पाठ्यक्रम:GS2/सामाजिक न्याय; महिलाओं से संबंधित मुद्दे
संदर्भ
- भारत सरकार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू करने की तैयारी कर रही है, जिसका लक्ष्य 2029 के आम चुनाव हैं।
| ऐतिहासिक संदर्भ – महिलाओं के राजनीतिक आरक्षण की माँग स्वतंत्रता आंदोलन के समय से की जा रही है, जब सरोजिनी नायडू और बेगम शाह नवाज जैसे नेताओं ने समान राजनीतिक अधिकारों का समर्थन किया था। – हालाँकि, संविधान सभा ने इस विचार को अस्वीकार कर दिया था, यह मानते हुए कि लोकतंत्र स्वाभाविक रूप से निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा। – 1970 और 1980 का दशक: महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी सीमित रही, जिससे नीति संबंधी चर्चाओं को बढ़ावा मिला। – अंततः, 73वें और 74वें संविधान संशोधन किए गए, जिन्होंने पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित कीं – । बाद में, 1996 में महिला आरक्षण विधेयक प्रस्तुत किया गया, लेकिन सामान्य सहमति नहीं बन सकी। – 1998, 1999 और 2008 में किए गए प्रयास भी राजनीतिक बाधाओं के कारण सफल नहीं हो सके। – सितंबर 2023: महिला आरक्षण विधेयक लगभग सर्वसम्मति से पारित हुआ, जिसे आधिकारिक तौर पर संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023 (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) के रूप में जाना जाता है। |
- संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023 (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं (दिल्ली सहित) में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण को अनिवार्य करता है, जिससे शासन में महिला प्रतिनिधित्व को बढ़ावा दिया जा सके।
- वर्तमान में, लोकसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 15% है, जबकि कई राज्य विधानसभाओं में यह 10% से भी कम है।
मुख्य प्रावधान:
- आरक्षण का विस्तार SC और ST महिलाओं के लिए पहले से आरक्षित सीटों तक किया गया है।
- यह आरक्षण आगामी जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया के बाद प्रभाव में आने की योजना है, जिससे सीटों का उचित आवंटन सुनिश्चित हो सके।
- यह आरक्षण 15 वर्षों तक लागू रहने का लक्ष्य रखता है, जिसे संसदीय कार्रवाई के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है।
चिंताएँ और चुनौतियाँ
- देरी से कार्यान्वयन: आरक्षण केवल 2027 की जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया के बाद लागू किया जाएगा।
- परिसीमन का प्रभाव: परिसीमन प्रक्रिया ने दक्षिणी राज्यों में चिंता बढ़ाई है।
- चूंकि उत्तरी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि अधिक रही है, वे अधिक सीटें प्राप्त कर सकते हैं, जिससे दक्षिणी राज्यों का राजनीतिक प्रभाव कम हो सकता है।
- OBC उप-कोटा की मांग: कुछ राजनीतिक समूहों ने OBC महिलाओं के लिए आरक्षण के अन्दर आरक्षण की माँग की है।
- उनका तर्क है कि यदि अलग कोटा नहीं दिया गया तो उच्च जाति की महिलाएँ इस नीति का असमान रूप से अधिक लाभ उठा सकती हैं।
- आरक्षित सीटों का घुमाव: अधिनियम में कहा गया है कि परिसीमन अभ्यास के बाद आरक्षित सीटों को घुमाया जाएगा।
- इससे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए दीर्घकालिक चुनावी योजना बनाने में अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है।
निष्कर्ष और आगे की राह
- महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 महिलाओं को सशक्त बनाने, लोकतंत्र को मजबूत करने और अधिक समावेशी शासन का मार्ग प्रशस्त करने का प्रयास करता है।
- हालाँकि, परिसीमन, उप-कोटा और कार्यान्वयन में देरी से जुड़ी चिंताओं को दूर करना इसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक होगा।
- आगामी जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया इस दृष्टि को हकीकत में बदलने की समय-सीमा निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाएगी।
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