथम पूर्णतः जैविक राज्य है, जहाँ लगभग 75,000 हेक्टेयर कृषि भूमि पर जैविक पद्धतियाँ अपनाई गई हैं।
  • जैविक खेती करने वाले किसानों की संख्या के मामले में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है।
  • भारत के जैविक उत्पादों का निर्यात 2022–23 में $708 मिलियन रहा, जबकि वैश्विक बाजार का आकार लगभग $138 बिलियन है, जिससे निकट भविष्य में जैविक निर्यात बढ़ाने की अपार संभावनाएँ हैं।

जैविक खेती के लाभ

  • स्वस्थ खाद्य उत्पाद: जैविक खेती से प्राप्त खाद्य पदार्थ हानिकारक रासायनिक अवशेषों से मुक्त होते हैं और इनमें आवश्यक पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं।
  • मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार: जैविक विधियाँ जैविक पदार्थों की मात्रा, सूक्ष्मजीव गतिविधि और पोषक तत्व चक्र को बढ़ाकर मृदा की सेहत को बनाए रखती हैं।
  • आर्थिक अवसर: जैविक खेती किसानों को प्रीमियम मूल्य, विशेष बाजारों तक पहुंच और दीर्घकालिक रूप से कम इनपुट लागत के माध्यम से आर्थिक लाभ देती है।
  • जलवायु परिवर्तन में योगदान: कंपोस्टिंग और जैविक मृदा प्रबंधन जैसी विधियाँ मृदा में कार्बन को संचित करती हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है।
  • जैव विविधता का संरक्षण: जैविक खेती लाभकारी कीटों, पक्षियों और अन्य वन्यजीवों के लिए आवास बनाकर जैव विविधता को बढ़ावा देती है।

भारत में जैविक प्रमाणन प्रणाली

  • राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP): यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आता है तथा निर्यात बाजार के विकास के लिए है।
    • यह एक तृतीय-पक्ष प्रमाणन कार्यक्रम है जो उत्पादन, प्रसंस्करण, व्यापार और निर्यात आवश्यकताओं सहित सभी चरणों को कवर करता है।
  • भारत के लिए सहभागी गारंटी प्रणाली (PGS-India): यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत संचालित एक किसान-केंद्रित, सामुदायिक आधारित प्रमाणन प्रणाली है।
    • इसमें किसान और उत्पादक सामूहिक रूप से निर्णय लेते हैं, एक-दूसरे का निरीक्षण करते हैं तथा प्रथाओं की पारस्परिक पुष्टि करते हैं, अंततः उत्पाद को जैविक घोषित करते हैं।
  • खाद्य सुरक्षा विनियमन: घरेलू बाजार में जैविक उत्पादों को “जैविक भारत” लोगो के अंतर्गत बेचने के लिए NPOP या PGS प्रमाणन अनिवार्य कर दिया गया है।

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)

  • यह योजना जैविक खेती में लगे किसानों को उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, प्रमाणन, विपणन और कटाई के बाद प्रबंधन तक पूर्ण समर्थन प्रदान करने पर बल देती है।
  • PKVY का उद्देश्य एक ऐसा स्केलेबल ईको-एग्रीकल्चर मॉडल विकसित करना है जो कम लागत, रसायन-मुक्त तकनीकों को किसान-नेतृत्व वाले समूहों के साथ जोड़ता है, जिससे खाद्य सुरक्षा, आय सृजन और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा मिले।
  • क्लस्टर मॉडल: किसानों को 20 हेक्टेयर के समूहों में संगठित किया जाता है ताकि सामूहिक रूप से जैविक पद्धतियाँ अपनाई जा सकें, जिससे मानक एकरूपता और लागत प्रभावशीलता सुनिश्चित हो सके।
  • इस योजना के तहत जैविक खेती अपनाने वाले किसानों को तीन वर्षों की अवधि के लिए प्रति हेक्टेयर ₹31,500 की सहायता दी जाती है।
परंपरागत कृषि विकास योजना

जैविक खेती के लिए अन्य पहलें

  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन विकास (MOVCDNER): यह योजना विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी राज्यों में जैविक खेती में लगे किसानों को समर्थन देने के लिए लागू की जा रही है।
  • जैविक खेती पोर्टल (Jaivik Kheti): यह एक एकीकृत समाधान है जो जैविक किसानों को उनके उत्पाद बेचने और जैविक खेती एवं इसके लाभों को बढ़ावा देने में सहायता करता है।
    •  यह पोर्टल स्थानीय समूहों, व्यक्तिगत किसानों, खरीदारों और इनपुट आपूर्तिकर्ताओं जैसे विभिन्न हितधारकों को सेवा प्रदान करता है।
  • लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन (LAC) कार्यक्रम: 2020–21 में सरकार ने यह कार्यक्रम शुरू किया ताकि उन क्षेत्रों में प्रमाणन प्रक्रिया को तीव्र किया जा सके जहाँ कभी रासायनिक खेती नहीं की गई (जैसे आदिवासी क्षेत्र, द्वीप, पारिस्थितिक रूप से संरक्षित क्षेत्र)।
    • LAC के अंतर्गत रूपांतरण अवधि को 2–3 वर्षों से घटाकर कुछ महीनों में पूरा किया जा सकता है।

आगे की दिशा

  • PKVY को छोटे क्लस्टरों से बढ़ाकर बड़े, जुड़े हुए जैविक बेल्ट में परिवर्तित करें जो सतत कृषि के ग्रामीण केंद्र बन सकें।
  • क्षेत्र-विशिष्ट अनुसंधान, किसान प्रशिक्षण और बुनियादी नवाचारों में निवेश करें ताकि जैविक पद्धतियाँ अधिक व्यावहारिक एवं लाभकारी बन सकें।
  • ग्रामीण युवाओं को जैविक प्रसंस्करण, ईको-टूरिज्म और जैविक मूल्य श्रृंखला से जुड़े स्टार्टअप्स के माध्यम से “हरित उद्यमी” बनने के लिए प्रोत्साहित करें।

Source: PIB

 

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