खेल एक एकीकृत शक्ति है, विशेषाधिकार नहीं: सर्वोच्च न्यायालय

पाठ्यक्रम: GS3/ समावेशी विकास

संदर्भ

  • सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) मामले में यह बल देकर कहा कि खेल केवल मनोरंजन की गतिविधियाँ नहीं हैं, बल्कि “राष्ट्रीय जीवन” की महत्वपूर्ण संस्थाएं हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रमुख टिप्पणियाँ 

  • खेलों के माध्यम से भ्रातृत्व: टीम खेल व्यक्तियों को जाति, वर्ग, लिंग या भाषाई भेदों को पीछे छोड़कर साझा लक्ष्यों की ओर सामूहिक रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। 
  • सामुदायिक संसाधन के रूप में खेल: खेल सुविधाओं और अवसरों को समुदाय के ‘भौतिक संसाधन’ के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, जो सामाजिक एकता को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक हैं। 
  • विशेषाधिकार से बचाव: खेल अवसंरचना केवल शहरी आर्थिक अभिजात वर्ग के हाथों में सीमित नहीं रहनी चाहिए; खेल आयोजनों और मीडिया अधिकारों से प्राप्त राजस्व समावेशिता को बढ़ावा देना चाहिए। 
  • राष्ट्रीय जीवन की संस्थाएं: खेल संस्थाएं राष्ट्रीय जीवन की संस्थाएं हैं, जिन्हें सार्वजनिक हित में ईमानदारी, व्यावसायिकता एवं विनियमन का अधिकार मिलना चाहिए।

भारत की खेल प्रणाली में प्रमुख मुद्दे 

  • ग्रामीण-शहरी अंतर: नीति आयोग के अनुसार, ग्रामीण एथलीटों को प्रायः बुनियादी प्रशिक्षण सुविधाओं, योग्य कोचों, प्रतिस्पर्धी मंचों और पोषण व मानसिक समर्थन की पहुंच नहीं मिलती।
    • वहीं शहरी केंद्रों को निजी निवेश, मीडिया का ध्यान और राष्ट्रीय महासंघों की निकटता का लाभ मिलता है। 
  • अवसंरचना और नीति की खामियाँ: भारत के 3.4 लाख से अधिक स्कूलों में खेल के मैदान नहीं हैं, जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत कानूनी प्रावधान उपस्थित हैं।
    • यह बच्चों को खेल और शारीरिक गतिविधियों के प्रारंभिक संपर्क से वंचित करता है। 
  • खेल संस्कृति की कमी: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इसके समर्थन के बावजूद, स्कूल पाठ्यक्रम में खेलों का सीमित समावेश है। 
  • लिंग और सामाजिक समावेशन: महिलाएं, दिव्यांग एथलीट और हाशिए पर उपस्थित समुदायों को भागीदारी और पहचान में अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • समावेशी नीतियाँ उपस्थित हैं लेकिन उन्हें सुदृढ़ प्रवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन की आवश्यकता है।

भारत में खेलों को समर्थन देने वाली योजनाएं और कार्यक्रम 

  • खेलो इंडिया: युवा मामलों और खेल मंत्रालय द्वारा 2016-17 में शुरू किया गया, यह कार्यक्रम भारत में बुनियादी स्तर पर खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करने और सभी खेलों के लिए एक सुदृढ़ ढांचा तैयार करने का लक्ष्य रखता है। 
  • रिटायर्ड स्पोर्ट्सपर्सन एम्पावरमेंट ट्रेनिंग (RESET) कार्यक्रम: 2024 में शुरू किया गया, यह सेवानिवृत्त खिलाड़ियों को स्वयं को नए रूप में स्थापित करने के लिए सशक्त बनाता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय कल्याण कोष: खिलाड़ियों को ₹5 लाख तक की एकमुश्त अनुग्रह सहायता, ₹5,000 मासिक पेंशन, ₹10 लाख तक की चिकित्सा सहायता और प्रशिक्षण या प्रतियोगिता के दौरान लगी चोटों के लिए ₹10 लाख तक का समर्थन प्रदान करता है। 
  • राष्ट्रीय खेल विकास कोष (NSDF): ये कोष सार्वजनिक निवेश को पूरक करते हैं और अवसंरचना विकास, उच्च क्षमता वाले एथलीटों को समर्थन एवं नवाचार कार्यक्रमों को वित्तपोषित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं, जिससे खेल विकास के लिए एक सहयोगात्मक मॉडल बनता है।

आगे की राह 

  • बुनियादी निवेश: स्कूलों में खेल के मैदानों का विस्तार करें और ग्रामीण खेल अवसंरचना को सुदृढ़ करें ताकि अवसरों का लोकतंत्रीकरण हो सके। 
  • सार्वजनिक–निजी सहयोग: अवसंरचना और प्रशिक्षण में राज्य निवेश को पूरक करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करें। 
  • सांस्कृतिक परिवर्तन: खेलों को केवल पदक प्राप्त करने का मार्ग नहीं, बल्कि जीवनशैली के रूप में बढ़ावा दें, इसके लिए शारीरिक शिक्षा को स्कूलों और समुदायों में व्यवस्थित रूप से सम्मिलित करें।

निष्कर्ष

  • सर्वोच्च न्यायालय की विचारधारा संविधान के भ्रातृत्व एवं समानता के मूल्यों और उनके व्यावहारिक संस्थानों जैसे खेलों के माध्यम से साकार होने के बीच एक महत्वपूर्ण सेतु प्रदान करती है। 
  • जाति, वर्ग, लिंग या आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना सभी के लिए अवसर सुनिश्चित करके, न्यायालय ने यह उजागर किया कि खेलों की एकता शक्ति कैसे बढ़ती है, जिससे यह कुछ लोगों का विशेषाधिकार नहीं बल्कि सामाजिक एकता और सामूहिक प्रगति के लिए एक साझा राष्ट्रीय संसाधन बन जाता है।

Source: TH

 

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