पाठ्यक्रम: GS2/ स्वास्थ्य
संदर्भ
- भारत में मानसिक स्वास्थ्य संकट को केवल सुसाइड हेल्पलाइन के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये केवल आपातकालीन हस्तक्षेप के रूप में कार्य करती हैं और रोकथाम, पहुँच एवं प्रणालीगत कारणों की उपेक्षा करती हैं।
- एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें स्वास्थ्य सेवा, नीति सुधार, समुदाय-आधारित समर्थन और कलंक को कम करने का समावेश हो।
परिचय
- मानसिक स्वास्थ्य की वह स्थिति जिसमें व्यक्ति सामान्य जीवन की तनावपूर्ण परिस्थितियों से निपट सकता है, अपनी क्षमता को पहचान सकता है, उत्पादक रूप से कार्य कर सकता है और अपने समुदाय में योगदान दे सकता है।
- भारत में विश्व की लगभग एक-छठी जनसंख्या का निवास करती है, सबसे बड़े मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करता है।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015–16) के अनुसार लगभग 14% जनसंख्या को सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की आवश्यकता थी, जो महामारी के दौरान चिंता, तनाव और अवसाद के प्रभाव से अधिक बढ़ गई।
- सुसाइड हेल्पलाइन एक महत्वपूर्ण सहायता तंत्र के रूप में कार्य करती हैं, लेकिन यह एक गहरे संरचनात्मक संकट की केवल संकट-प्रबंधन की सतह को दर्शाती हैं।
भारत में वर्तमान स्थिति
- उच्च आत्महत्या दर: NCRB (2022) के अनुसार 1.7 लाख से अधिक आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, जो अब तक की सबसे अधिक हैं; युवा और महिलाएँ विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
- उपचार अंतर: मानसिक स्वास्थ्य विकारों से पीड़ित 80% से अधिक लोग बिना उपचार के रह जाते हैं।
- विशेषज्ञों की कमी: प्रति 1 लाख लोगों पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं, जबकि WHO की सिफारिश 3 है।
- उच्च उपचार अंतर: 83% लोग उपचार से वंचित रह जाते हैं; 20% परिवार उपचार की लागत के कारण गरीबी का सामना करते हैं।
- कलंक और जागरूकता की समस्याएँ: सामाजिक वर्जनाएँ और गलत जानकारी उपचार की प्रक्रिया में देरी करती हैं।
केवल सुसाइड हेल्पलाइन क्यों अपर्याप्त हैं?
- प्रतिक्रियात्मक स्तर: ये केवल संकट की गंभीर अवस्था में हस्तक्षेप करती हैं, दीर्घकालिक रोकथाम नहीं करतीं।
- असमान पहुँच: मुख्यतः शहरी क्षेत्रों तक सीमित, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना की कमी के कारण सीमित प्रभाव।
- गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ: कई हेल्पलाइन ऐसे स्वयंसेवकों पर निर्भर करती हैं जिन्हें मनोचिकित्सकीय देखभाल का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं होता।
- संरचनात्मक अस्पष्ट क्षेत्र: बेरोजगारी, परीक्षा का दबाव, लैंगिक हिंसा और नशे का व्यसन जैसे मूल कारणों को अनदेखा किया जाता है।
मूल कारणों का समाधान
- आर्थिक: रोजगार सृजन, सुरक्षा तंत्र का निर्माण।
- शिक्षा: परीक्षा-केंद्रित प्रणाली से हटकर जीवन-कौशल पर ध्यान देना।
- लैंगिक और सामाजिक न्याय: घरेलू हिंसा, भेदभाव और नशे के व्यसन से लड़ना।
- जागरूकता और कलंक-निवारण: मनोदर्पण जैसे अभियानों को समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाना।
- मीडिया में उत्तरदायी आत्महत्या रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करना।
वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ
- यूके: IAPT (मनोवैज्ञानिक उपचारों तक पहुँच में सुधार) कार्यक्रम NHS के माध्यम से निःशुल्क, प्रमाण-आधारित उपचार प्रदान करता है।
- ऑस्ट्रेलिया: युवा-केंद्रित हेडस्पेस केंद्र परामर्श, शिक्षा और रोजगार सहायता को एकीकृत करते हैं।
- WHO – mhGAP (मानसिक स्वास्थ्य अंतर कार्रवाई कार्यक्रम): निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के एकीकरण पर केंद्रित।
बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता
- प्राथमिक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना:
- मानसिक स्वास्थ्य को आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (HWCs) में एकीकृत करना।
- चिकित्सकों और आशा कार्यकर्ताओं को बुनियादी परामर्श के लिए प्रशिक्षित करना।
- जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP) की पहुँच और प्रभावशीलता को बढ़ाना।
- नीति और संस्थागत उपाय:
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति (2014) और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (2017) को प्रभावी रूप से लागू करना।
- मानसिक स्वास्थ्य के लिए बजट आवंटन बढ़ाना (वर्तमान में स्वास्थ्य बजट का <1%)।
- PM-JAY और निजी योजनाओं के अंतर्गत मनोचिकित्सकीय देखभाल के लिए व्यापक बीमा कवरेज सुनिश्चित करना।
- डिजिटल और समुदाय-आधारित देखभाल:
- टेली-साइकेट्री और AI-संचालित मानसिक स्वास्थ्य ऐप्स को बढ़ाना।
- AIIMS दिल्ली ने “नेवर अलोन” नामक एक AI-आधारित मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रम शुरू किया है।
- NGOs, धार्मिक संस्थानों और सहकर्मी-समर्थन समूहों की भूमिका को विस्तार देना।
- स्कूलों एवं कार्यस्थलों में परामर्श को बढ़ावा देना ताकि प्रारंभिक पहचान और समर्थन सुनिश्चित हो सके।
निष्कर्ष
- हालाँकि सुसाइड हेल्पलाइन आपातकालीन स्थितियों में जीवन बचाने का कार्य करती हैं, लेकिन वे भारत के बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य संकट को अकेले हल नहीं कर सकतीं।
- स्थायी प्रगति के लिए प्रणालीगत सुधार, रोकथाम आधारित देखभाल और समुदाय-आधारित समर्थन तंत्र की आवश्यकता है।
- SDG 3.4—मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना और समयपूर्व मृत्यु दर को कम करना—की प्राप्ति भारत की इस क्षमता पर निर्भर करती है कि वह प्रतिक्रियात्मक संकट मॉडल से हटकर समग्र, रोकथाम-आधारित और सामाजिक रूप से समावेशी ढांचे की ओर बढ़ सके।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] सुसाइड हेल्पलाइन्स तत्काल संकट का समाधान करती हैं, लेकिन भारत के मानसिक स्वास्थ्य संकट के लिए एक गहन, व्यवस्थित प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। चुनौतियों पर चर्चा करें और एक सुदृढ़ मानसिक स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण हेतु सुधार सुझाएँ। |
Source: TH