पाठ्यक्रम: GS3/ विज्ञान और प्रौद्योगिकी
संदर्भ
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पशु वसा और तेलों की कमी ने रसायनशास्त्रियों को विकल्प खोजने के लिए प्रेरित किया। इसका परिणाम था कृत्रिम सफाई एजेंटों का विकास: 1930 के दशक के मध्य में पहले वाणिज्यिक “साबुन जैसे” डिटर्जेंट सामने आए।
क्या हैं साबुन और डिटर्जेंट?
- साबुन: प्राकृतिक रूप से प्राप्त, वसा अम्ल और क्षार से बने होते हैं; सरफैक्टेंट क्रिया के माध्यम से कार्य करते हैं।
- डिटर्जेंट: 1930 के दशक में व्यापक रूप से बनाए गए; कृत्रिम सरफैक्टेंट्स; कठोर जल में प्रभावी।
- संरचना: वसा अम्लों के सोडियम (Na) या पोटैशियम (K) लवण (RCOONa या RCOOK)।
- कच्चा माल: वनस्पति तेलों (नारियल, पाम, जैतून) या पशु वसा से प्राप्त।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 2800 ई.पू. (मेसोपोटामिया): साबुन जैसे पदार्थों के उपयोग का सबसे प्रारंभिक रिकॉर्ड।
- प्राचीन भारत: रीठा, वृक्ष की छाल, पत्तियाँ और फूल प्राकृतिक क्लीनज़र के रूप में उपयोग किए जाते थे।
- औद्योगिक क्रांति: यूरोप में साबुन का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हुआ, हालांकि 19वीं सदी तक साबुन विलासिता की वस्तु बने रहे और भारी कर लगाए जाते थे।
- प्रथम विश्व युद्ध: प्राकृतिक तेलों की कमी ने कृत्रिम डिटर्जेंट के जन्म को प्रेरित किया; वाणिज्यिक स्तर पर डिटर्जेंट का उत्पादन 1930 के दशक में शुरू हुआ।
साबुन और डिटर्जेंट का कार्य करने का तंत्र
- एम्फिफिलिक प्रकृति:
- हाइड्रोफिलिक (जल-प्रेमी) सिरा जल को आकर्षित करता है।
- हाइड्रोफोबिक (जल-विरोधी) सिरा चिकनाई/गंदगी में धँस जाता है।
- सरफैक्टेंट्स: जल की सतह तनाव को कम करते हैं और स्क्रबिंग/धोने पर गंदगी हट जाती है।
- डिटर्जेंट: साबुन जैसे होते हैं लेकिन अधिक शक्तिशाली सरफैक्टेंट्स, ब्लीच और सुगंधों के साथ बनाए जाते हैं; कठोर जल में अधिक प्रभावी।

आर्थिक और सामाजिक आयाम
- औद्योगिक महत्व: यह एक वैश्विक उद्योग है जिसकी कीमत अरबों डॉलर है और जो लाखों लोगों को रोजगार देता है।
- जनस्वास्थ्य: साबुन के व्यापक उपयोग से संक्रामक रोगों, विशेष रूप से डायरिया और त्वचा रोगों में कमी आई है।
- भारत में पहुँच: भारत में साबुन की पहुँच लगभग 98% घरों तक है, जो स्वच्छता में इसकी भूमिका को दर्शाता है (स्वच्छ भारत अभियान)।
पर्यावरणीय चिंताएँ
- साबुन सामान्यतः बायोडिग्रेडेबल होते हैं (प्राकृतिक वसा अम्लों से बने), लेकिन कुछ सरफैक्टेंट्स (जैसे सल्फोनेट्स) पर्यावरण में बने रहते हैं।
- डिटर्जेंट में मौजूद फॉस्फेट्स जल स्रोतों में यूट्रोफिकेशन (पोषक प्रदूषण, शैवाल की अत्यधिक वृद्धि) का कारण बनते हैं।
Source: TH
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